लोगों की राय

बहुभागीय पुस्तकें >> राम कथा - दीक्षा

राम कथा - दीक्षा

नरेन्द्र कोहली

प्रकाशक : हिन्द पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 1997
पृष्ठ :182
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 6497
आईएसबीएन :21-216-0759-0

Like this Hindi book 1 पाठकों को प्रिय

314 पाठक हैं

राम कथा पर आधारित उपन्यास, प्रथम सोपान

''देवराज मदिरापान करते हैं?'' राम के स्वर का आवेश मुखर था।

''हां पुत्र।'' विश्वामित्र विषादपूर्ण स्वर में बोले, ''यह अत्यंत दुखद और शोचनीय प्रसंग है राम! आर्य-संस्कृति से मूलभूत स्रोत, देव जातियों ने अपने वैभव से विक्षिप्त होकर, भोग की ओर मदांध पग बढ़ाए हैं। उनके क्षय का मूल कारण उनका यही विलास है पुत्र! अपने इस विलास के कारण ही अनेक बार उन्हें राक्षसों, दैत्यों तथा अन्य जातियों के हाथों पराजित होना पड़ा है। वैभव अपने-आप में विष भी होता है पुत्र! यदि व्यक्ति में चरित्र की दृढ़ता, आत्मबल और जनकल्याणोन्मुखी दृष्टि न हो तो वह जाति के वैभव को, निजी वैभव मानकर, सम्पूर्ण प्रजा में समान वितरण न कर, स्वयं उसका भोग आरम्भ कर देता है। यह अत्यन्त खेदपूर्ण तथ्य है पुत्र, कि देव जातियों के अनेक शासकों ने विलास तथा चरित्रहीनता की सीमाओं का बुरी तरह अतिक्रमण किया है...।''

''तो लोग ऐसे चरित्रहीनों का सम्मान क्यों करते हैं?'' लक्ष्मण के मन की तड़प उनके चेहरे पर अंकित थी, "चरित्रहीन व्यक्ति तो कितना भी समृद्ध, वैभवशाली तथा सत्तासम्पन्न क्यों न हो, आग्रहपूर्वक उसका अपमान किया जाना चाहिए। धन, सत्ता, पद अथवा ज्ञान की औषध से चरित्रहीनता का विष तो नहीं कटता गुरुदेव। मेरी मां कहती हैं कि चरित्रहीन का कदापि सम्मान मत करो, चाहे वह स्वयं तुम्हारा पिता ही क्यों न हो।''

"तुम्हारी मां एकदम ठीक कहतीं हैं पुत्र!'' विस्वामित्र धीमे से मुस्कराए, "किंतु सौमित्र! न तो हर किसी की मां देवी सुमित्रा जैसी तेजस्विनी होती है, और न हर पुत्र लक्ष्मण-सा जाज्वल्यमान अनल होता है...।''

"किंतु गुरुदेव!'' राम का स्वर अत्यंत गंभीर था, ''साधारण जन जो भी करें, ऋषि क्यों पद, सत्ता, शक्ति अथवा समृद्धि से अभिभूत होकर ऐसे चरित्रहीन व्यक्ति का न केवल स्वागत करता है, वरन् उसे विशेष सुविधाएं देता है? यह क्या ऋषि-कर्म है? मैं ऐसे ऋषि को समाज में चरित्रहीनता को प्रोत्साहित करने का दोषी ठहराता हूं। उसे उसका दंड मिलना चाहिए।''

विश्वामित्र क्षण-भर के लिए अवाक् रह गए। राम चिंतन की मौलिक कसौटी है। वह आप्त वचनों को, आहत चरित्रों को, आप्त प्रथाओं को, चुपचाप स्वीकर नहीं करेगा। गुरु की आंखें किसी पीड़ा से भीग उठीं। कंठ में जैसे कुछ अटक गया...ब्रह्मचारियों की मंडली स्तब्ध खड़ी गुरु की पीड़ा देख रही थी...।

गुरु ने अपने-आपको संभाला, "मैं तुमसे सहमत हूं राम कि वह ऋषि कर्म नहीं है। ऋषि का स्वरूप न्याय-स्वरूप है; किन्तु ऋषि भी मनुष्य है पुत्र! प्रत्येक ऋषि, मानवीय दुर्बलताओं से शून्यपूर्ण, न्याय-स्वरूप हो ही जाए, यह आवश्यक नहीं है...।''

"'ऋषिवर।'' लक्ष्मण का उत्तेजित कंठ फूटा।

''ठहरो लक्ष्मण। क्रोध न करो।'' विश्वामित्र बोले, "मैं गौतम के इस कृत्य का समर्थन नहीं कर रहा। मैं तो यह कह रहा हूं कि परम्परा से चली आती अनेक मर्यादाओं को, सामान्य लोग, मन से कहीं असहमत होते हुए भी, ढोते चले जाते हैं। जब कोई क्रांतिकारी मौलिक व्यक्तित्व उन मर्यादाओं पर प्रहार करता है, तभी वे मर्यादाएं दूटती हैं और जनसामान्य उनका उल्लंघन कर पाता है। गौतम तपस्वी हैं, ज्ञानी हैं, सच्चरित्र हैं, किन्तु उनके व्यक्तित्व में मौलिक क्रांति का तत्व नहीं है...। पर फिर भी दंड मिला, गौतम को बहुत बड़ा दंड मिला पुत्र...।'' विश्वामित्र की पीड़ा गहरा गई। उनका स्वर रुंध गया।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

    अनुक्रम

  1. प्रथम खण्ड - एक
  2. दो
  3. तीन
  4. चार
  5. पांच
  6. छः
  7. सात
  8. आठ
  9. नौ
  10. दस
  11. ग्यारह
  12. द्वितीय खण्ड - एक
  13. दो
  14. तीन
  15. चार
  16. पांच
  17. छः
  18. सात
  19. आठ
  20. नौ
  21. दस
  22. ग्यारह
  23. बारह
  24. तेरह

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book

A PHP Error was encountered

Severity: Notice

Message: Undefined index: mxx

Filename: partials/footer.php

Line Number: 7

hellothai