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अन्तः यात्रा

संजय

प्रकाशक : प्रकाशन संस्थान प्रकाशित वर्ष : 2008
पृष्ठ :87
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 6465
आईएसबीएन :81-7714-305-0

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महाकवि थॉमस ग्रे की अद्भुत कविताओं के शाश्वत सत्य का आईना- अन्तः यात्रा।

Antyatra - A Hindi Book by Sanjay

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

संभावनाओं के संकेत

संजय संवेदनशील, जिज्ञासु और प्रतिभासंपन्न युवा हैं तथा अध्ययन में इनकी गहरी रुचि है। हिंदी में प्रकाशित इनके काव्य-संग्रह से इनमें विद्यमान संभावनाओं के संकेत मिलते हैं। बांग्ला और अंग्रेजी साहित्य में भी संजय की गंभीर रुचि है।

स्मृतियां महाकवि ग्रे की कविताओं की आधार-भूमि है। जीवन के विभिन्न सोपानों, भवनों, नदियों, पहाड़ों आदि से जुड़ी स्मृतियों के शब्दचित्र उनकी काव्ययात्रा को समृद्ध करते हैं। ग्रे 18वीं सदी के कवि थे परंतु उनमें उन भावनाओं के बीज हैं जो डेढ़-दो सदियों में अंकुरित-पल्लवित होते हुए जनवादी साहित्य में अनुगुंजित हुए। ठीक वही भावनाएँ जो सुमित्रानंदन पंत, फैज अहमद फैज और साहिर लुधियानवी की ताजमहल पर लिखी गई कविताओं में मुखर होती हैं। वह वंचित एवं दमित वर्गों के संतापों से द्रवित थे। अपने कालजयी शोकगीत में महाकवि ग्रे ने मेहनतकश सामान्य जीवन को बड़ी तन्मयता से महिमामंडित किया है। जीवन-दर्शन की अंतर्धारा प्रवाहमान प्रतीत होती है। जब कवि कहता है—

शाश्वत सत्य केवल इतना
कितना भी हो गौरवमय जीवन
(हर) रास्ते का अंत होता
कब्र में......


अनूदित कविताओं के संकलन की संक्षिप्त भूमिका में संजय ने ठीक ही लिखा है—‘‘थॉमस ग्रे नचिकेता की तरह यम से प्रश्न नहीं करते, कृष्ण की तरह (अर्जुन को निमित्त बनाकर गीता में) जीवन-रहस्य नहीं बताते, किंतु जीवन की नश्वरता, उसकी क्षणभंगुरता के प्रति हमारे भावों को जागृत करने में सफल है।’’
रमेश नैयर
(वरिष्ठ पत्रकार)

