अतिरिक्त >> ग्वालियर संभाग में व्यवहृत बोली रूपों का भाषा वैज्ञानिक अध्ययन ग्वालियर संभाग में व्यवहृत बोली रूपों का भाषा वैज्ञानिक अध्ययनसीता किशोर
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ग्वालियर संभाग में व्यवहृत बोली रूपों का भाषा वैज्ञानिक अध्ययन
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
इस शोध-प्रबन्ध को 9 अध्यायों के अन्तर्गत
वर्गीकृत करके विश्लेषण किया गया है। प्रस्तावना के अन्तर्गत ग्वालियर
संभाग का सामान्य परिचय, सीमा, विस्तार, क्षेत्रफल, जनसंख्या, धरातल,
जलवायु, वनस्पति, पशु-पक्षी, उपज, व्यवसाय और जातियों का सामान्य परिचय है।
प्रथम अध्याय में भाषायी सीमा, सामान्य बोली-रूप, विश्लेषण का आधार व्याकरणिक-स्वरूप, प्राचीन लिखित गद्य-रूप सम्मिलित करके इन बोली-रूपों का राज्यभाषा, काव्य भाषा और लोक भाषा के रूप में विकास का विवेचन किया गया है। शब्द-संपत्ति का वर्गीकरण, घारों के बोली-रूप तथा इन घारों में व्यवहृत होने वाले बोली-रूपों के नमूने सम्मिलित किये गये हैं।
द्वितीय अध्याय के अन्तर्गत इन बोली रूपों में व्यवहृत स्वर, व्यंजनों को आधार बनाकर ध्वनि-सम्बन्धी विश्लेषण है। संधियाँ, द्वित्व, आगम, लोप, विपर्यय, समीकरण, परिवर्तन, दीर्घता, हृस्वता, बलाघात, सुर और सुर लहर का विवरण व्यवहृत बोलियों के नमूनों को आधार मानकर दिया गया है।
प्रथम अध्याय में भाषायी सीमा, सामान्य बोली-रूप, विश्लेषण का आधार व्याकरणिक-स्वरूप, प्राचीन लिखित गद्य-रूप सम्मिलित करके इन बोली-रूपों का राज्यभाषा, काव्य भाषा और लोक भाषा के रूप में विकास का विवेचन किया गया है। शब्द-संपत्ति का वर्गीकरण, घारों के बोली-रूप तथा इन घारों में व्यवहृत होने वाले बोली-रूपों के नमूने सम्मिलित किये गये हैं।
द्वितीय अध्याय के अन्तर्गत इन बोली रूपों में व्यवहृत स्वर, व्यंजनों को आधार बनाकर ध्वनि-सम्बन्धी विश्लेषण है। संधियाँ, द्वित्व, आगम, लोप, विपर्यय, समीकरण, परिवर्तन, दीर्घता, हृस्वता, बलाघात, सुर और सुर लहर का विवरण व्यवहृत बोलियों के नमूनों को आधार मानकर दिया गया है।
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