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मेरा देश मेरा जीवन

लालकृष्ण आडवाणी

प्रकाशक : प्रभात प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2008
पृष्ठ :794
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 6417
आईएसबीएन :81-7315-699-9

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अपने स्कूली दिनों में मेरा केवल एक ही स्वप्न था, और एक ही प्रार्थना-मेरा देश विदेशी शासन के चंगुल से मुक्त हो...

Mera Desh Mera Jivan A Hindi Book by L.K. Advani - मेरा देश मेरा जीवन - लालकृष्ण आडवानी

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

‘‘आडवाणीजी पचास वर्षों से अधिक समय से मेरे मित्र और अनन्य सहयोगी रहे हैं। उन्होंने कभी भी राष्ट्रवाद में अपने अटूट विश्वास के साथ समझौता नहीं किया, फिर भी हर परिस्थिति के अनुसार आवश्यक लचीलेपन का परिचय दिया है। वे खुले मन से विभिन्न स्रोतों से नए-नए विचार ग्रहण करते हैं। मुझे पूरा विश्वास है कि ‘मेरा देश, मेरा जीवन’ को बड़ी संख्या में और भरपूर रुचि के साथ विभिन्न पृष्ठभूमिवाले व्यक्तियों द्वारा पढ़ा जाएगा। इस पुस्तक में वस्तुत: एक संवेदनशील मनुष्य और विशिष्ट नायक की उल्लेखनीय जीवन-यात्रा का वृत्तांत है, जिनकी सर्वश्रेष्ठ उपलब्धि अभी सामने आनी शेष है। ऐसी मुझे आशा है और ईश्वर से यही मेरी प्रार्थना है।’’
श्री अटल बिहारी बाजपेयी
           भारत के प्रधानमंत्री (1998-2004)

अपने स्कूली दिनों में मेरा केवल एक ही स्वप्न था, और एक ही प्रार्थना : मेरा देश विदेशी शासन के चंगुल से मुक्त हो और तीव्र गति से ‘परम वैभव’ की ओर अग्रसर हो।

अब स्वाधीनता के साठ वर्ष बाद, आइए हम सब फिर से इस प्रतिज्ञा को दोहराएँ कि हम अपने राष्ट्र को इतना सशक्त, समृद्ध और उन्नत बनाएँगे कि पूरे विश्व को इस बात की अनुभूति हो कि इक्कीसवीं सदी सचमुच भारत की सदी बन रही है।
वन्दे मातरम्।
लालकृष्ण आडवाणी


मेरा देश मेरा जीवन अहर्निश राष्ट्र सेवा को समर्पित शिखर पुरुष लालकृष्ण आडवाणी की आत्मकथा है। वर्तमान भारतीय राजनीतिक परिदृश्य में आडवाणी अपनी प्रतिबद्धता, प्रखर, चिंतन, स्पष्ट विचार और दूरगामी सोच के लिए जाने जाते हैं। वे ‘राष्ट्र सर्वोपरि’ को जीवन का मूलतंत्र मानकर पिछले छह दशकों से राजनीति में सक्रिय हैं।

1947 में सांप्रदायिक दुर्भाव से उपजे द्विराष्ट्रवाद के सिद्धान्त के आधार पर हुए भारत विभाजन के समय आडवाणी को अपने प्रियतम स्थान सिंध (अब पाकिस्तान का हिस्सा) को हमेशा के लिए छोड़ना पड़ा। इस त्रासदी की पीड़ा और खुद भोगे हुए कष्टों को अपनी आत्मकथा में आडवाणी ने बड़े ही मार्मिक शब्दों में प्रस्तुत किया है। राष्ट्रसेवा की अपनी आत्मकथा में आडवाणी ने बड़े ही मार्मिक शब्दों में प्रस्तुत किया है। राष्ट्रसेवा की अपनी लंबी और गौरवपूर्ण यात्रा में आडवाणी ने स्वतंत्र भारत में घट रही प्राय: सभी राजनीतिक एवं सामाजिक घटनाओं पर सूक्ष्म दृष्टि रखी है, और इनमें सक्रिय भागीदारी की है। इस पुस्तक में आडवाणी ने इन्हीं घटनाओं और राष्ट्र-समाज के विभिन्न सरोकारों का लेखा-जोखा प्रस्तुत किया है।