युवा साहित्यकार श्री संजय की नवीन कृति अंतः यात्रा महाकवि ग्रे के साथ को अंतर्राष्ट्रीय प्रशंसा व सम्मान प्राप्त हुआ है। यूरोप की सर्वश्रेष्ठ यूनिवर्सिटी, ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी ब्रिटेन ने इस कृति को थॉमस ग्रे ऑर्चिव की बिब्लोग्राफी में शामिल किया है, तथा बेहद प्रतिष्ठित बोडलियन लाइब्रेरी (Bodleian Library) जो ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी की सेन्ट्रल रिसर्च लाइब्रेरी है, में शोध कार्य हेतु शामिल किया है। इसके अतिरिक्त यह कृति ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी की अधिकृत वेबसाइट पर भी उपलब्ध होगी। इस आशय का पत्र मि. अलेकजेन्डर हूबर ने, जो ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में थॉमस ग्रे ऑर्चिव के प्रमुख हैं, श्री संजय को भेजा है। श्री संजय ने इस कार्य के लिए उन्हें सहर्ष आधिकारिक अनुमति प्रदान की है। इस पत्र में श्री अलेकजेन्डर हूबर ने इसे अंग्रेजी साहित्य विशेषकर महाकवि थॉमस ग्रे ऑर्चिव के लिए अत्यन्त महत्त्वपूर्ण योगदान माना है तथा आशा व्यक्त की है कि इस कृति से महाकवि की कवितायें और अधिक प्रसारित होंगी। इस महत्त्वपूर्ण उपलब्धि से छत्तीसगढ़ के साहित्य जगत, शिक्षा जगत में व्यापक हर्ष है। श्री संजय छत्तीसगढ़ के प्रथम स्कॉलर हैं, जिनकी कृति को इतना महत्त्वपूर्ण सम्मान प्राप्त हुए है। वरिष्ठ पत्रकार व छत्तीसगढ़ हिन्दी ग्रन्थ अकादमी के निदेशक श्री रमेश नैयर ने इसे पबरे छत्तीसगढ़ राज्य के लिए गौरव का क्षण बताया है। ज्ञात हो की इस कृति की भूमिका श्री नैयर ने लिखी है। भारतीय साहित्य अकादमी के सदस्य व वरिष्ठ साहित्यकार श्री गिरिश पंकज ने इस उपलब्धि पर श्री संजय को बधाई दी है। शासकीय कन्या महाविद्यालय में अंग्रेजी विभाग प्रमुख डॉ. गुलशन दास ने इस महत्त्वपूर्ण उपलब्धि पर प्रसन्नता व्यक्त की है। डॉ. भारती भट्टाचार्य प्राचार्य नवीन कन्या महाविद्यालय ने अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा है कि ये श्री संजय जी सच्ची लगन और साहित्य के प्रति पूर्ण समर्पण का परिणाम है। बंगला रंग कर्मी श्रीमती नमिता घोष के अनुसार संजय की यह कृति हिन्दी साहित्य की कलजयी कृति मानी जायेगी। भाषाविद् डॉ. विनय कुमार पाठक के अनुसार यह हिन्दी व अंग्रेजी साहित्य के मध्य सेतु का कार्य करेगी। इस कृति का विमोचन अगामी माह आयोजित किया जा रहा है। इस कार्यक्रम में राष्ट्रीय स्तर के विद्वान विचार रखेंगे। यह कृति देश के प्रतिष्ठित हिन्दी प्रकाशक, प्रकाशन संस्थान नई दिल्ली ने प्रकाशित की है। ज्ञात हो, श्री संजय के प्रथम कृति अनन्त यात्रा की चर्चा पूरे देश में रही व विश्व हिन्दी सचिवालय, मॉरिशस द्वारा प्रशंसित की गई थी।
(डॉ. विनय कुमार पाठक)

महाकवि थामस ग्रे

थॉमस ग्रे अंग्रेजी साहित्य के महाकवि हैं। थॉमस ग्रे का अंग्रेजी साहित्य में वही महत्त्व है, जो हिन्दी साहित्य में कबीर, तुलसीदास या महादेवी वर्मा का है। थॉमस ग्रे को जनवादी साहित्य का पितामाह कहा जा सकता है। 18वीं सदी में जब काव्य की विषय वस्तु श्रृंगार, भक्ति अथवा राज प्रशंसा थी, उस काल में थॉमस ग्रे ने सर्वप्रथम शोषितों, निर्धनों व अवसरों से वंचित वर्ग के पक्ष में लिखा। उनकी कालजयी कृति एलिजी रिटन इन कॉन्ट्री चर्चयार्ड, जो अंग्रेजी साहित्य की सर्वाधिक लोकप्रिय कविता मानी जाती है, उसमें इस महाकवि ने सामंती, आभिजात्य वर्ग पर प्रहार करते हुए शोषितों के पक्ष में इसकी रचना की। मधुर तराना, प्रामाणिक अनुभूति, कोमल अवसाद, विशिष्ट शिल्पकौशल, संघनित भावाभिव्यक्ति, प्रकृति प्रेम, अतीतजीविता तथा आम आदमी के प्रति उफ़नती सहानुभूति महाकवि थॉमस ग्रे के अल्पलिखित किन्तु कालजयी रचनासंसार का गुणसूत्र है।

ग्रे की अद्भुत कविताओं के शाश्वत सत्य का आईना
अन्तः यात्रा

स्मृतियों की ज़मीन पर कविताओं के फूल खिलाए हैं अंग्रेजी के महाकवि थॉमस ग्रे ने। उनकी रचनाओं से विकसित जीवन दर्शन ने पूरबी फलसफ़े से अटूट तादात्म्य स्थापित किया है। मूलतः निराशावादी कवि की पलायन प्रवृत्ति जीवन की भौतिकता से दूर भागती है। फिर भी ग्रे की कविताएं निराशा की कोखजनी पॉजिटिविटी का पैना प्रतिबिंब हैं। यह अलग बात है कि आम आदमी की सतही-सोच इन कविताओं का मर्म नहीं समझ पाती। पर भारतीय दर्शन के निकटतम हैं ग्रे।

