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राम कथा - संघर्ष की ओर

नरेन्द्र कोहली

प्रकाशक : हिन्द पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 1997
पृष्ठ :168
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 6499
आईएसबीएन :21-216-0761-2

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राम कथा पर आधारित उपन्यास, तीसरा सोपान

वे लोग अपनी इच्छा से नित्य दिनचर्या के अनुसार, प्रातः ही खेतों में आ गए थे और काम कर रहे थे। जब तक वे खेतों में थे, तब तक कोई विशेष कठिनाई नहीं थी-राम सोच रहे थे-आश्रम के ब्रह्मचारी शस्त्रबद्ध थे। पचास जनसैनिक भी वहीं थे। स्वयं राम, लक्ष्मण, सीता तथा मुखर भी वहीं वर्तामन थे।...किंतु, यदि संध्या समय तक राक्षसों का आक्रमण न हुआ और ग्रामीणों ने अपने घरो में लौट जाने का हठ किया, तो उनकी सुरक्षा के लिए सारी सैनिक शक्ति को ग्राम में लगाना पड़ेगा। ऐसी स्थिति में खेतों के असुरक्षित छूट जाने का भय था...।

किंतु, इसकी संभावना शायद कम थी। राक्षसों की गतिविधि की सूचना, राम को निरंतर मिल रही थी; वे लोग आश्रम की सूचना-सीमा के भीतर प्रवेश कर चुके थे और निरंतर आगे बढ़ रहे थे। वे रुककर प्रतीक्षा करने की स्थिति में नहीं थे। और यदि वे इसी प्रकार आगे बढ़ते रहे तो अपराह्न तक यहां आ पहुंचेंगे। उनके बढ़ने की दिशा अनिन्द्य की बस्ती अथवा धर्मभृत्य का आश्रम नहीं था...।

राम अपनी योजना को धीरे-धीरे कार्यान्वित कर रहे थे...क्रमशः सारे ग्रामवासी, खेतों के केन्द्र में पहुंच गए थे; और आश्रम के शस्त्रबद्ध सदस्य किनारों पर आ गए थे। ग्रामवासी, सशस्त्र सैनिकों के घेरे में सुरक्षित थे। आज समस्त शालाओं की छुट्टी कर छोटे-बड़े सभी बच्चों को भी खेतों पर ही बुला लिया गया था...।

खेतों की चारों दिशाओं में से एक-एक ओर स्वयं राम, लक्ष्मण सीता और मुखर थे। जनसैनिक भी दस टुकड़ियों में बंटकर अपने-अपने नायकों के साथ-साथ, आगे-पीछे कर विभिन्न वृक्षों के ऊपर अथवा उनकी ओट में सन्नद्ध खड़े थे...राम ने प्रयत्न किया था कि इन दस टुकड़ियों से छोटे और बड़े-दुहरे वृत्त बन जाएं। बाहरी वृत्त को आरंभिक आक्रमण का आदेश नहीं था। यदि अपनी असावधानी के कारण राक्षस इन दोनों वृत्तों के बीच आ जाएं तो दोनों वृत्तों को एक साथ आक्रमण करने का आदेश था। जब शत्रु पर दोहरी मार पड़ रही हो, तभी शेष लोगों के लिए उनसे भिड़ने का उचित अवसर था...।

अब सूचनाएं और भी कम अंतराल से आने लगी थीं...राक्षस निकट आ रहे थे, उनकी संख्या पांच सौ के लगभग थी। वे अलग-अलग स्थानों पर आक्रमण करने के स्थान पर, एक ही मोर्चे पर युद्ध करने की योजना के साथ बढ़ रहे थे।

"मुखर!" राम बोले, "धर्मभृत्य को संदेश भेज दो कि आक्रमण यहीं होगा, अतः वे अपनी कुछ अतिरिक्त टुकड़ियां इधर भेज दें।"

"अच्छा राम!"

मुखर ने उसी क्षण एक लड़का, अगली चौकी तक दौड़ा दिया। राक्षसों के निकट होने के कारण, दूराह्वान से काम न लिया जा रहा था; अन्यथा वही सरल मार्ग था। देखने से यही लगता था कि सारे क्षेत्र का जीवन, सामान्य गति से चल रहा है। खेतों में काम भी हो रहा था और लोग आ-जा भी रहे थे। किंतु सभी जानते थे कि युद्ध समीप आ रहा है। उसकी दिशा और समय का आभास भी थोड़ा-बहुत सभी को था। खेतों में काम करने वाले ग्रामवासी-जो अभी तक राम और राक्षसों के इस युद्ध में स्वयं को तटस्थ मान रहे थे-भी जानते थे कि युद्ध क्रमशः निकट आ रहा है। उनका द्वन्द्व भी कोई समाधान खोज नहीं पा रहा था : अपने भय के कारण वे राक्षसों का विरोध करने का साहस नहीं कर पा रहे थे; और इतने दिनों तक राम तथा उनके साथियों के संपर्क में रहने के कारण, उन्हें छोड़ना नहीं चाहते थे।

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    अनुक्रम

  1. एक
  2. दो
  3. तीन
  4. चार
  5. पांच
  6. छह
  7. सात
  8. आठ
  9. नौ
  10. दस
  11. ग्यारह

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