उपन्यास >> भंवर भंवरराजकुमार कोहली
|
3 पाठकों को प्रिय 329 पाठक हैं |
कोपेहेगन के राजकुमार कोहली का सनसनीखेज उपन्यास। ऐसी कहानी जिसे एक बार हाथ में ले लें तो पढ़े बिना छोड़ न सकेंगे....
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
भंवर
रात के दो बजे थे। चंदनमहल की भव्य अट्टालिका काली चादर ओढ़े खड़ी थी।
दिसम्बर का महीना और ऊपर से अमावस की तूफ़ानी रात ! तूफ़ान भी ऐसा कि हवा
तेज़ रफ्तार से शां शां की आवाज़ें पेड़ों की झूमती हुई शाखाओं के साथ मिल
कर अट्टहास कर रही थीं।
कहते हैं कि तूफ़ान कैसा भी हो अकेला नहीं आता, अपने साथ अपने साथियों को भी ले आता है ! इस वक्त भी कुछ ऐसा ही हुआ। चंदनमहल की बत्तियां गुल हो चुकी थीं और टेलीफोन की लाईनें भी तहस-नहस हो चुकी थीं। इस मौसम में यूं भी बाहर निकलने का मतलब मौत को दावत देने के बराबर था।
चंदनमहल का दरबान गेट पर बने अपने कमरे से बाहर निकला और तुरंत अंदर वापस कमरे में आ गया। तूफानी हवा इतनी तेज थी कि गेट पर खड़ा होना असंभव था। दरबान, जिसका नाम दम्मू था, ईमानदारी से काम करने वाला आदमी था। उसका बाप चंदनमहल की पहरेदारी पर तब तक रहा जब तक उसके प्राणों ने उसका साथ दिया।
चंदनमहल के अंदर गैस के सिलेडरों से रोशनी कर ली गई थी। गैस की रोशनी में चलते हुए नौकर चाकरों की परछाइयां अजीब लग रही थीं। ख़ासकर जब उनकी परछाइयां दीवारों पर पड़तीं, तब ऐसा लगता जैसे कोई ज़मीन पर न चल कर दीवारों पर चल रहा हो !
जिस तरह नौकर-चाकर एक दूसरे को कुछ कहते या सुनते नज़र आ रहे थे, तब उनके चेहरों पर उठ रहे भावों से आभास हो रहा था कि कुछ न कुछ वहां या तो कोई अनहोनी घटना हुई है, या फिर होने वाली है !
चंदनमहल का सबसे पुराना नौकर रामदीन, जिसको सब दीनू काका कह कर बुलाते हैं, सहसा ठिठक गया। उसके पीछे से लीला ने आवाज़ दी थी। दीनू ने पीछे मुँह कर लीला की तरफ़ देखा। पहले लीला उससे कुछ पूछ पाती इस बीच दीनू ने चिंतित स्वर में लीला से पूछा,
‘‘अब मालकिन का क्या हाल है ?’’
‘‘दीनू काका, डाक्टर या नर्स का होना ज़रूरी है, मालकिन की हालत बिगड़ती जा रही है !’’
लीला चंदनमहल की मालकिन कमलादेवी की चहेती नौकरानी थी जो इस वक्त दूसरे नौकरों के बनिस्बत ज़्यादा परेशान नज़र आ रही थी। दीनू ने उसके पेट की तरफ़ नज़र डालते हुए कहा, ‘‘लीला, इस वक्त तो तुम्हारी भी हालत मालकिन की तरह ही है ! तुम्हें भी प्रसव किसी भी वक्त हो सकता है ! मालकिन की भी वही हालत है ! अब तुम्हीं बताओं कि इस मौसम में किसको भेजू डॉक्टर या नर्स को बुलाने ? ऊपर से टेलीफोन के तार भी टूट चुके हैं !’’
‘‘लेकिन दीनू काका, मालकिन की हालत तो कुछ अजीब हो रही है। उनको दर्द नहीं हो रहा !’’ लीला ने हाथ मलते हुए कहा।
‘‘तो फिर ?’’ दीनू ने यचकचा कर लीला के चेहरे पर नज़रें गड़ाते हुए पूछा। ‘‘मालकिन कहती हैं कि उसको किसी बच्चे के रोने की आवाज़ सुनाई देती है !’’
