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राम कथा - संघर्ष की ओर

नरेन्द्र कोहली

प्रकाशक : हिन्द पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 1997
पृष्ठ :168
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 6499
आईएसबीएन :21-216-0761-2

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राम कथा पर आधारित उपन्यास, तीसरा सोपान

"इससे क्या होगा?" आनन्द सागर बोले।

"देखना यह है कि भय के नीचे दबे उनके भूमि-प्रेम पर क्या

प्रभाव पड़ता है। कल प्रातः उनका भाव स्पष्ट हो जाएगा।" राम मुड़े, "मुखर! अब तुम्हारी संचार-व्यवस्था की परीक्षा है। अनिन्द्य को संदेश भेजो। कल प्रातः तक वह अपने साथियों के साथ कुछ हल-बैल और कुदाल लेकर यहां उपस्थित हो जाए।"

"गांव वाले बाहर के लोगों को अपनी भूमि जोतते देख नहीं पाएंगे।" सीता बोलीं।

"उनके इसी भाव को जगाना है।" राम बोले, "इन पर भय का रंग कुछ अधिक ही गहरा है।"

प्रातः यद्यपि आश्रमवासियों में कुछ उत्साह नहीं था, फिर भी आश्रम का वातावरण पर्याप्त बदला हुआ था। ब्रह्मचारियों की तीन टुकड़िया बना दी गई थीं; और एक-एक टुकड़ी लक्ष्मण, सीता तथा मुखर के नेतृत्व में शस्त्राभ्यास कर रही थी। राम अपनी जन-सेना तथा उनके साथ आए हुए हल-कुदाल के साथ खेतों पर जाने के लिए उद्यत थे; केवल भीखन की प्रतीक्षा थी।

भीखन आया तो उसने ग्राम का समाचार दिया : भूमि-वितरण की सूचना ग्राम में प्रचारित कर दी गई थी। लोगों में उत्सुकता तो जाग्रत हुई थी, किंतु कोई स्पष्ट प्रतिक्रिया नहीं हुई। किसी ने भी गांव के बाहर के लोगों में गांव की भूमि वितरित करने का कोई स्पष्ट विरोध नहीं किया था, जैसी कि राम को अपेक्षा थी। राम कुछ देर सोचते रहे; फिर बोले, "आओ भीखन! हम खेतों पर चलें।"

ये लोग खेतों की ओर चले। "उत्सुकता तो उनमें जागी है।"

राम बोले, "इसका अर्थ यह हुआ कि भूमि में उनकी राचि तो है, किंतु राक्षसों के आतंक के कारण भूमि ग्रहण करने का साहस नहीं कर रहे हैं। या फिर कदाचित् उन्हें लगा हो कि भूमि-वितरण की बात केवल बात ही है; उन्हें विश्वास नहीं है कि भूमि, राक्षसों के सिवाय किसी अन्य व्यक्ति को भी मिल सकती है। हमें अपने वचन को कर्म रूप में परिणत करना होगा-कर्म से बड़ा प्रमाण दूसरा नहीं होता।"

राम ने देखा, खेतों के आस-पास दो-चार लोग मंडरा रहे थे। राम ने भीखन की ओर प्रश्नवाचक दृष्टि से देखा। भीखन भी उन्हीं को देख रहा था और उनके मुख पर आश्चर्य का भाव स्पष्ट था।

"ये तो हमारे ही गांव के लोग हैं।" भीखन जैसे अपने-आप से कह रहा था, "ये यहां क्या कर रहे हैं? ये तो कह रहे थे कि राम जिसे चाहें, भूमि दे दें; भूधर की भूमि का उन्हें क्या करना है।"

राम मुस्कराए, "संभवतः वे लोग देखने आए हैं कि सत्य ही भूमि-वितरण होता है या केवल बातें ही बातें हैं।"

राम खेतों के पास आए तो ग्रामीण पीछे, कुछ दूर हट गए, जैसे वे लोग राम और उनके साथियों के संपर्क में नहीं आना चाहते हों।

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    अनुक्रम

  1. एक
  2. दो
  3. तीन
  4. चार
  5. पांच
  6. छह
  7. सात
  8. आठ
  9. नौ
  10. दस
  11. ग्यारह

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