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			 अतिरिक्त >> लोकोक्ति एवं मुहावरा कोश लोकोक्ति एवं मुहावरा कोशराजकुमार सिंह, जगदीश चन्द्र यादव
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कन्नौजी लोकोक्तियों व मुहावरों का संग्रह करते समय हमने जो अनुभूति की है, उसे अभिव्यक्त करना सर्वथा दुरूह है। फिर भी उसके शतांश को प्रस्तुत करने का यहाँ प्रयास किया जा रहा है।
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
‘‘हमारे देश के पास, जन साधारण के पास भाषा का ऐसा भण्डार है कि हम उसकी उपेक्षा करके दर्शन और विज्ञान के ग्रन्थ भले ही लिख लें, बातचीत नहीं कर सकते। आम आदमी की बातचीत में मस्तिष्क का मायाजाल नहीं, हृदय की सरल सरसता होती है।’’
कन्नौजी लोकोक्तियों व मुहावरों का संग्रह करते समय हमने जो अनुभूति की है, उसे अभिव्यक्त करना सर्वथा दुरूह है। फिर भी उसके शतांश को प्रस्तुत करने का यहाँ प्रयास किया जा रहा है।
लोक मानव के पास चुटकुलों, लोकोक्तियों, कहावतों, मुहावरों, ढकोसलों, पहेलियों का ऐसा खजाना है, जिसकी तुलना में शिष्ट साहित्य, उसके पासंग भर भी नहीं है। किसी देश के शिष्ट साहित्य से पूर्णतया परिचित होने के लिए उसके लोक साहित्य का अध्ययन अत्यन्त आवश्यक है। शिष्ट साहित्य का लोक साहित्य से घनिष्ठ सम्बन्ध है। वास्तविक बात तो यह है कि शिष्ट साहित्य लोक साहित्य का ही विकसित, संस्कृत तथा परिमार्जित स्वरूप है।
			
		  			
			लोक मानव के पास चुटकुलों, लोकोक्तियों, कहावतों, मुहावरों, ढकोसलों, पहेलियों का ऐसा खजाना है, जिसकी तुलना में शिष्ट साहित्य, उसके पासंग भर भी नहीं है। किसी देश के शिष्ट साहित्य से पूर्णतया परिचित होने के लिए उसके लोक साहित्य का अध्ययन अत्यन्त आवश्यक है। शिष्ट साहित्य का लोक साहित्य से घनिष्ठ सम्बन्ध है। वास्तविक बात तो यह है कि शिष्ट साहित्य लोक साहित्य का ही विकसित, संस्कृत तथा परिमार्जित स्वरूप है।
						
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