‘‘क्या ?’’ दीनू ने चौंक कर लीला से जैसे एक बार फ़िर सुनना चाहा कि कहीं उसने ने गलत तो नहीं सुना था।
‘‘हां दीनू काका ! यही नहीं, मालकिन यह भी कहती है कि उनको भयानकता चेहरे वाली एक औरत भी दिखाई दी है !’’
‘‘लेकिन अभी परसों तो तुम बता रही थी कि मालकिन को कोई बुर्के वाली औरत दिखाई देती थी।’’ दीनू ने आंखें सिकोड़ते हुए कहा।
‘‘हां, परसों मालकिन को कोई बुर्के वाली औरत चंदनमहल में मंडराती नज़र आ रही थी, लेकिन अब वो कहती है कि कोई भयानकता चेहरे वाली औरत उनके आसपास मंडराती नज़र आ रही है। उस औरत के हाथ में कोई बच्चा भी होता है !’’ लीला ने चिंतित स्वर में कहा।
‘‘लीला, इस हालत में अक्सर औरतों के मन में ऐसी डरावनी बातें पैदा होती हैं ! हो सकता है मालकिन के मन में भी ऐसे वहम, भ्रम पैदा हो रहे हों ?’’
दीनू ने भी गंभीर भाव बनाते हुए लीला से पूछा।
‘‘दीनू काका, अब मैं क्या कहूं !? मुझसे तो हालत देखी नहीं जा रही !’’ लीला ने परेशान होते हुए कहा।
‘‘लीला, मुझे तो खुद भी कुछ समझ में नही आ रहा कि हालात में मैं क्या करूं और क्या न करूं ? हां, ठीक है कि बड़े लोगों की बातें वही जानें, लेकिन मुझे तो समझ नहीं आ रहा कि चंदनसेठ यूं अचानक कहां गायब हो गये !?’’
‘‘हां, गुस्सा तो मुझे भी आ रहा है ! अब मैं क्या कहूं ? लेकिन इतना ज़रूर कहूंगी कि इस हालत में तो अपनी बीवी के निष्ठुर से निष्ठुर इनसान भी छोड़ कर नहीं जाता। चंदनसेठ का तो पिछले तीन दिनों से कुछ पता नहीं !’’ लीला ने बिना छिपाये अपने गुस्से को चेहरे पर आने दिया और पैर पटकती हुई फिर सीढ़ियां चढ़ते हुए कमलादेवी के कमरे की तरफ़ धीरे धीरे बढ़ने लगी। क्योंकि उसके गर्भ के दिन भी पूरे हो चुके थे, इसलिए चलने में दिक्कत हो रही थी।
दम्मू दरबान के गेट वाले कमरे की खिड़की से बाहर झांकने की कोशिश की और सहसा उसको महसूस हुआ कि दूर से एक हल्की सी टिमटिमाती हुई रोशनी सड़क पर दिखाई देने लगी। कुछ देर में ही लगा जैसे वो टिमटिमाती हुई रोशनी किसी कार की हैड़लाईट्स की थी।
जिस सड़क पर वो कार अब आती दिखाई देने लगी थी वो सड़क सीधी चंदनमहल आती थी, जिसका मतलब था कि कोई चंदनमहल ही आ रहा था। कार की गति धीमी लग रही थी। शायद तूफान तेज़ होने की वजह से कार चलाने वाला कार तेज़ चला कर रिस्क नहीं लेना चाहता था।
कुछ ही देर में कार चंदनमहल के बाहर आकर रुकी और दम्मू अंदर खड़ा खड़ा सोच ही रहा था कि कार में से एक जवान लड़की उतरी। इसके साथ ही कार वापस मुड़ी और आँखों से ओझल हो गई। वापस जाती हुई कार की स्पीड इस बार पहले से कहीं अधिक थी। जब दम्मू ने देखा कि लड़की चंदनमहल के गेट की तरफ बढ़ रही थी तो दम्मू ने जल्दी से पास रखा छाता उठाया और गेट के बाहर की तरफ भागा। उसने लड़की की तरफ गौर से देखा। उसने नर्स जैसा गाउन पहना था उसके एक हाथ में बैग था और दूसरे हाथ में बड़ा सा पैकेट ! पैकेट तूफान के कारण उस लड़की के हाथ से उड़ने को हो रहा था। इससे पहले कि वो पैकेट लड़की के हाथों से बेकाबू होता दम्मू ने उसके हाथ से पैकेट ले लिया। वह उसके कमरे में ले आया। लड़की ने पहली बार दम्मू की तरफ़ देखा और मुस्करा कर अपने बिखरे हुए बाल संवारने लगी। पहले कि दम्मू लड़की से कुछ पूछता, वो पहले ही बोल पढ़ी,
‘‘मुझे चंदनसेठ ने भेजा है ! मैं नर्स हूं ! क्या तुम्हारी मालकिन कमलादेवी तकलीफ़ में है ?’’
