बहुभागीय पुस्तकें >> राम कथा - दीक्षा राम कथा - दीक्षानरेन्द्र कोहली
|
1 पाठकों को प्रिय 314 पाठक हैं |
राम कथा पर आधारित उपन्यास, प्रथम सोपान
वनजा उठ खड़ी हुई। उसकी आंखों में अब भी अश्रु थे, किंतु ये अश्रु व्यथा के न होकर, कृतज्ञता के थे। उसने मुस्कराने का प्रयत्न किया, और उस प्रयत्न में पुनः रो पड़ी।
तभी गगन ने आकर अपना माथा धरती पर टेक दिया, ''मैं धन्य हुआ राम। आपका प्रभाव मैं जान गया आर्य! आप जहां-जहां जाएंगे, अनेक रामों का निर्माण करेंगे। आपके चरण जिस धरती पर पड़ेंगे, वहीं अत्याचार के विरुद्ध लोग उठ खड़े होंगे। रघुवर! मैं आपको वचन देता हूं कि इन युवतियों को मैं अपनी भगिनी के सम्मान के साथ रखूंगा। आपका दिया दायित्व सफलतापूर्वक पूर्ण कर, आपके विश्वास की रक्षा करूंगा...''
वृद्ध गुरु की आंखों से अश्रु टपककर दाढ़ी में खो गए। कंठ को स्वच्छ करते हुए धीमे स्वर में बोले; ''पुत्र राम! आओ अब चलें।''
|
- प्रथम खण्ड - एक
- दो
- तीन
- चार
- पांच
- छः
- सात
- आठ
- नौ
- दस
- ग्यारह
- द्वितीय खण्ड - एक
- दो
- तीन
- चार
- पांच
- छः
- सात
- आठ
- नौ
- दस
- ग्यारह
- बारह
- तेरह