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कामतानाथ संकलित कहानियां

कामतानाथ

प्रकाशक : नेशनल बुक ट्रस्ट, इंडिया प्रकाशित वर्ष : 2007
पृष्ठ :207
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 6427
आईएसबीएन :978-81-237-5247

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आम जनजीवन से उठाई गई ये कहानियां कथाकार के रचना-कौशल की वजह से ग्रहण के स्तर पर एक तरफ बतरस का मजा देती हैं तो दूसरी तरफ प्रभाव के स्तर पर उद्वेलित करती हैं...


खाना पका कर उसने गुमटी में लाकर ढक दिया और मंदिर की ओर निकल गया। काफी देर तक अब कोई गाड़ी आने वाली नहीं थी। आज वैसे ही उसका मन हो आया, अन्यथा दिन में उसने मंदिर जाना लगभग छोड़ दिया था। मंदिर में शंकर, जी की मूर्ति पर किसी ने दो-चार कनेर के फूल चढ़ा दिए थे। हो सकता है, कोई भक्त इधर निकल आया हो, या फिर बच्चों ने ही यह हरकत की हो। कहीं पुजारी जी तो नहीं लौट आए? परंतु नहीं, वह आए होते तो उनका हाथी भी होता।

थोड़ी देर वह मंदिर के अहाते में इधर-उधर टहलता रहा, तब वहां से लौटकर साढ़े ग्यारह वाली पैसेंजर के निकलने की प्रतीक्षा करने लगा। पौने दस की डाक, वह खाना बना रहा था, तभी जा चुकी थी। साढ़े ग्यारह की गाड़ी निकलने के बाद उसने खाना खाया और आम के पेड़ के नीचे चारपाई डालकर आराम करने लगा।

गर्मियों में प्रायः उसकी यही दिनचर्या रहती थी। खाना खाने के बाद कम-से-कम दो घंटे सोना। वैसे हवा में काफी गर्मी थी, परंतु पेड़ के नीचे अब भी कुछ गनीमत थी।

कोई तीन बजे वह सोकर उठा तो आसमान में हल्के-हल्के बादल जमा होने लगे थे। हो सकता है आज बारिश हो, उसने आसमान की ओर देखकर मन-ही-मन अनुमान लगाया। कल आंधी आई थी। परंतु आज आंधी के कोई आसार नहीं थे। केवल हल्के स्लेटी रंग के बादलों के टुकड़े आसमान में तैर रहे थे। एक टुकड़ा बिल्कुल पुजारी जी के हाथी की तरह लग रहा था। उसे मन-ही-मन हंसी आई। क्या पुजारी जी ने अब अपना धंधा इस लोक से उस लोक तक बढ़ा लिया है?

उसने चारपाई वहीं पेड़ के नीचे पड़ी रहने दी और गुमटी में आकर चाय बनाने के लिए दोबारा अंगीठी सुलगाने लगा। तभी उसने देखा, नए पुल पर एक ट्रैफिक कांस्टेबल खड़ा था। कुछ और लोग पुल को रंग-बिरंगी झंडियों से सजा रहे थे। इसके मायने आज ही उद्घाटन होगा, उसने सोचा। उसके उत्तर वाले फाटक पर भी एक ट्रैफिक कांस्टेबल तैनात था, यानी आज से उसका दाना-पानी यहां से खत्म! कल से अब जाने कहां ड्यूटी लगे।

साढ़े तीन पर फिर पैसेंजर थी। उसके निकल जाने के बाद वह वैसे ही इधर-उधर टहलने लगा। एक बार पुल तक भी हो आया। वहां उसे पता चला कि पांच बजे मंत्री जी आने वाले थे-पुल का उद्घाटन करने। साढ़े पांच पर एक डाक गुजरती थी। शायद अब उसे इस डाक के आने पर फाटक बंद करने की जरूरत न पडे। खैर, फाटक तो उसे बंद करना ही पडेगा। परंतु अब इसकी कोई अहमियत नहीं रह गई थी! दो-एक दिन में उसकी नई पोस्टिंग का ऑर्डर आ जाएगा, और तब रेलवे के मजदूर आएंगे और उसकी गमटी के खिड़की, दरवाजे, टेलीफोन, कीबोर्ड-सब उखाड़ ले जाएंगे। अंग्रेजी के बड़े-बड़े अक्षरों में उसकी दीवाल पर एबंडंड लिख दिया जाएगा। तब कौन जानेगा कि उसने जिंदगी के अठारह-बीस वर्ष इस गुमटी में गुजारे हैं! इस आम के पेड़ और सब्जी की क्यारियों का क्या होगा? खैर, उसे क्या करना! उसका तो बस इतने ही दिनों का नाता था।

