नेहरू बाल पुस्तकालय >> अनोखा रिश्ता अनोखा रिश्तापुष्पा सक्सेना
|
2 पाठकों को प्रिय 228 पाठक हैं |
एक बच्चा आंगन में लगे पेड़ जिसे उसके दादा जी ने लगाया था को अपने दादा जी के जैसा प्यार करता है उसमें अपने दादा जी को देखता है...
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
अनोखा रिश्ता
मोहन को अपने बाबा से बहुत प्यार है। घर में उसके माता-पिता भी हैं, पर मोहन को अपने बाबा के साथ रहना अच्छा लगता है। बाबा मोहन को कहानियां सुनाते हैं, उसके साथ गांव घूमने जाते हैं और कभी भूले से भी उसे डांटते नहीं।
आज बाबा अपने पोते मोहन के लिए टोकरे भर आम लाए हैं। आम देखते ही मोहन खुश हो गया। बाबा ने आम बाल्टी में डालकर धोए। उसके बाद दोनों ने जी भरकर मीठे-मीठे आम खाए।
मोहन ने बाबा से कहा, ‘‘बाबा, अगर हमारे घर में एक आम का पेड़ होता तो कितना अच्छा होता ! जब जी चाहता, आम तोड़कर खाते।’’
‘‘हाँ, मोहन बेटा, आम का पेड़ फल के अलावा और भी बहुत-सी चीजे हमें देता है।’’
‘‘आम का पेड़ और कौन-सी चीजें हमें देता है बाबा ?’’
‘‘देखो बेटा, आम का पेड़ जब बड़ा हो जाता है तो ठंडी छाया देता है। आम की पत्तियों से बंदनवार बनाई जाती है।’
‘‘रामू भैया की शादी में इसीलिए उनके घर में बंदनवार और पानी के कलश पर आम की पत्तियां लगाई गई थीं !’’
‘‘अरे तुम भूल गए, आम की पत्तियों से तुम पीपनी बनाकर बाजा भी तो बजाते हो।’’ बाबा ने हँसते हुए कहा।
‘‘आम का पेड़ सच में बहुत अच्छा होता है, बाबा। हम अपने घर के आंगन में आम का पेड़ जरूर लगाएँगे।’’
‘‘ठीक है। मैं कल ही तुम्हारे लिए आम का पौधा ले आऊंगा।’’
अगले दिन बाबा सुबह-सुबह आम का पौधा ले आए। बाहर के दरवाजे से ही आवाज दी, ‘‘मोहन तुम्हारे लिए आम का पौधा ले आया हूं जब यह पौधा पेड़ बन जाएगा तो इस पर तोते, कोयल, मैना और न जाने कितने तरह के पक्षी आया करेंगे।’
‘‘वाह ! तब तो बड़ा मजा आएगा। कोयल की आवाज कितनी मीठी होती है !’’
‘‘हां, मोहन, पेड़ इंसान और पक्षियों के सबसे अच्छे दोस्त होते हैं। पंछी तो पेड़ों पर ही बसेरा करते हैं।’’
‘‘बाबा, पेड़ तो बात नहीं करते, फिर वे हमारे दोस्त कैसे बन सकते हैं ?’’
‘‘देखो बेटा, जिस तरह दोस्त तुम्हारी मदद करते हैं, उसी तरह बिना तुमसे बात किए पेड़ भी तुम्हारी मदद करते हैं।’’
‘‘वह कैसे, बाबा ?’’
‘‘यह बात ठीक से समझ लो। पेड़ वातावरण से जहरीली कार्बन डाईआक्साइड गैस लेते हैं और हमें साफ हवा यानी आक्सीजन देते हैं। आक्सीजन न हो तो हम सांस नहीं ले सकते, यानी जिंदा ही नहीं रह सकते।’’
‘‘तब तो पेड़ बहुत अच्छे होते हैं। लेकिन एक बात समझ में नहीं आती। फिर भी लोग पेड़ों को काटते हैं भला क्यों ?’’ मोहन ने भोलेपन से पूछा।
‘‘पैसों के लालच में। वे नहीं जानते कि पेड़ों को काटने से हवा में जहरीली गैस बढ़ती जाती है।’’
‘‘मैं समझ गया, बाबा। पेड़ हमारे सबसे पक्के दोस्त हैं।’’
‘‘ये लो, लगा दिया आम का पौधा’’, बाबा ने इतना कहते हुए पौधे के आसपास थोड़ा पानी डाला।
‘‘बाबा, मैं इस पौधे को रोज पानी दूंगा। जब इसमें आम लगेंगे तो हम दोनों जी भरकर खाएंगे।’’
‘‘मेरे बच्चे, हो सकता है, तेरा बाबा आम के फल न खा सके, पर तुझे जरूर मीठे आम मिलेंगे।’’
‘‘क्यों बाबा, आप आम क्यों नहीं खाएंगे ?’’
‘‘अरे, तेरा बाबा बूढ़ा जो हो गया है। पर मेरी सौगात तुझे जरूर मिलती रहेगी।’’
‘‘नहीं, बाबा। आप आम जरूर खाएँगे।’’ बाबा ने प्यार से मोहन का सिरसहलाकर उसे आशीर्वाद दिया, ‘‘भगवान तुझे खुश रखे। इस पेड़ को अपने बाबा की तरह ही प्यार करना, मोहन !’’