अपने अग्रज एवं अभिन्न सहयोगी श्री अटल बिहारी बाजपेयी के साथ कंधे-से-कंधा मिलाते हुए, सरकार बनाने के कांग्रेस पार्टी के वर्चस्व को तोड़ते हुए, भारतीय जनता पार्टी को सशक्त विकल्प के रूप में प्रस्तुत करने में आडवाणी ने विशेष भूमिका निभाई, जिसका वर्णन पुस्तक में विस्तार से किया गया है।

प्रस्तुत पुस्तक आडवाणी द्वारा बड़े ही सशक्त व भावपूर्ण शब्दों में आपातकाल के समय लोकतंत्र के लिए किए गए उनके संघर्ष और अयोध्या में राम मंदिर निर्माण हेतु की गई ‘राम रथयात्रा’- जो स्वतंत्र भारत का सबसे बड़ा जन-आदोलन थी और जिसने पंथनिरपेक्ष के सही अर्थ मायनों को लेकर एक राष्ट्रव्यापी बहस छेड़ी-का भी बड़ा ही सटीक विवेचन करती है। साथ ही वर्ष 1998 से 2004 तक राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की सरकार में गृहमंत्री, एवं फिर, उपप्रधानमंत्री पद पर आडवाणी द्वारा अपने दायित्व के सफल निर्वहन पर भी प्रकाश डालती है।

इस पुस्तक ने आडवाणी की राजनीतिक सूझ-बूझ, विचारों की स्पष्टता और अद्भुत जिजीविषा को और संपुष्ट कर दिया है, जिसे उनके प्रशंसक एवं आलोचक, सभी मानते हैं।

किसी भी राजनीतिज्ञ के लिए सक्रिय राजनीति में अपने उत्तरदायित्वों को निभाते हुए अपनी आत्मकथा लिखना एक अदम्य साहस एवं जोखिम भरा कार्य है, जिसे आडवाणी ने न केवल कर दिखाया है, बल्कि उसके साथ पूरा न्याय भी किया है। अत: इस पुस्तक का महत्त्व एवं उपयोगिता और भी बढ़ जाती है।

भारत के पूर्व उपप्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी सत्तर के दशक से देश के सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण राजनेताओं में से एक हैं। पचास वर्षों से अधिक समय से अपने अभिन्न सहयोगी, पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी के साथ उन्होंने देश के राजनीतिक परिदृश्य में महत्त्वपूर्ण और निर्णायक परिवर्तन लाने में अहम भूमिका निभाई है। सन् 1980 में ‘भारतीय जनता पार्टी’ की स्थापना से लेकर अब तक के विकास में उनका अमूल्य योगदान रहा है।

आडवाणी 8 नवंबर, 1927 को कराची में पैदा हुए, जहाँ उन्होंने आरंभिक शिक्षा प्राप्त की। विभाजन के बाद उनके परिवार को सिंध छोड़कर विभाजित भारत में आकर बसना पड़ा। चौदह वर्ष की आयु में भारतीय राष्ट्रवाद और चरित्र निर्माण के लिए समर्पित सामाजिक संगठन ‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ’ से जुड़े आडवाणी, सन् 1951 में डॉ. श्यामाप्रसाद मुकर्जी द्वारा ‘भारतीय जनसंघ’ की स्थापना के बाद सक्रिय राजनीति में आए। जनसंघ के प्रमुख स्तंभ एवं चिंतक पं. दीनदयाल उपाध्यक्ष का उनके जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ा। आडवाणी सन् 1973 में जनसंघ के अध्यक्ष चुने गए और लगातार तीन कार्यकाल तक इस पद पर रहे। 1975 में आपातकाल के दौरान वे 19 महीने के लिए नजरबंद रहे।

