बहुभागीय पुस्तकें >> राम कथा - संघर्ष की ओर राम कथा - संघर्ष की ओरनरेन्द्र कोहली
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राम कथा पर आधारित उपन्यास, तीसरा सोपान
भीखन खिसियाया-सा राम के पास आया, "मैंने तो सोचा था कि..."
"कोई बात नहीं।" राम ने उसे आश्वस्त किया, "किंतु अब सावधान रहना। हमें उनके हठ को बढ़ाने का उपकरण नहीं बनना है।"
मध्याह्न में सब लोग आश्रम में लौट आए। आश्रम की स्थिति पहले से अच्छी थी। प्रातः खेतों पर जाने से पहले, राम को आश्रम में अजाने भय की जो छाया दिखाई पड़ी थी, वह अब नहीं थी। ब्रह्मचारी तथा स्वयं मुनि आनन्द सागर अब पर्याप्त सहज दिखाई पड़ रहे थे। कदाचित् आश्रम में शस्त्रागार की उपस्थिति, लक्ष्मण, सीता तथा मुखर के शस्त्र-परिचालन-कौशल, और सबसे बढ़कर उनके शस्त्र-प्रशिक्षण के आरंभ ने उन्हें साहसी बना दिया था। अब ऐसा नहीं लग रहा था, कि वे राक्षसों के आक्रमण के भय की छाया में जी रहे हैं। और शायद सबसे बड़ी बात यह थी कि भय की स्थिति में वे लोग राम के दल के साथ ही संक्रमण की बात सोच रहे थे। ग्रामवासी अपनी भूमि के मोह में कहीं और जाने की बात सोच भी नहीं सकते थे, किंतु भीखन भी आज से कल तक में पर्याप्त बदल गया था। वह भी जैसे राम की संगति में निर्द्वन्द्व हो चुका था। भोजन के पश्चात् जब वे लोग विचार-विमर्श के लिए बैठे तो उनके मन की बात और भी स्पष्ट होकर सामने आई।
"मुनिवर, मैं सोच रहा हूं," उसने आनन्द सागर से कहा, "कि मैं भी गांव छोड़कर आश्रम में ही रह जाऊं। ग्रामवासियों का व्यवहार मुझे कुछ जंच नहीं रहा।"
मुनि ने एक विचित्र द्वन्द्व की-सी स्थित में उसकी ओर देखा और तत्काल ही अपनी दृष्टि राम की ओर फेरी।
किंतु, राम से पहले लक्ष्मण बोले, "मुनिवर, यदि अशिष्टता न मानें तो भीखन की इस इच्छा के संदर्भ में मैं अपना विचार कह डालूं।"
"कहिए।"
"भीखन भाई, रुष्ट न होना।" लक्ष्मण बोले, "मुझे लगता है कि तुम भी ग्राम को असुरक्षित मानकर, रहने से डर रहे हो।"
"नहीं..." भीखन ने कहना चाहा।
"नहीं, हमारा भीखन इतना भीरु नहीं है।" राम बोले, "वैसे भीखन को दो दिन में थोड़े-से समय के लिए आश्रम में भी रहना चाहिए, अन्यथा उसका शस्त्र-प्रशिक्षण रह जाएगा। वैसे उसे अपनी पत्नी और बच्चों के साथ, गांव में अपने घर पर ही रहना चाहिए।"
"क्यों? मेरे आश्रम में रहने में आप लोगों को क्या आपत्ति है?" भीखन बाधा से कुछ रुष्ट होकर बोला।
"कारण अनेक हैं।" राम बोले, "सबसे पहले तो तुम्हारा आश्रम में आ जाना, ग्रामवासियों के भय में वृद्धि करेगा। वे यह मान लेंगे कि भूधर की भूमि पर खेती कर, ग्राम में रहना असुरक्षित है। दूसरी बात यह है कि इससे तुम्हारे और ग्रामवासियों के बीच भेद बढ़ेगा। वे तुम्हें स्वयं में से एक न मानकर, अलग मानेंगे। तुम्हारे माध्यम से उनके साथ बना हुआ हमारा संपर्क भी टूट जाएगा। दूसरी ओर तुम यदि गांव में रहोगे तो बिना कहे ही यह सिद्ध होगा कि भूधर की भूमि पर खेती करना किसी विकट जोखिम का काम नहीं है। इससे ग्रामवासियों का मनोबल और आत्मविश्वास बढ़ेगा।"
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