अचानक उसे चांद की याद हो आई। आज चांद होती तो वह उसे ले कर कहीं भी चला जाता। शायद उनके दो तीन बच्चे भी होते। चार-पांच हजार फंड तो उसका हो ही गया होगा। नौकरी छोड़कर कोई दुकान कर लेता। मगर यह सब उसके भाग्य में नहीं था। उसकी किस्मत में तो बस ये रेल की पटरियां हैं। न ये पटरियां सही, दूसरी पटरियां सही। कभी-कभी तो उसे स्वप्न में भी ये पटरियां दिखाई देती हैं, धरती के एक सिरे से दूसरे सिरे तक बिछी हुई, एक-दूसरे को काटती, एक दूसरे के समानांतर या फिर ऐसे ही कोई अकेली पटरी किसी अजनबी दिशा की ओर क्षितिज तक जाती हुई।

'वह गुमटी में वापस आया तो उसका मन कुछ अजीब उचटा हुआ-सा था। एक निगाह उसने गुमटी में फैले हुए अपने सामान पर डाली। मिट्टी के तेल की कुप्पी, छोटे-मोटे डिब्बे और कनस्तर, एक कोने में लगा हुआ कोयले का ढेर, उसी के पास दफ्ती के एक डिब्बे में जूट का छोटा-सा अंबार, बांस की चारपाई पर लिपटा हुआ मुख्तसर-सा बिस्तर, उसी के नीचे पड़ा टीन का पुराना संदूक, खूटी पर टंगा हुआ खाकी गर्म ओवरकोट, जिसे वह जाड़े के दिनों में पहनता है। इस वर्ष शायद नया मिले, उसने सोचा। दो-एक अन्य खंटियों पर कुछ और गंदे कपड़े। बस, यही गृहस्थी थी उसकी। हां, एक ताक पर जगन्नाथ जी के धुंआ खाए हुए पट रखे थे, जिन्हें वह बरसों पहले कभी पुरी गया था, तब वहां से लाया था। उसी की बगल में गुटका रामायण और बियर की एक टूटी हुई बोतल रखी थी। जिसे आज से चार-पांच वर्ष पहले, जब वह सड़क का फाटक बंद करके अपनी गुमटी के सामने खड़ा गाड़ी निकलने की प्रतीक्षा कर रहा था, फर्स्ट क्लास के किसी मुसाफिर ने अपने डब्बे से फेंका था, और वह उसके सिर में आकर लगी थी। हफ्तों उसे पट्टी बांधनी पड़ी थी। टांके लगे थे, जिनका निशान आज तक उसके माथे पर है। एक और ताक पर किस्सा तोता-मैना और आल्हा की किताब, दो-एक पुरानी फिल्मों के गानों की किताबें, जो उसने बरसों पहले कभी खरीदी थीं।

एक बार उसके मन में आया कि वह सारा सामान समेटने का प्रबंध करे। परंतु फिर वह टाल गया और पेड़ के नीचे से चारपाई उठाकर अपनी गुमटी के सामने डालकर उस पर बैठ कर बीड़ी पीने लगा। आसमान में बादल अभी भी टुकड़े-टुकड़े ही थे, परंतु हवा में गर्मी काफी कम हो गई थी।

पुल पर चहल-पहल बढ़ गई थी। दक्षिण वाले सिरे पर सड़क के आर-पार लाल फीता बांध दिया गया था। लोग वहां जमा होने लगे थे। लाउडस्पीकर भी लग गया था, जिस पर कोई ‘हलो, एक, दो, तीन...टेस्टिंग, टेस्टिंग, चिल्ला रहा था। कुछ मोटरें भी रेल के फाटक से निकल कर पुल के उस ओर जमा होने लगी थीं। पांच बजने वाले होंगे, उसने मंदिर के कलश पर पड़ती हुई धूप की लाइन से अंदाज लगाया। यानी मंत्री जी अब आने ही वाले होंगे। सामने टेलीफोन के तार पर उल्लू बैठा था।

