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कहानी संग्रह >> कोहरे से लिपे चेहरे

कोहरे से लिपे चेहरे

सूर्यकान्त नागर

प्रकाशक : किताबघर प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2008
पृष्ठ :100
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 6432
आईएसबीएन :9788189859916

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कहानी संग्रह, ये कहानियाँ प्रवाहमयी भाषा जिसमें कहीं कहीं व्यंग्य का मार्मिक और अनायास स्पर्श है-वर्णन, संवाद और चरित्रांकन तीनों में



लेकिन यदि गुर्दे की जरूरत हो और मैच कर जाए तो मैं हाजिर हूँ। मैं अभी पचास का भी नहीं हुआ हूँ। आप देख रहे हैं, हट्टा-कट्टा हूँ। सौ फीसदी फिट। पिछले बरस बेटे की मौत का झटका न लगा होता तो मेरी आयु का अनुमान भी नहीं लगा सकते थे।.... मेरे बेटे को भी यही रोग था, पर उसका पता देर से चला। मैं गुर्दा देने के लिए मुंबई पहुँच पाता, उसके पहले ही उसने दम तोड़ दिया। उसकी टीस अभी तक बनी हुई है। शूल की तरह चुभती है वह। मेरे अंदर रह गया गुर्दा मुझे चैन से जीने नहीं देता। चाहता हूँ ऐसा हादसा किसी के साथ न हो। यदि आपके बेटे को गुर्दा दे सका तो समझूँगा अपने बेटे को दे दिया। बेटे को गुर्दा देने की अधूरी आस पूरी हो जाएगी। भारी बोझ से मुक्ति मिलेगी मुझे। जो सुख मिलेगा, उसकी कल्पना शायद दूसरा कोई नहीं कर सकता। आशा है, आप मेरी प्रार्थना पर जरूर गौर फरमाएँगे।’’ कहते हुए वे द्रवित हो गए। लगा, दर्द का कोई गोला उनके कंठ में आकर अटक गया है।

बेआवाज तमाचे ने सोच की मेरी पूरी श्रृंखला को छिन्न-भिन्न कर दिया। उनका व्यक्तित्व मेरी चेतना में फैलने लगा। लगा, मैं बुरी तरह सिकुड़ता जा रहा हूँ। देर तक बुत बना बैठा रहा। शब्द जैसे मुँह में जम गए थे। सन्नाटे की चीख को शायद उन्होंने सुन लिया था। बोले, ‘‘कुछ गलत कह दिया हो तो माफ कर दें।’’

मैं उन्हें कैसे बताता कि गलती कहाँ हुई है !


सूचना पाकर वे असमंजस में पड़ गए। पता ही नहीं चला, कब असमंजस ने चिंता और घबराहट की शक्ल अख्तियार कर ली। उन्होंने सामान्य होने की भरसक कोशिश की, मगर कुछ सवाल थे जो उन्हें लगातार परेशान कर रहे थे। शंका-कुशंकाओं ने उन्हें बुरी तरह जकड़ लिया। लेकिन अपने इस स्वभाव का क्या करें। अकसर अशुभ की आशंका से घिर आते हैं। छोटी-छोटी बातों पर घबरा उठते हैं। बेटी मुक्ता ने पड़ोसी ओझाजी के फोन पर सूचना दी थी कि वह परसों आ रही है। अनायास क्या हो गया ? वे कारण भी नहीं पूछ पाए थे। पिता को पुत्री के आगमन की सूचना मात्र से प्रसन्नता से भर आना चाहिए। सूचना के सामने प्रतिप्रश्न खड़ा करने का अर्थ होता कि सूचना से उन्हें खुशी नहीं हुई। फोन के उस सिरे पर, मुक्ता के निकट यदि परिवार का कोई सदस्य हुआ, तब तो मुक्ता के लिए अपनी बात खुलकर कहना भी आसान न होगा। इसलिए सिर्फ इतना कहा था ‘ठीक है।’ और फोन रख दिया था।

आशांकित होने के कई कारण हैं। दुबली–पतली भावुक लड़की। गुड़िया–सी कोमल व खूबसूरत। निश्छल आँखें। संकोची। गिलहरी-सी डरपोक।

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