वे चार बार राज्यसभा के लिए तथा पाँच बार लोकसभा के लिए चुने गए हैं। भाजपा ने सन् 1998 में कांग्रेस को पटखनी दी, जब वह राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की मिली-जुली सरकार बनाने में सफल रही। राजग की स्थापना और उसकी विजय में आडवाणी की महत्तवपूर्ण भूमिका रही।

राजग की सरकार (1998-2004) में वे भारत के गृहमंत्री एवं उपप्रधानमंत्री रहे। वर्ष 1999 में आडवाणी की प्रतिष्ठित सर्वोत्तम सांसद पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया। वर्तमान में लोकसभा में प्रतिपक्ष के नेता हैं। अपनी राजनीतिक सूझ-बूझ और सबको साथ लेकर चलने की नीति के कारण वे अपने समर्थकों और आलोचकों के बीच लोकप्रिय हैं। ओजस्वी वक्ता और अनुभवी सांसद आडवाणी राष्ट्र-विकास के लिए सुशासन के प्रखर प्रणेता रहे हैं सक्रिय राजनीति में आने से पहले एक पत्रकार रहे आडवाणी पुस्तकों, रंगमंच और सिनेमा के सूक्ष्म पारखी हैं। वर्तमान में वे पत्नी कमला, पुत्र जयंत, पुत्रवधू गीतिका और पुत्री प्रतिभा के साथ दिल्ली में रह रहे हैं।

आभार

‘मेरा देश मेरा जीवन’ एक व्यक्ति के संस्मरण मात्र ही नहीं है बल्कि वह यह अपरिहार्य रूप से एक राजनीतिक जीवनी है। यह पुस्तक मेरे जीवन और मेरी पार्टी (भारतीय जनता पार्टी) की यात्रा का वर्णन करती है। व्यापक संदर्भ में यह आधुनिक भारत के प्रयाण का वर्णन है। जैसा ही मैंने इस पर काम करना आरंभ किया मैंने, अनुभव किया और जैसे-जैसे आगे बढ़ा, यह अनुभूति और भी प्रबल होती गई कि बहुत से लोग इस पुस्तक की संकल्पना से प्रकाशन तक की यात्रा में जुड़ जाएँगे। यह यात्रा उन उदार लोगों की सहायता, सक्रिय सहयोग, सतत प्रोत्साहन और योगदान के बिना सफलतापूर्वक पूरी नहीं हो सकती थी। उन सभी के प्रति आभार प्रकट करना मेरा कर्तव्य है।

मैं श्री अटल बिहारी वाजपेयी-अटलजी-के प्रति हार्दिक कृतज्ञता प्रकट करता हूँ, जिन्होंने मेरे लिए अपने असंख्य प्रशंसकों के लिए-प्रस्तावना लिखी, इस पुस्तक में सन् 1951 से एक समान लक्ष्य के लिए हम दोनों साथ-साथ काम करने की क्रमावली है। उन्होंने जो मेरे विषय में लिखा और जो मैंने उनके विषय में अपनी पुस्तक में लिखा है, वह हमारे निकट संबंधों का द्योतक है, जिनका मैं बहुत अधिक सम्मान करता हूँ। मैं उनके अच्छे स्वास्थ्य की कामना करते हुए आशा करता हूँ कि मेरी पार्टी और मैं हमेशा उनका उपयोगी परामर्श प्राप्त करते रहेंगे।

