बहुभागीय पुस्तकें >> राम कथा - संघर्ष की ओर राम कथा - संघर्ष की ओरनरेन्द्र कोहली
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राम कथा पर आधारित उपन्यास, तीसरा सोपान
"एक प्रश्न!" ब्रह्मचारी कृतसंकल्प ने अपनी जिज्ञासा प्रकट की।
"पूछो!"
"यदि हम समाज की सुरक्षा के लिए सैनिक-कर्म करेंगे, तो हमारी आवश्यकताओं का बोझ हमारे समाज पर पड़े तो क्या बुराई है? हम अपना रक्त समाज के लिए बहाएंगे तो क्या यह समाज का दायित्व नहीं है कि वह हमारी आवश्यकताओं की पूर्ति करे? यदि हम स्वयं अपने लिए अन्न उत्पन्न करेंगे, तो हम समाज का कृषक-अंग हो गए। उसके बाद यदि हम सैनिक-कर्म करते हैं, तो हम दोगुना काम करते हैं। क्या आपको नहीं लगता कि यह समाज द्वारा हमारा शोषण होगा?"
राम मुस्कराए, "तुम्हारा प्रश्न बहुत ही उपयुक्त है "कृतसंकल्प! ऐसी कोई भी ग्रंथि रह जाएगी, तो काम में तुम्हारा मन नहीं लगेगा।" राम रुककर बोले, "इस प्रश्न का उत्तर कौन देगा?"
कोई भी उत्तर देने को प्रस्तुत नहीं हुआ। इसका अर्थ यह हुआ कि शेष लोग भी कृतसंकल्प से सहमत हो सकते हैं।" राम बोले, "कृतसंकल्प ने अपने विचार आपके सामने रखे हैं। अब मैं अपने विचार रख रहा हूं। मेरा और कृतसंकल्प का कोई विरोध नहीं है; किंतु इस मतभेद में से जो विचार हमें ठीक लगे, उसे ही अंगीकार करना है।"
"ठीक है।"
"एक समाज होता है," राम बोले, "जो स्वार्थ-बुद्धि से चलता है, दूसरा समाज है जो परिवार-बुद्धि से चलता है। स्वार्थ-बुद्धि से चलने वाला समाज राक्षसी समाज है। उसमें प्रत्येक व्यक्ति यह सोचता है कि किस काम से उसे कौन-सा निजी लाभ होगा। जिस काम से उसे निजी लाभ होगा, उसे वह अवश्य करेगा, चाहे शेष लोगों की उससे कितनी ही हानि क्यों न हो। और जिस काम में उसको कोई लाभ न हो, किंतु अन्य सहस्रों लोगों का लाभ होता हो-उस काम को वह कभी नहीं करेगा। दूसरी और वह समाज है, जो परिवार-बुद्धि से चलता है। आप अपने परिवार का उदाहरण लें। दोषपूर्ण अपवादों को छोड़ दें तो परिवार मे सामान्यतः एक-दूसरे के प्रति सद्भावपूर्ण व्यवहार होता है। माता-पिता आजीविका उपार्जित करते हैं, या केवल पिता धनार्जन करता है, किंतु सबसे अधिक व्यय बच्चों पर किया जाता है। यदि एक व्यक्ति रुग्ण हो जाए, तो हम उसके भाग का कार्य भी कर देते हैं। पिता समर्थ है, अतः वह बाहर का काम कर आजीविका अर्जित करता है; घर में जो भी कठिन कार्य है-जिसे पत्नी और बच्चे नहीं कर सकते, वह भी करता है और यथाआवश्यकता अपने परिवार की रक्षा भी करता है। कारण? वह समर्थ है और स्वयं को परिवार से भिन्न नहीं मानता। यदि किसी दुर्घटनावश पति पंगु हो जाए तो पत्नी बाहर का काम कर धनार्जन भी करती है, पति की सेवा भी करती है, बच्चों को भी देखती है और घर का खाना-पकाना भी करती है। यदि किसी परिवार के सदस्यों का परस्पर व्यवहार स्वार्थ-बुद्धि से परिचालित हो तो क्या वह परिवार सुचारु रूप से चल पाएगा? क्यों कृतसंकल्प?"
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