सड़क पर ट्रैफिक बढ़ने लगा था। दफ्तरों के छूटने का वक्त था यह और प्रायः इस समय तथा सुबह नौ और दस के बीच ट्रैफिक का जोर कुछ ज्यादा ही होता था। बल्कि, पिछले दो-चार वर्षों से हो गया था। शुरू में तो ट्रैफिक के नाम पर उसके लिए बस यही गाड़ियां थीं, डाक और पैसेंजर, या फिर कभी कोई भूली-भटकी मालगाड़ी आ जाती थी।

सहसा उसे टेलीफोन की घंटी सुनाई दी, तो वह लपक कर गुमटी में गया। साढ़े पांच वाली पैसेंजर की सूचना थी। उसने बोर्ड से कुंजी उतारी और धीमे कदमों से फाटक बंद करने चला गया। उत्तर वाले फाटक पर ताला लगा रहा था तभी उसने देखा, कोई दस गज.की दूरी पर मंत्री जी की कार आ रही थी। वहां फाटक पर खड़े ट्रैफिक पुलिस वाले ने उससे हड़बड़ी में कुछ कहा भी था, परंतु वह दक्षिण वाला फाटक पहले ही बंद कर चुका था। गाड़ी किसी भी क्षण आ सकती थी। वह चुपचाप फाटक बंद करके अपनी गुमटी में लौट आया।

मंत्री जी की कार और उसके साथ आया हुआ सारा काफिला उत्तर वाले फाटक पर ही रुक गया। पुल पर जमा भीड़ में मंत्री जी की कार आते ही हलचल-सी मच गई। लोग पूल से नीचे झांकने लगे। उनमें से कुछ के हाथों में फूलमालाएं थीं। लाउडस्पीकर पर लोगों से व्यवस्थित रहने के लिए अपील की जा रही थी। घोषणा हो रही थी कि मंत्री जी आ गए हैं। उनकी गाड़ी रेल के फाटक पर खड़ी है। लोग अपने-अपने स्थानों पर रहें। खबरदार कोई लाल फीते के पार न जाए! फिर भी कुछ लोग फीते के पार नजर आ रहे थे। हो सकता है, वे प्रबंध करने वालों में से हों।

उसे लगा, गाड़ी आने में कुछ अनावश्यक देर हो रही है। फाटक के दोनों ओर ट्रैफिक की लाइनें लंबी होती जा रही थीं। पुल पर जमा भीड़ में कुछ बेचैनी भी नजर आने लगी थी। मंत्री जी के साथ आए हुए पुलिस अधिकारी आदि अपनी-अपनी गाड़ियों से उतर कर फाटक के पास खड़े हो गए और पटरी के दोनों ओर झांकने लगे। तभी उसके मन में एक बात आई। अच्छा, अगर वह गाड़ी निकल जाने के बाद भी फाटक न खोले तो? मान लो, थोड़ी देर के लिए वह चाबी लेकर कहीं चला जाए? अचानक उसके दिल के हलके में भयानक दर्द उठा और उसके दोनों हाथ अपने आप सीने पर पहुंचे गए।

लड़खड़ाता हुआ-सा वह अपनी चारपाई पर बैठ गया। साथ ही डीजल इंजन की घहराती हुई आवाज उसके कान में पड़ी और एक क्षण में लोहे की पटरियों पर फौलाद के पहिए फिसलने लगे। उल्लू टेलीफोन के तार से उड़कर उसकी गुमटी के ऊपर से गुजर गया।

उसने चाहा कि वह उठकर खड़ा हो जाए। परंतु उसे लगा जैसे उसके शरीर की सारी शक्ति निचुड़ गई हो और वह चुपचाप अपनी चारपाई पर लुढ़क गया। गाड़ी के डिब्बे उसकी आंखों के सामने से गुजर रहे थे, परंतु उनका आकार उसकी दृष्टि में धुंधला-सा पड़ने लगा था। जैसे कोई वस्तु कैमरे के फोकस से हट जाए।

