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राम कथा - संघर्ष की ओर

नरेन्द्र कोहली

प्रकाशक : हिन्द पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 1997
पृष्ठ :168
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 6499
आईएसबीएन :21-216-0761-2

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राम कथा पर आधारित उपन्यास, तीसरा सोपान

"ओह!" राम बोले, "वस्तुतः मैं अपने विषय में सोचते-सोचते, सौमित्र के विषय में भी सोचता रहा हूं। वह पच्चीस वर्ष पूरे कर चुका है। हम अयोध्या में होते तो उसके विवाह की चर्चा वहां सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण विषय होता।"

"तो आप लक्ष्मण से पूछ लें।" सीता भी गंभीर हो गईं, "यदि उनकी दृष्टि किसी कन्या पर हो...।"

कुटिया के बाहर से लक्ष्मण का स्वर आया, "भैया!"

"आ गए सौमित्र!"

राम और सीता, कुटिया से बाहर निकल आए।

लक्ष्मण वृक्ष के तने से पीठ लगाए, थके-से भूमि पर बैठे थे। उन्होंने न केवल हाथ की कुल्हाड़ी भूमि पर रख दी थी, वरन् कमर से खड्ग तथा कंधों से तूणीर भी उतारकर भूमि पर डाल दिए थे।

"आज बहुत काम किया।" सीता बोलीं, "जल लाऊं?"

लक्ष्मण सचमुच बहुत थके हुए थे। अपने सहज रूप में मुस्कराकर स्वभावानुसार कोई कटाक्ष नहीं कर सके; केवल सिर हिलाकर सहमति दे दी। जल पीकर उनमें कुछ स्फूर्ति आई। वे सीधे होकर बैठ गए, "भैया! यहां से आनन्द सागर आश्रम तथा भीखन के गांव तक ही नहीं, उसके भी बहुत आगे तक अनेक छोटे-छोटे ग्रामों और आश्रमों को घेरकर, हमने संचार-प्रबंध किया है।..."

"तुम तो अन्न का प्रबन्ध करने जाने वाले थे।" सीता बोलीं।

"वह भी कर दिया है।" लक्ष्मण धीमे से बोले, "किंतु भीखन के आ जाने से स्थिति बदल गई थी। शस्त्रागार की सुरक्षा का प्रबंध कर, मैं भी मुखर के साथ चला गया था। कुछ चौकियां स्थापित कर दी हैं। और प्रशिक्षकों का एक दल काम पर लगा दिया है। मेरा विचार है कि सप्ताह भर में ऐसी स्थिति हो जाएगी कि इस क्षेत्र में किसी राक्षस के घुसते ही वन का पत्ता-पत्ता झनझना उठेगा।"

"इसकी बहुत आवश्यकता थी, लक्ष्मण!" राम बोले, "अब यह क्षेत्र पुनः राक्षसों की शोषण-भूमि नहीं बनने दिया जाएगा।"

प्रायः सभी लोग अपने-अपने कार्य से शीघ्र लौट आए थे। संध्या समय साप्ताहिक गोष्ठी थी, जिसमें सप्ताह में निश्चित किए गए कार्य की प्रगति पर विचार होना था; और आगे का कार्यक्रम निश्चित होना था।

आश्रम के केन्द्र में सभी प्रमुख लोग वृत्ताकार बैठे थे; बस्ती तथा आश्रम के अनेक अन्य लोग भी गोष्ठी में होने वाली चर्चा को सुनने आए थे। आवश्यकतानुसार विचार-विमर्श में भाग लेने की अनुमति सबको ही थी, इसलिए प्रायः ही ऐसी भीड़ हो जाया करती थी।

"भद्र राम!" कार्यवाही आरंभ होते ही अनिन्द्य बोला, "आज प्रातः से ही, यह सूचना बहुत प्रचारित हुई है कि आप इस आश्रम को छोड़ अन्यत्र जाना चाहते हैं..."

"अनिन्द्य!" राम ने उसे टोक दिया, "यह उचित नहीं कि समाचारों की पुष्टि-अपुष्टि का कार्य अंत के लिए छोड़ दिया जाए?"

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    अनुक्रम

  1. एक
  2. दो
  3. तीन
  4. चार
  5. पांच
  6. छह
  7. सात
  8. आठ
  9. नौ
  10. दस
  11. ग्यारह

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