जैसाकि प्रस्तावना में संकेत दिया है, मुझे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के साथ अपने सक्रिय और घनिष्ठ संबंधों पर गर्व है, जिससे मैं चौदह वर्ष की आयु में जुड़ा था। मैं आज जो भी हूँ, वह मुख्य रूप से उन संस्कारों के कारण ही हूँ, जो मैंने इस राष्ट्रवादी संगठन से प्राप्त किए। इसलिए स्वाभाविक रूप से यह मेरा कर्तव्य बनता है कि मैं संघ के सरसंघचालक श्री कुप्.-सी. सुदर्शन और सरकार्यवाह श्री मोहनराव भागवत तथा अन्य वरिष्ठ अधिकारियों का इस पुस्तक के प्रकाशन के अवसर पर आभार व्यक्त करूँ।

मैं अपने सहयोगी जसवंत सिंह का भी धन्यवाद करना चाहूँगा, जिन्होंने मुझे आरंभ में प्रोत्साहन देने के अलावा नियमित रूप से पुस्तक की प्रगति के संबंध में पूछताछ की। उन्होंने कहा था कि हम सभी आपके संस्मरणों के बिना अधूरे रह जाएँगे। यह निश्चित रूप से अतिशयोक्ति है। फिर भी, एक अच्छे और उत्कृष्ट लेखक, जिन्होंने राजनीतिक कार्यों की व्यस्तताओं के बावजूद कई पुस्तकें लिखी हैं, की इस टिप्पणी ने मुझे इस दिशा में आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया।

इस तरह की एक पुस्तक, जिसमें मैंने अपनी जीवनगाथा और आधुनिक भारत की यात्रा के संदर्भ में वर्णन किया है, के लिए व्यापक अनुसंधान और संदर्भों की आवश्यकता पड़ी। मैंने सरकार के भीतर और बाहर कई लोगों से परामर्श किया। मैं उन सभी का उल्लेख नहीं कर सकता, क्योंकि उनमें से कुछ आज भी सेवा में हैं। फिर भी, मैं पूर्व कैबिनेट सचिव कमल पांडे द्वारा दिए गए सहयोग के लिए आभार प्रकट करना चाहूँगा, जिन्होंने जब मैं गृहमंत्री था, तब मेरे साथ काम किया था। साथ ही इंटेलिजेंस ब्यूरो के पूर्व प्रमुखों अजीत दोवाल और के.पी. सिंह तथा पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा उप-सलाहकार सतीश चन्द्र के प्रति भी आभार प्रकट करना चाहूँगा।

भारतीय जनसंघ और भाजपा के इतिहास से संबंधित सूचनाओं का अत्यन्त उपयोगी स्रोत्र था-भाजपा का सार-संग्रह (इसमें सात अंक भारतीय जनसंघ और एक अंक भाजपा संबंधी है), जिसका प्रकाशन अप्रैल 2005 में भाजपा की रजत जयंती के अवसर पर किया गया था। पार्टी दस्तावेज समिति के प्रमुख स्व. विष्णुकांत शास्त्री और इसके कार्यकारी अध्यक्ष दीनानाथ मिश्र ने एक परियोजना से जुड़े हुए थे। ऐसा करते हुए मुझे अपने प्रिय सहयोगी स्व. राजेन्द्र शर्मा की याद आती है, जिन्होंने कई दशकों तक हमारी पार्टी के संसदीय सचिव के रूप में काम किया। वही पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने पार्टी से संबंधित संपूर्ण साहित्य का सूक्ष्मता से दस्तावेजीकरण करने का विचार दिया था।

मैं विशेष रूप से अपने करीबी मित्र और सहयोगी सुधीन्द्र कुलकर्णी का धन्यवाद करना चाहूँगा, जिन्होंने इन संस्मरणों को लिखने में मुझे बहुमूल्य सहयोग प्रदान किया। यही वे व्यक्ति हैं, जिन्होंने जब से मैंने इस पुस्तक को लिखने का निर्णय लिया, मेरे साथ अथक मेहनत की। ये सुधीन्द्र ही हैं, जिन्होंने इस पुस्तक के लिए अपेक्षित सभी अनुसंधान कार्यों की व्यवस्था की।

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