‘‘हां।’’ दम्मू ने जवाब दिया।
‘‘क्या कहा ?’’ लड़की ने कान दम्मू की तरफ़ बढ़ाते हुए पूछा।
दम्मू ने चौंक कर लड़की की तरफ़ देखा। वह अपने कानों में हियरिंग ऐडस (ठीक सुनने की मशीन) फिट कर रही थी। दम्मू समझ गया कि लड़की को ऊँचा सुनाई देता था। अभी दम्मू यह सोच ही रहा था कि लड़की ने अपने बैग में में से अपनी नर्स वाली कैप निकाल कर पहनते हुए बोली,
‘‘इसी पैकेट में तुम सब लोगों के लिए केक है। यह केक तुम्हारे साहब चंदनसेठ ने तुम सबके लिए भेजा है। अब तुम मुझे जल्दी से अपनी मालकिन के पास पहुंचा दो।’’
दम्मू पहले कि कुछ कह पाता, लड़की ने बैग उठाया और दम्मू इशारे से अपने पीछे आने को कह कर चंदनमहल की तरफ चल पड़ी। दम्मू एक मशीन की तरह उसके पीछे हो लिया।
चंदनमहल के अंदर आकर पहली बार लड़की ने दीनू को बताया कि उसका नाम रोज़ी था, और उसको चंदनसेठ ने अपनी पत्नी कमलादेवी की देखरेख के लिये भेजा था। पता नहीं क्यों, दीनू चाहते हुए भी रोज़ी से यह न पूछ सका कि उस वक़्त चंदनसेठ खुद कहां थे ? दीनू ने रोजी को ऊपर पहुंचा दिया जहां कमलादेवी का कमरा था।
थोड़ी देर के बाद नौकरों के चेहरे पर कुछ राहत के चिह्न दिखाई देने लगे ! उन्होंने चाय के साथ चंदनसेठ के भेजे हुए केक पर हाथ मारना शुरू कर दिया। कमलादेवी अपने कमरे में लेटी हुई कराह रही थी। उसके सामने रोज़ी खड़ी थी और पास ही कमलादेवी की नौकरानी लीला। लीला रोज़ी को कमलादेवी का उपचार करते हुए यूं देख रही थी, कि जैसे ही रोज़ी को उसकी मदद की ज़रूरत पड़े तो एकदम मदद कर सके।
कमलादेवी के गर्भ के दिन पूरे हो चुके थे ! कभी भी खुशी का समाचार मिल सकता था। लेकिन चंदनसेठ पिछले तीन दिनों से किसी को कोई पता नहीं था कि वो कहां है। कमलादेवी की प्रसव की पीड़ा तो उसको सह्य थी, लेकिन इस वक़्त उसके पति का गायब हो जाना उसके लिए असह्य था।
रोज़ी ने कमलादेवी को एक इंजेक्शन दिया। फ़िर ध्यानपूर्वक देखने लगी। थोड़ी ही देर में कमलादेवी को नींद आ गई। तब रोज़ी ने लीला की तरफ़ देखा और बोली,
‘‘क्या नाम बताया था तुमने अपना ?’’