समय बीतता गया। मोहन रोज आम के पौधे को पानी देता। पौधा धीरे-धीरे पेड़ का रूप लेकर बड़ा होने लगा। उसके हरे-हरे पत्ते सबको अच्छे लगते। कुछ समय बाद आम के पेड़ में बौर आ गया। कोयल आकर आम के पेड़ पर ‘कू-हू’ ‘कू-हू’ गीत गीने लगी। और भी कई प्रकार के पक्षियों का पेड़ पर जमघट लगा रहता। मोहन खुश था, पर तभी भगवान ने उसके बाबा को अपने पास बुला लिया।
आज बाबा अपने पोते मोहन के लिए टोकरे भर आम लाए हैं। आम देखते ही मोहन खुश हो गया। बाबा ने आम बाल्टी में डालकर धोए। उसके बाद दोनों ने जी भरकर मीठे-मीठे आम खाए।
मोहन ने बाबा से कहा, ‘‘बाबा, अगर हमारे घर में एक आम का पेड़ होता तो कितना अच्छा होता ! जब जी चाहता, आम तोड़कर खाते।’’
‘‘हाँ, मोहन बेटा, आम का पेड़ फल के अलावा और भी बहुत-सी चीजे हमें देता है।’’
‘‘आम का पेड़ और कौन-सी चीजें हमें देता है बाबा ?’’
‘‘देखो बेटा, आम का पेड़ जब बड़ा हो जाता है तो ठंडी छाया देता है। आम की पत्तियों से बंदनवार बनाई जाती है।’
‘‘रामू भैया की शादी में इसीलिए उनके घर में बंदनवार और पानी के कलश पर आम की पत्तियां लगाई गई थीं !’’
‘‘अरे तुम भूल गए, आम की पत्तियों से तुम पीपनी बनाकर बाजा भी तो बजाते हो।’’ बाबा ने हँसते हुए कहा।
‘‘आम का पेड़ सच में बहुत अच्छा होता है, बाबा। हम अपने घर के आंगन में आम का पेड़ जरूर लगाएँगे।’’
‘‘ठीक है। मैं कल ही तुम्हारे लिए आम का पौधा ले आऊंगा।’’
अगले दिन बाबा सुबह-सुबह आम का पौधा ले आए। बाहर के दरवाजे से ही आवाज दी, ‘‘मोहन तुम्हारे लिए आम का पौधा ले आया हूं जब यह पौधा पेड़ बन जाएगा तो इस पर तोते, कोयल, मैना और न जाने कितने तरह के पक्षी आया करेंगे।’
‘‘वाह ! तब तो बड़ा मजा आएगा। कोयल की आवाज कितनी मीठी होती है !’’
‘‘हां, मोहन, पेड़ इंसान और पक्षियों के सबसे अच्छे दोस्त होते हैं। पंछी तो पेड़ों पर ही बसेरा करते हैं।’’
‘‘बाबा, पेड़ तो बात नहीं करते, फिर वे हमारे दोस्त कैसे बन सकते हैं ?’’
‘‘देखो बेटा, जिस तरह दोस्त तुम्हारी मदद करते हैं, उसी तरह बिना तुमसे बात किए पेड़ भी तुम्हारी मदद करते हैं।’’
‘‘वह कैसे, बाबा ?’’
‘‘यह बात ठीक से समझ लो। पेड़ वातावरण से जहरीली कार्बन डाईआक्साइड गैस लेते हैं और हमें साफ हवा यानी आक्सीजन देते हैं। आक्सीजन न हो तो हम सांस नहीं ले सकते, यानी जिंदा ही नहीं रह सकते।’’
‘‘तब तो पेड़ बहुत अच्छे होते हैं। लेकिन एक बात समझ में नहीं आती। फिर भी लोग पेड़ों को काटते हैं भला क्यों ?’’ मोहन ने भोलेपन से पूछा।
‘‘पैसों के लालच में। वे नहीं जानते कि पेड़ों को काटने से हवा में जहरीली गैस बढ़ती जाती है।’’
‘‘मैं समझ गया, बाबा। पेड़ हमारे सबसे पक्के दोस्त हैं।’’
‘‘ये लो, लगा दिया आम का पौधा’’, बाबा ने इतना कहते हुए पौधे के आसपास थोड़ा पानी डाला।
‘‘बाबा, मैं इस पौधे को रोज पानी दूंगा। जब इसमें आम लगेंगे तो हम दोनों जी भरकर खाएंगे।’’
‘‘मेरे बच्चे, हो सकता है, तेरा बाबा आम के फल न खा सके, पर तुझे जरूर मीठे आम मिलेंगे।’’
‘‘क्यों बाबा, आप आम क्यों नहीं खाएंगे ?’’
‘‘अरे, तेरा बाबा बूढ़ा जो हो गया है। पर मेरी सौगात तुझे जरूर मिलती रहेगी।’’
‘‘नहीं, बाबा। आप आम जरूर खाएँगे।’’ बाबा ने प्यार से मोहन का सिरसहलाकर उसे आशीर्वाद दिया, ‘‘भगवान तुझे खुश रखे। इस पेड़ को अपने बाबा की तरह ही प्यार करना, मोहन !’’
समय बीतता गया। मोहन रोज आम के पौधे को पानी देता। पौधा धीरे-धीरे पेड़ का रूप लेकर बड़ा होने लगा। उसके हरे-हरे पत्ते सबको अच्छे लगते। कुछ समय बाद आम के पेड़ में बौर आ गया। कोयल आकर आम के पेड़ पर ‘कू-हू’ ‘कू-हू’ गीत गीने लगी। और भी कई प्रकार के पक्षियों का पेड़ पर जमघट लगा रहता। मोहन खुश था, पर तभी भगवान ने उसके बाबा को अपने पास बुला लिया।
|
अन्य पुस्तकें
लोगों की राय
No reviews for this book