‘‘अन्तःयात्रा महाकवि ग्रे के साथ’’ युवा रचनाधर्मी संजय की ऐसी अनुवाद कृति है जिसमें थॉमस ग्रे की पाँच रचनाएँ रचनाकार की साहित्यिक संवेदनशीलता का साक्षात्कार कराती हैं। महिला स्नातकोत्तर कॉलेज की अंग्रेजी विभागाध्यक्ष डॉ. गुलशन दास की यह टिप्पणी, ‘‘अनूदित रचनाएँ मूल काव्य के लोकाचार-मिथ तथा रहस्यवादी अनुभव का ईमानदार अक्स है’’ अनुवाद की प्रांजलता पर हामी भरती है। शोकगीत, ईटन कॉलेज की स्मृतियां, वसंतगीत, आनंद आगमन का गीत तथा दैवी विपदा की स्तुति जैसी कविताओं ने साबित किया है- ग्रे इज़ ग्रेट। मीडिया गुरु रमेश नैय्यर का यह कथन निश्चित तौर पर मायने रखता है कि 18वीं सदी की भावनाएं जनवादी साहित्य में भी थॉमस ग्रे के जरिए डेढ़ दो सदियों बाद अंकुरित हुईं। ‘‘वैयक्तिक शोकगीतों को ग्रे की महानता अनुश्रुति बना देती है’’ इन शब्दों के साथ भाषाविद् व वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. विनय पाठक कहते हैं ‘‘ग्रे के काव्य से उत्सर्जित दर्शन की नज़ीरें दलित, शोषित और उत्पीड़ितों के स्वर की तुमुल ध्वनि हैं’’। यह सत्य ग्रे की सहज जीवन मीमांसा को सराह कर उन्हें समकालीन साहित्यकारों से पृथक मंच पर प्रतिष्ठित करता है।

बज़रिया अन्तःयात्रा संजय ने अंग्रेजी से काव्यानुवाद के दौरान तुकबंदी करने पर काव्य की आत्मा आहत होने का अंदेशा तथा अतुकांत या छंदमुक्त काव्यानुवाद से रचना के नीरस और उबाऊ होने की स्थिति यदाकदासामने दिखाई देती है। काव्य कलश में कंकर का कोलाहल नहीं रिदम की छम-छम या नेज़े का पैनापन और आइने की तरह अनुवाद को धर दिया जाना बेहतर लगता है। परिवर्तन की छूट का सहज अंतर्निहित अधिकार संकोची संजय किसी एजेंडा, के तहत प्रयोग करते हुए दिखाई नहीं देते। और यही अंतर्द्वंद्व उन्हें यह स्पष्टोक्ति करने पर विवश करता है, ‘‘ग्रे को अनूदित करना दुष्कर है’’. जनवादी कवि डॉ इंद्रबहादुर के शब्दों में, ‘अनुवाद परकाया प्रवेश है। लेकिन, संजय परकाया प्रवेश के दरम्यान कभी आत्ममुग्ध, कभी बदहवाश तो कभी अबूझताकी स्थिति में छटपटाते से भी नज़र आते हैं। यही उनका ऊर्जा केंद्र होना चाहिये।

सच कहा जाय तो महाकवि थॉमस ग्रे ही नहीं अनेक आंग्ल भाषी काव्यसृजकों की धाराओं के परस्पर विरोधी अंतरप्रवाह ऐसे भंवर हैं जिनपर अनुवाद जगत में बहस होनी चाहिए। ‘भविष्य की अज्ञानता मानव को सुखी बनाती है। ग्रे की यह चर्चित सूक्ति कुछ अपवादों के साथ समय सापेक्ष है क्योंकि अब अज्ञानता का स्थान संसाधन संपन्नता से उपजी उत्कंठा व खोजी प्रवृत्ति ने ले लिया है।

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