लोगों की राय

नेहरू बाल पुस्तकालय >> चोर मचाए शोर

चोर मचाए शोर

गिजुभाई बधेका

प्रकाशक : नेशनल बुक ट्रस्ट, इंडिया प्रकाशित वर्ष : 2008
पृष्ठ :44
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 6444
आईएसबीएन :978-81-237-5206

Like this Hindi book 9 पाठकों को प्रिय

226 पाठक हैं

लीजिए, ये बाल-कथाएं। बच्चे इन्हें खुशी-खुशी बार-बार पढ़ेंगे और सुनेंगे...

Chor Machaye Shor

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

शिक्षक भाई-बहनों से

लीजिए, ये हैं बाल-कथाएँ। आप बचचों को इन्हें सुनाइए। बच्चे इनको खुशी-खुशी और बार-बार सुनेंगे। आप इन्हें रसीले ढंग से कहिए, कहानी सुनाने के लहजे से कहिए। कहानी भी ऐसी चुनें, जो बच्चे की उम्र से मेल खाती हो। भैया मेरे, एक काम आप कभी न करना। ये कहानियाँ आप बच्चों को रटाना नहीं। बल्कि, पहले आप खुद अनुभव करें कि ये कहानियाँ जादू की छड़ी-सी हैं यदि आपको बच्चों के साथ प्यार का रिश्ता जोड़ना है तो उसकी नींव कहानी से डालें। यदि आपको बच्चों का प्यार पाना है तो कहानी भी एक जरिया है। पंडित बनकर भी कहानी नहीं सुनाना। कील की तरह बोध ठोकने की कोशिश नहीं करना। कभी थोपना भी नहीं। यह तो बहती गंगा है। इसमें पहले आप डुबकी लगाएँ, फिर बच्चों को भी नहलाएं।

चूहा बन गया शेर


एक था चूहा। एक रोज वह यों ही टहल रहा था कि रास्ते में उसे खादी का एक टुकड़ा मिला। सामने ही दरजी की दुकान थी। उसने जा कर कहा, ‘मियां, जरा इस खद्दर की एक टोपी तो सी दो।’ दरजी ने अगल-बगल देख कर हैरत जताई, ‘यह कौन बोल रहा है ?’ चूहे ने कहा, ‘मियां, नीचे देखो। मैं चूहा बोल रहा हूँ। फटाफट एक टोपी सी दो।’ दरजी बोला, ‘मुफ्त में ? चल, रास्ता नाप। वरना एक झापड़ ऐसा मारूँगा कि तू पापड़ बन जाएगा।’ चूहा बमका, ‘मियां, बकवास बंद करो और फौरन टोपी सी दो। वरना....

कचहरी में जाऊंगा, सिपाही को बुलाऊँगा,
हड्डी-पसली तुड़वाऊँगा, मुरब्बा बनाऊँगा’,

यह सुन कर दरजी कांप उठा। बोला, ‘हुजूर, ऐसा गजब मत करना। लाओ, मुझे कपड़ा दो। मैं अभी टोपी सी देता हूँ।’ चंद मिनटों में टोपी तैयार हो गई। चूहा टोपी पहन कर शान से आगे बढ़ा। अभी कुछ ही कदम चला था कि उसे कसीदेकार की दुकान नजर आई। चूहे ने कहा, ‘श्रीमानजी, मेरी टोपी में थोड़े से बेलबूटे तो काढ़ दो।’
कसीदेकार ने कहा, ‘मुफ्त में ? पागल है क्या ? यहाँ से फौरन चलता बन, वरना घुसा दूँगा यह सुई तो तू चिल्लाएगा, उई-उई।’
चूहा बमका,‘बकवास बंद करो और फटाफट कसीदा काढ़ दो। वरना....

कचहरी में जाऊंगा, सिपाही क बुलाऊँगा
हड्डी-पसली तुड़वाऊंगा, मुरब्बा बनाऊंगा’
यह सुन कसीदेकार बुरी तरह डर गया। बोला, ‘हुजूर, ऐसा गजब मत करना। मुझे टोपी दो। मैं अभी बेलबूटे काढ़ देता हूँ।’ फिर तो कसीदा कढ़ी टोपी पहन कर चूहा ठाट से आगे बढ़ा। कुछ कदम चलने पर मोतीवाले की दुकान दिखाई दी। चूहे ने कहा, ‘मिस्टर, मेरी टोपी में थोड़े मोती तो लगा दो।’
मोतीवाला बोला, ‘मुफ्त में ? क्या यह दुकान तेरे बाप की है ! चल, दफा हो जा यहां से। वरना चारों टागें तोड़ कर तेरी टोपी में रख दूँगा।’
चूहा बमका, ‘बकवास बंद करो और फटाफट मोती टांक दो। वरना....

कचहरी में जाऊँगा, सिपाही को बुलाऊंगा
हड्डी-पसली तुड़वाऊंगा, मुरब्बा बनाऊंगा’

यह सुन मोतीवाले की टांगें डगमगा गईं। बोला, ‘हुजूर, ऐसा गजब मत करना, लाओ, मुझे टोपी दो। मैं अभी मोती लगा देता हूँ।’
फिर तो चूहा बेलबूटे और मोतियोंवाली टोपी पहन कर आगे बढ़ा। अब तो सारे गाँव में उसकी धौंस जम गई थी। रास्ते में उसे एक डमरू बेचने वाला मिला। चूहे ने उससे डमरू मांगा डमरूवाले ने चूंचपड़ किए बिना डमरू तुरंत उसके हाथ में थमा दिया। अब चूहा सिर पर टोपी डाल डमरू बजाता हुआ आगे बढ़ा :

ढम ढम ढमाक ढम ढम ढमाक
ढम ढम ढमाक ढम ढम ढमाक......

चूहा नाचता, गाता, बजाता हुआ राजा के महल के आगे से गुजर रहा था। राजा झरोखे में खड़ा था। उसे देख चूहा इठला कर बोला :

वैसे तो राजा की टोपी बढ़िया लागे
लेकिन मेरी टोपी के आगे घटिया लागे
ढम ढम ढमाक ढम ढम ढमाक...

यह सुन राजा को आ गया गुस्सा। वह बोला, ‘हमारे ताज को चूहा टोपी कहता है और वह भी घटिया ! छीन लो उनकी टोपी।’ सिपाहियों ने चूहे की टोपी झपट ली। अब चूहा डमरू बजाते हुए गाने लगा :

कंगला है इस देश का राजा, मेरी टोपी छीन ली
क्या करेगी अब प्रजा यहां की, मेरी टोपी छीन ली
ढम ढम ढमाक ढम ढम ढमाक.....

राजा चिल्लाया, ‘क्या हम कंगले हैं ? लौटा दो उसकी टोपी!’ सिपाहियों ने तुरंत आदेश का पालन किया। अब चूहे ने नया राग छोड़ा !

कहलाता है शेरसिंह पर चूहे से भी डरता है
कैसा है यह महाराज जो डर-डर कर जीता है
ढम ढम ढमाक ढम ढम ढमाक.....

सच्चाई सुन कर राजा पगला गया। वह अपने ही बाल नोचने लगा। चूहा अपनी टोपी थोड़ी तिरछी करके नाचता-गाता-बजाता हुआ आगे बढ़ गया।

ढम ढम ढमाक ढम ढम ढमाक
ढम ढम ढमाक ढम ढम ढमाक.....

प्रथम पृष्ठ

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book