‘‘मेरा नाम लीला है मैडम !’’ लीला के चेहरे पर पीड़ा के निशान थे।
‘‘देखो लीला, तुम्हारी भी हालत तुम्हारी मालकिन जैसी है ! कौन सा महीना चल रहा है तुम्हारा ?’’
‘‘नौवां महीना !’’ लीला ने गर्दन झुकाते हुए जवाब दिया।
‘‘देखों तुम्हें भी इस वक्त आराम की सख्त ज़रूरत है ! तुम्हें मैं टीका लगा देती हूं, ताकि तुम भी आराम कर सको।’’
‘‘लेकिन मैडम ! अगर आपको किसी चीज़ की ज़रूरत पड़ी तो ?’’
‘‘नीचे दीनू है ना !’’ रोज़ी ने यूं कहा जैसे उसको इस घर के हर प्राणी का पता हो। लीला को किस कदर पीड़ा हो रही थी ? यह तो वही जानती थी कि वो कैसे इतनी देर से खड़ी अपनी पीड़ा को दबा रही थी। उसने जब देखा कि उसकी मालकिन चैन की नींद सो रही थी, लीला ने रोज़ी के प्रस्ताव पर आनाकानी नहीं की।
रोज़ी ने लीला के चेहरे से भी भांप लिया कि उसको टीका लगवाने में कोई ऐतराज़ नहीं था। उसने जल्दी से एक बार फ़िर टीका लगाने की तैयारी शुरू कर दी, फिर आगे बढ़कर लीला को टीका लगा दिया।
लीला को टीका लगवाया और अपने क्वार्टर की तरफ़ चल दी। जब वह सीढ़ियां उतर रही थी, उसने देखा कि दीनू और बाकी के नौकर चाय पी रहे थे। सबके आगे एक बढ़िया किस्म का केक रखा था, जिस पर सब टूटे हुए थे। जैसे ही दीनू और दूसरे नौकरों के लीला को आते देखा, दीनू ने लीला से कहा कि वो भी आकर केक चख ले। लेकिन लीला ने दूर से ही मना कर दिया और कह दिया कि वो अपने क्वाटर में जाकर सोना चाहती थी।
इस वक़्त सारा चंदनमहल सुनसान था। सारे नौकर सोने जा चुके थे। रोज़ी कमलादेवी के बिस्तर के पास रखी एक आरामकुर्सी पर बैठी एक मैगज़ीन के पन्ने उलट रही थी।
कहते हैं कि तूफ़ान कैसा भी हो अकेला नहीं आता, अपने साथ अपने साथियों को भी ले आता है ! इस वक्त भी कुछ ऐसा ही हुआ। चंदनमहल की बत्तियां गुल हो चुकी थीं और टेलीफोन की लाईनें भी तहस-नहस हो चुकी थीं। इस मौसम में यूं भी बाहर निकलने का मतलब मौत को दावत देने के बराबर था।
चंदनमहल का दरबान गेट पर बने अपने कमरे से बाहर निकला और तुरंत अंदर वापस कमरे में आ गया। तूफानी हवा इतनी तेज थी कि गेट पर खड़ा होना असंभव था। दरबान, जिसका नाम दम्मू था, ईमानदारी से काम करने वाला आदमी था। उसका बाप चंदनमहल की पहरेदारी पर तब तक रहा जब तक उसके प्राणों ने उसका साथ दिया।
चंदनमहल के अंदर गैस के सिलेडरों से रोशनी कर ली गई थी। गैस की रोशनी में चलते हुए नौकर चाकरों की परछाइयां अजीब लग रही थीं। ख़ासकर जब उनकी परछाइयां दीवारों पर पड़तीं, तब ऐसा लगता जैसे कोई ज़मीन पर न चल कर दीवारों पर चल रहा हो !
जिस तरह नौकर-चाकर एक दूसरे को कुछ कहते या सुनते नज़र आ रहे थे, तब उनके चेहरों पर उठ रहे भावों से आभास हो रहा था कि कुछ न कुछ वहां या तो कोई अनहोनी घटना हुई है, या फिर होने वाली है !