गाड़ी गुजरे बीस-पचीस सेकंड हो गए, परंतु वह अपनी चारपाई पर चुपचाप लेटा रहा। फाटक के दोनों ओर खासा ट्रैफिक पहले से ही जमा हो चुका था। लोग उतावले होने लगे। कुछ लोगों ने उसे आवाजें भी दीं। परंतु वह अपनी जगह से हिला तक नहीं। तभी दोनों ओर से कुछ लोग फाटक के बीच से या उसके बगल में पैदल चलने वाले लोगों के लिए बने रास्ते से निकल कर उसकी गुमटी की ओर
बढ़ने लगे। उसमें मंत्री जी के साथ आए पुलिस अधिकारी भी थे। परंतु वह सब से बेखबर अपनी चारपाई पर शांत लेटा हुआ था।

उसके निकट पहुंचते-पहुंचते लोग खासे जोर से चिल्लाने लगे। जब वे उसके बिल्कुल निकट आ गए तो उसने एक बार आंखें खोल कर उनकी ओर देखा। दोनों हाथों से चारपाई की पट्टियां पकड़ कर उठने का प्रयत्न किया। परंतु दूसरे ही क्षण उसके दोनों हाथ चारपाई के नीचे हवा में झूल गए।

लोग अपने-अपने स्थान पर रुक गए। केवल दो-एक पुलिस अधिकारियों ने आगे बढ़कर उसे हिलाया। परंतु दूसरे क्षण वे भी वापस लौट पड़े और मंत्री जी की गाड़ी के पास आकर उसमें बैठे लोगों से बात करने लगे। और लोग भी अपनी गाड़ियों से उतर कर वहां आ गए।

सामने पुल पर जमा भीड़ में भी खलबली मचने लगी। लोग फीते को पार करते हुए या फिर ऊपर से ही सड़क के किनारे लगे मिट्टी के ढेर पर से उतरते हुए फाटक के पास जमा होने लगे। कुछ लोग फाटक फलांगते हुए उसकी चारपाई के निकट आ गए।

फाटक के दोनों ओर ट्रैफिक की लाइनें लंबी होती जा रही थीं। कुछ लोग अपनी गाड़ियों को मोड़ने और हॉर्न बजाने लगे। नतीजा यह निकला कि दोनों ओर का ट्रैफिक जाम होने लगा। दो-एक पुलिस अधिकारी आगे बढ़ कर ट्रैफिक कंट्रोल करने का प्रयत्न करने लगे। परंतु वे स्थिति संभाल सकने में सफल नहीं हो पा रहे थे।

तब तक दोनों ओर की ट्रैफिक लाइनों में से पीछे वाले लोगों ने अपनी गाड़ियों को मोड़ना शुरू कर दिया। उनमें से कुछ नए पुल पर निकल आए। एक-दो का उधर बढ़ना था कि दोनों ओर से पुल पर होकर निकल जाने के लिए होड़-सी लग गई। परंतु पुल पर खड़े ट्रैफिक पुलिस वाले ने उन्हें वापस भेजना शरू कर दिया और इस सारी हड़बड़ी में पुल पर भी ट्रैफिक जाम हो गया।

मंत्री जी के स्वागत को आई भीड़ भी तितर-बितर होने लगी। उनमें से कुछ फाटक की ओर बढ़ आए। जो ऐसा करने में सफल नहीं हो पाए, वे पुल पर से ही नीचे की ओर झांकने लगे। सारा इलाका ट्रैफिक और मनुष्यों का मिला-जुला समुद्र-सा हो गया। जिसमें दोनों फाटकों के बीच वाला हिस्सा एक बीरान टापू की तरह लग रहा था, जिसके एक किनारे उसकी गुमटी बनी थी, सामने उसकी चारपाई पड़ी थी, जिस पर वह लेटा था। उसकी आंखें बंद थीं और दोनों हाथ चारपाई के दोनों ओर हवा में झूल रहे थे। दो-चार लोग आस-पास खड़े उसे देख रहे थे।

तभी अचानक जोर की बारिश आ गई और वहां जमा लोगों में भगदड़-सी मच गई। परंतु वह उसी प्रकार अपनी चारपाई पर पड़ा हुआ था, निश्चल और निर्विकार।

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