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सुरीले लोगों की संगत

गजेन्द्रनारायण सिंह

प्रकाशक : कनिष्क पब्लिकेशन प्रकाशित वर्ष : 2007
पृष्ठ :285
मुखपृष्ठ :
पुस्तक क्रमांक : 6615
आईएसबीएन :978-81-8457-072

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कला-संगीत पर आधारित पुस्तक....

Surile logon ki sangat

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश


‘‘गजेन्द्रनारायण सिंह भारतीय संगीत-इतिहास के जाने-माने व्यक्ति हैं, विशेष रूप से इन्होंने संगीत के घरानों की सूक्ष्म विशेषताओं को खूब परखा है, उस पर सम्यक् रूप से लिखा भी है। काशी से लेकर समूचे पूर्वी भारत की लिखित और अलिखित मौखिक परम्पराओं की तो वह खान है।’’

इतिहासकार डॉ० राय आनन्दकृष्ण

‘‘संगीत पर सम्यक विचारणा से भी इतिहास की अनेक गुत्थियाँ सुलझायी जा सकती है और खासकर आम जीवन का खाका उकेरा जा सकता है। संगीत की दुनिया में रहकर श्री गजेन्द्रनारायण सिंह जी ने देश, कला और संस्कृति की जो सेवाएँ की हैं, वे अनमोल हैं। इन्हें किसी भी पुरस्कार से नवाजा जाना हर प्रकार से न्यायपूर्ण होगा और इन्हें उससे वंचित रखना अन्याय’’।

विख्यात इतिहासविद्र प्रो० रामशरण शर्मा

‘‘श्री सिंह संगीत की गांर्ध्व परम्परा के सच्चे और अच्छे कार्यकर्त्ता तथा चोटी के संगीत-कलाविद् हैं। मैं इनकी उपलब्धियों और प्रतिष्ठा में उत्तरोत्तर वृद्धि की शुभकामना करता हूँ।’’

संगीतकार पंडित नारायणराव व्यास

‘‘आपने 'महफिल' में संगीत का इतिहास और इतिहास में महफिल और संगीत को अंकित करने में अप्रतिम सफलता प्राप्त की है।’’

डॉ. लक्ष्मीमल सिंघवी

‘‘संगीतज्ञों का संस्मरण इतने सहज मैनें अभी तक नहीं पढ़ा था। आपने संगीत के प्रयोगों और उसके आस्वादकों पर जो लिखा है, वह भारतीय संगीत के इतिहास की दृष्टि से बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। आपकी पुस्तक पढ़ते समय उपन्यास का आनन्द आता है।’’
‘‘संगीत और महफिल में संगीत जितना जमता है, उतना सम्मेलन में नहीं। क्योंकि महफिल में ही कलाकार और कला के ग्राहक के बीच सही संवाद संभव है। उस संवाद से ही संगीत प्राणवान होता है। आपने यह पुस्तक लिखकर कला परख का एक इतिहास रचा है।’’

डॉ. विद्यानिवास मिश्र

‘‘भाई गजेन्द्रनारायण जी हर पल संगीत में जीते हैं- दर्द उठाते हैं जो मौजूदा हालात में एक दुर्लभ संयोग है। यही कारण है कि इनकी लेखनी में संगीत की जिस पीड़ा की टहक होती है- जिस मर्म और सच्चाई का अहसास मिलता है, वह इन दिनों में कम दिखता है।’’

प्रख्यात वीणावादक उस्ताद जिया मोहिउद्दीन डागर

लेखक के बारे में


जन्मतिथि - 10-9-1939

पिता का नाम - स्व. नागेश्वर प्रसाद सिंह

शिक्षा- स्नातक (इतिहास सम्मान) ब्रिटिश कॉरपोरेशन ऑफ सेक्रेटरीज से 'सेक्रेटरीशिप की डिग्री'

पद और प्रतिष्ठा -
1. बिहार सरकार द्वारा 1981 में गठित बिहार संगीत नाटक अकादमी के संस्थापक सचिव के रूप में लगातार 15 वर्षों तक श्री सिंह कार्यरत रहे।
2. युवाओं में संगीत और संस्कृति की अलख जगाने वाले राष्ट्रीय संगठन स्पीक मैके के पटना चैप्टर के लगातार तीन बार श्री सिंह चेयर पर्सन (chair person) रहे। 1985 से अब तक की अवधि में इनका कार्यकाल सबसे उल्लेखनीय रहा, जिसमें बिहार में स्पीक मैके की गतिविधियों का अभूतपूर्व प्रसार-प्रचार हुआ। इनके अध्यक्षीय कार्यकाल में 1986 में पटना में पहली बार चार दिवसीय 'विरासत' का आयोजन किया गया।
3. 2004 में श्री सिंह को केन्द्रीय संगीत नाटक अकादमी में बिहार का प्रतिनिधित्व करने के लिए अकादमी की जनरल काउन्सिल का सदस्य मनोनीत किया गया। सितम्बर' 05 में पटना में अकादमी द्वारा पहली बार 'युवाप्रतिभा संगीत समारोह' आयोजित किया गया। इनकी सिफारिश पर बिहार के कई लड़के-लड़कियों को मंच पर प्रस्तुत किया गया जो बहुत ही सफल रहा।

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