चंदनमहल का सबसे पुराना नौकर रामदीन, जिसको सब दीनू काका कह कर बुलाते हैं, सहसा ठिठक गया। उसके पीछे से लीला ने आवाज़ दी थी। दीनू ने पीछे मुँह कर लीला की तरफ़ देखा। पहले लीला उससे कुछ पूछ पाती इस बीच दीनू ने चिंतित स्वर में लीला से पूछा,
‘‘अब मालकिन का क्या हाल है ?’’
‘‘दीनू काका, डाक्टर या नर्स का होना ज़रूरी है, मालकिन की हालत बिगड़ती जा रही है !’’
लीला चंदनमहल की मालकिन कमलादेवी की चहेती नौकरानी थी जो इस वक्त दूसरे नौकरों के बनिस्बत ज़्यादा परेशान नज़र आ रही थी। दीनू ने उसके पेट की तरफ़ नज़र डालते हुए कहा, ‘‘लीला, इस वक्त तो तुम्हारी भी हालत मालकिन की तरह ही है ! तुम्हें भी प्रसव किसी भी वक्त हो सकता है ! मालकिन की भी वही हालत है ! अब तुम्हीं बताओं कि इस मौसम में किसको भेजू डॉक्टर या नर्स को बुलाने ? ऊपर से टेलीफोन के तार भी टूट चुके हैं !’’
‘‘लेकिन दीनू काका, मालकिन की हालत तो कुछ अजीब हो रही है। उनको दर्द नहीं हो रहा !’’ लीला ने हाथ मलते हुए कहा।
‘‘तो फिर ?’’ दीनू ने यचकचा कर लीला के चेहरे पर नज़रें गड़ाते हुए पूछा। ‘‘मालकिन कहती हैं कि उसको किसी बच्चे के रोने की आवाज़ सुनाई देती है !’’
‘‘क्या ?’’ दीनू ने चौंक कर लीला से जैसे एक बार फ़िर सुनना चाहा कि कहीं उसने ने गलत तो नहीं सुना था।
‘‘हां दीनू काका ! यही नहीं, मालकिन यह भी कहती है कि उनको भयानकता चेहरे वाली एक औरत भी दिखाई दी है !’’
‘‘लेकिन अभी परसों तो तुम बता रही थी कि मालकिन को कोई बुर्के वाली औरत दिखाई देती थी।’’ दीनू ने आंखें सिकोड़ते हुए कहा।
‘‘हां, परसों मालकिन को कोई बुर्के वाली औरत चंदनमहल में मंडराती नज़र आ रही थी, लेकिन अब वो कहती है कि कोई भयानकता चेहरे वाली औरत उनके आसपास मंडराती नज़र आ रही है। उस औरत के हाथ में कोई बच्चा भी होता है !’’ लीला ने चिंतित स्वर में कहा।
‘‘लीला, इस हालत में अक्सर औरतों के मन में ऐसी डरावनी बातें पैदा होती हैं ! हो सकता है मालकिन के मन में भी ऐसे वहम, भ्रम पैदा हो रहे हों ?’’
दीनू ने भी गंभीर भाव बनाते हुए लीला से पूछा।
‘‘दीनू काका, अब मैं क्या कहूं !? मुझसे तो हालत देखी नहीं जा रही !’’ लीला ने परेशान होते हुए कहा।
‘‘लीला, मुझे तो खुद भी कुछ समझ में नही आ रहा कि हालात में मैं क्या करूं और क्या न करूं ? हां, ठीक है कि बड़े लोगों की बातें वही जानें, लेकिन मुझे तो समझ नहीं आ रहा कि चंदनसेठ यूं अचानक कहां गायब हो गये !?’’
