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राम कथा - संघर्ष की ओर

नरेन्द्र कोहली

प्रकाशक : हिन्द पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 1997
पृष्ठ :168
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 6499
आईएसबीएन :21-216-0761-2

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राम कथा पर आधारित उपन्यास, तीसरा सोपान

"तुम लोग काफी समर्थ हो गए हो।" लक्ष्मण मुस्कराए, "अच्छा मैं मुखर को भी ले जा रहा हूं। पर तुम लोग कुटीरों के साथ-साथ संध्या तक दो-तीन मचान भी बना लेना, ताकि कम प्रहरियों से काम चल सके।"

लक्ष्मण और मुखर आश्रम में लौट आए। मुखर अपनी कुटिया में चला गया, उसे अनेक व्यवस्थाएं देखनी थीं; और लक्ष्मण आश्रम के केन्द्र से हटकर बनी हुई बाल-वाड़ी की ओर बढ़ गए।

"सौमित्र आ गए! सौमित्र आ गए!!" बच्चों में शोर मच गया और वे लोग अपनी-अपनी जगह पर उठ खड़े हुए।

"बैठो। बैठो।" लक्ष्मण ने उनके सिर पर हाथ फेरा, "बताओ कि तुम लोगों ने अब तक कितना काम किया है?"

बच्चे बड़े दायित्वपूर्ण भाव से अपने-अपने स्थान पर लौट गए।

पांच-छः वर्ष की आयु से लेकर बारह-तेरह वर्ष तक के बच्चे वहां थे-लड़के भी, लड़कियां भी। उनकी अलग-अलग टोलयां बनाई गई थीं और प्रत्येक टोली का एक नेता था। प्रत्येक नेता, लक्ष्मण के पास आकर अपनी टोली के काम का विवरण दे रहा था। उन्हें लकड़ी के खड्ग तथा सरकंडों के बाण बनाने का काम सौंपा गया था। लक्ष्मण उनके द्वारा बनाई गई वस्तुओं का निरीक्षण कर रहे थे। वे उनकी अपेक्षा के अनुकूल ही थीं। नव प्रशिक्षित सैनिकों के अभ्यास के लिए वे बाण और खड्ग, दोनों ही ठीक काम कर सकते थे। निरीक्षण हो चुका तो लक्ष्मण ने पूछा, "आज तुम लोगों ने और क्या-क्या किया?"

"प्रातः खेल और व्यायाम।" दस वर्षीय धीर बोला, "फिर ब्रह्मचारी भैया ने अक्षर सिखाए और गिनती भी। और फिर हमने युद्ध-प्रशिक्षण सामग्री तैयार की।" लक्ष्मण ने प्रशंसा के भाव से उसे देखा। धीर पर्याप्त गंभीर ऑर दायित्वपूर्ण वयस्क के समान बात कर रहा था। महत्त्व का भाव प्रायः बच्चों के चेहरों पर दिखाई पड़ रहा था।

"भोजन हो गया?"

"हां।"

"निरीक्षक कौन थे?" कई बच्चे अपने स्थानों से खिसककर आगे आ गए। वह सब दस-बारह वर्ष की आयु के बच्चे थे।

"छोटे बच्चों को ठीक से, उनके पास बैठकर किला दिया था न?"

"अच्छी प्रकार।" नौ वर्षीया मिता ने आश्वस्त कंठ से कहा, "सीता दीदी ने अच्छा काम करने के लिए हमारे विषय में विशेष रूप से प्रशस्ति वचन कहे हैं।"

"सच! तब तो तुम लोग योग्य बच्चे हो।" लक्ष्मण हंसे, "अब यह बताओ कि किस-किस को माता-पिता की याद आई और किस-किस को यह काम अच्छा नहीं लगा?"

"कोई भो नहीं रोया!" धीर से बताया।

"और काम?"

"काम सब को खेल के समान प्रिय लगा।" मिता बोली।

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    अनुक्रम

  1. एक
  2. दो
  3. तीन
  4. चार
  5. पांच
  6. छह
  7. सात
  8. आठ
  9. नौ
  10. दस
  11. ग्यारह

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