‘‘हां, गुस्सा तो मुझे भी आ रहा है ! अब मैं क्या कहूं ? लेकिन इतना ज़रूर कहूंगी कि इस हालत में तो अपनी बीवी के निष्ठुर से निष्ठुर इनसान भी छोड़ कर नहीं जाता। चंदनसेठ का तो पिछले तीन दिनों से कुछ पता नहीं !’’ लीला ने बिना छिपाये अपने गुस्से को चेहरे पर आने दिया और पैर पटकती हुई फिर सीढ़ियां चढ़ते हुए कमलादेवी के कमरे की तरफ़ धीरे धीरे बढ़ने लगी। क्योंकि उसके गर्भ के दिन भी पूरे हो चुके थे, इसलिए चलने में दिक्कत हो रही थी।
दम्मू दरबान के गेट वाले कमरे की खिड़की से बाहर झांकने की कोशिश की और सहसा उसको महसूस हुआ कि दूर से एक हल्की सी टिमटिमाती हुई रोशनी सड़क पर दिखाई देने लगी। कुछ देर में ही लगा जैसे वो टिमटिमाती हुई रोशनी किसी कार की हैड़लाईट्स की थी।
जिस सड़क पर वो कार अब आती दिखाई देने लगी थी वो सड़क सीधी चंदनमहल आती थी, जिसका मतलब था कि कोई चंदनमहल ही आ रहा था। कार की गति धीमी लग रही थी। शायद तूफान तेज़ होने की वजह से कार चलाने वाला कार तेज़ चला कर रिस्क नहीं लेना चाहता था।
कुछ ही देर में कार चंदनमहल के बाहर आकर रुकी और दम्मू अंदर खड़ा खड़ा सोच ही रहा था कि कार में से एक जवान लड़की उतरी। इसके साथ ही कार वापस मुड़ी और आँखों से ओझल हो गई। वापस जाती हुई कार की स्पीड इस बार पहले से कहीं अधिक थी। जब दम्मू ने देखा कि लड़की चंदनमहल के गेट की तरफ बढ़ रही थी तो दम्मू ने जल्दी से पास रखा छाता उठाया और गेट के बाहर की तरफ भागा। उसने लड़की की तरफ गौर से देखा। उसने नर्स जैसा गाउन पहना था उसके एक हाथ में बैग था और दूसरे हाथ में बड़ा सा पैकेट ! पैकेट तूफान के कारण उस लड़की के हाथ से उड़ने को हो रहा था। इससे पहले कि वो पैकेट लड़की के हाथों से बेकाबू होता दम्मू ने उसके हाथ से पैकेट ले लिया। वह उसके कमरे में ले आया। लड़की ने पहली बार दम्मू की तरफ़ देखा और मुस्करा कर अपने बिखरे हुए बाल संवारने लगी। पहले कि दम्मू लड़की से कुछ पूछता, वो पहले ही बोल पढ़ी,
‘‘मुझे चंदनसेठ ने भेजा है ! मैं नर्स हूं ! क्या तुम्हारी मालकिन कमलादेवी तकलीफ़ में है ?’’
‘‘हां।’’ दम्मू ने जवाब दिया।
‘‘क्या कहा ?’’ लड़की ने कान दम्मू की तरफ़ बढ़ाते हुए पूछा।
दम्मू ने चौंक कर लड़की की तरफ़ देखा। वह अपने कानों में हियरिंग ऐडस (ठीक सुनने की मशीन) फिट कर रही थी। दम्मू समझ गया कि लड़की को ऊँचा सुनाई देता था। अभी दम्मू यह सोच ही रहा था कि लड़की ने अपने बैग में में से अपनी नर्स वाली कैप निकाल कर पहनते हुए बोली,
‘‘इसी पैकेट में तुम सब लोगों के लिए केक है। यह केक तुम्हारे साहब चंदनसेठ ने तुम सबके लिए भेजा है। अब तुम मुझे जल्दी से अपनी मालकिन के पास पहुंचा दो।’’
दम्मू पहले कि कुछ कह पाता, लड़की ने बैग उठाया और दम्मू इशारे से अपने पीछे आने को कह कर चंदनमहल की तरफ चल पड़ी। दम्मू एक मशीन की तरह उसके पीछे हो लिया।
चंदनमहल के अंदर आकर पहली बार लड़की ने दीनू को बताया कि उसका नाम रोज़ी था, और उसको चंदनसेठ ने अपनी पत्नी कमलादेवी की देखरेख के लिये भेजा था। पता नहीं क्यों, दीनू चाहते हुए भी रोज़ी से यह न पूछ सका कि उस वक़्त चंदनसेठ खुद कहां थे ? दीनू ने रोजी को ऊपर पहुंचा दिया जहां कमलादेवी का कमरा था।
थोड़ी देर के बाद नौकरों के चेहरे पर कुछ राहत के चिह्न दिखाई देने लगे ! उन्होंने चाय के साथ चंदनसेठ के भेजे हुए केक पर हाथ मारना शुरू कर दिया। कमलादेवी अपने कमरे में लेटी हुई कराह रही थी। उसके सामने रोज़ी खड़ी थी और पास ही कमलादेवी की नौकरानी लीला। लीला रोज़ी को कमलादेवी का उपचार करते हुए यूं देख रही थी, कि जैसे ही रोज़ी को उसकी मदद की ज़रूरत पड़े तो एकदम मदद कर सके।
कमलादेवी के गर्भ के दिन पूरे हो चुके थे ! कभी भी खुशी का समाचार मिल सकता था। लेकिन चंदनसेठ पिछले तीन दिनों से किसी को कोई पता नहीं था कि वो कहां है। कमलादेवी की प्रसव की पीड़ा तो उसको सह्य थी, लेकिन इस वक़्त उसके पति का गायब हो जाना उसके लिए असह्य था।
रोज़ी ने कमलादेवी को एक इंजेक्शन दिया। फ़िर ध्यानपूर्वक देखने लगी। थोड़ी ही देर में कमलादेवी को नींद आ गई। तब रोज़ी ने लीला की तरफ़ देखा और बोली,
‘‘क्या नाम बताया था तुमने अपना ?’’
‘‘मेरा नाम लीला है मैडम !’’ लीला के चेहरे पर पीड़ा के निशान थे।
‘‘देखो लीला, तुम्हारी भी हालत तुम्हारी मालकिन जैसी है ! कौन सा महीना चल रहा है तुम्हारा ?’’
‘‘नौवां महीना !’’ लीला ने गर्दन झुकाते हुए जवाब दिया।
‘‘देखों तुम्हें भी इस वक्त आराम की सख्त ज़रूरत है ! तुम्हें मैं टीका लगा देती हूं, ताकि तुम भी आराम कर सको।’’
‘‘लेकिन मैडम ! अगर आपको किसी चीज़ की ज़रूरत पड़ी तो ?’’
‘‘नीचे दीनू है ना !’’ रोज़ी ने यूं कहा जैसे उसको इस घर के हर प्राणी का पता हो। लीला को किस कदर पीड़ा हो रही थी ? यह तो वही जानती थी कि वो कैसे इतनी देर से खड़ी अपनी पीड़ा को दबा रही थी। उसने जब देखा कि उसकी मालकिन चैन की नींद सो रही थी, लीला ने रोज़ी के प्रस्ताव पर आनाकानी नहीं की।
रोज़ी ने लीला के चेहरे से भी भांप लिया कि उसको टीका लगवाने में कोई ऐतराज़ नहीं था। उसने जल्दी से एक बार फ़िर टीका लगाने की तैयारी शुरू कर दी, फिर आगे बढ़कर लीला को टीका लगा दिया।
लीला को टीका लगवाया और अपने क्वार्टर की तरफ़ चल दी। जब वह सीढ़ियां उतर रही थी, उसने देखा कि दीनू और बाकी के नौकर चाय पी रहे थे। सबके आगे एक बढ़िया किस्म का केक रखा था, जिस पर सब टूटे हुए थे। जैसे ही दीनू और दूसरे नौकरों के लीला को आते देखा, दीनू ने लीला से कहा कि वो भी आकर केक चख ले। लेकिन लीला ने दूर से ही मना कर दिया और कह दिया कि वो अपने क्वाटर में जाकर सोना चाहती थी।
इस वक़्त सारा चंदनमहल सुनसान था। सारे नौकर सोने जा चुके थे। रोज़ी कमलादेवी के बिस्तर के पास रखी एक आरामकुर्सी पर बैठी एक मैगज़ीन के पन्ने उलट रही थी।
|
लोगों की राय
No reviews for this book