हास्य-व्यंग्य >> एक गधा नेफा में एक गधा नेफा मेंकृश्न चन्दर
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नेफ़ा, जहाँ भारत ने चीन के मक्कारी से भरपूर कारनामे देखे....
प्रस्तुत है पुस्तक के कुछ अंश
एक गधा नेफा में
प्रिय श्रोतागण !
मैं न रूसियों का राकेट हूँ, न अमरीकियों का पाकेट हूँ—न गली हब्शखाँ का फाटक हूँ, न रमता जोगी न्यारा हूँ। न कोई मन्सूई सैयारा हूँ, न किसी फिल्मी हिरोइन का प्यारा हूँ। न किसी लखपति की आँख का तारा हूँ—मैं सिर्फ एक गधा आवारा हूँ।
मुझको अपने बचपन में एक ही अखबार पढ़ने की लत लग गयी थी। अखबार पढ़ते-पढ़ते मैं इंसानों की बोली बोलने लगा और सच और झूठ को अक्ल के तराजू में तोलने लगा। इसी के लिए मैंने अपना प्यारा वतन बाराबंकी छोड़ा और डंकी बनकर दिल्ली के एक धोबी से नाता जोड़ा।
एक दिन उस धोबी को मगरमच्छ ने खा लिया और मैं उसकी विधवा पत्नी और बच्चों के गुजारे के लिए अर्जी लेकर दफ्तर-दफ्तर घूमने लगा। मंत्रियों तक पहुँच गया। लेकिन जब कहीं सुनवाई नहीं हुई तो किसी प्रकार पं. नेहरू की कोठी के अंदर चला गया।
पण्डित नेहरू से जो मेरा अचानक इंटरव्यू हो गया, उसने मुझे एक पल में सारे संसार में प्रसिद्ध कर दिया। अब लोग मुझसे बड़े आदर से पेश आने लगे। गलियों और बाजार में मेरा जुलूस निकालने लगे। एक सेठ ने समझा, मैं कोई दैवीदूत हूँ; जिसने ऊपर से एक मासूम गधे का भेष धरा है और अंदर ही अंदर कोई बहुत बड़ा ठेका मारा है।
वह सेठ मुझे बहला-फुसलाकर अपने घर ले गया। मेरे लिए कमरा सुरक्षित करा दिया। मुझे चाँदी की प्लेट में केवड़े में बसी हुई खुशबूदार घास खिलाने लगा।
अपनी फार्म का भागीदार बनाने लगा और अपनी लड़की से मेरी शादी रचाने लगा और मुझे हाई सोसाइटी में घुमाने लगा।
मैंने बहुत इंकार किया, बताया वैसे तो मैं ज्ञान और गुण से लदा हूँ मगर वास्तव में एक गधा हूँ। मगर वह सेठ लालच का अंधा और गांठ का पूरा अपनी ही हाँके जाता था और बराबर मेरी आवभगत किए जाता था।
मगर जिस दिन उस लालची को पता चला कि मेरे पास न कोई परमिट है न कोई कोटा, उसी दिन वह बेपेंदे का लोटा मुझे मारने पर तुल गया।
एक दिन कमरा बंद करके उस सेठ ने और उसकी लड़की ने—जो कल तक मुझसे शादी करने को तैयार थी—मुझे डंडे से मार-मारकर मेरा भुरकस निकाल दिया और मुझे बहुत घायल कर सड़क पर डाल दिया।
छः महीने तक मैं जानवरों के अस्पताल में पड़ा मौत और जिंदगी के बीच लटकता रहा। पीड़ा से कराहता रहा। मनुष्य की बेहिसी और गधे की बेबसी पर रोता रहा। मगर विधाता को मेरा जीना प्रिय था—और मेरे लिए जीवन का विषपान करना अवशंयभावी था—इसलिए मैं स्वस्थ हो गया।
जब मैं स्वस्थ हो गया तो डॉक्टर ने मेरे हाथ में दो हजार का बिल थमा दिया। बिल देखकर मैंने डॉक्टर से प्रार्थना की, ‘‘डाक्टर, मैं एक पढ़ा-लिखा गधा जरूर हूँ मगर बिलकुल गरीब और मजबूर हूँ। मैं यह बिल अदा नहीं कर सकता।’’
डॉक्टर, कि जिसका नाम रामअवतार था और जो अपने काम में बड़ा होशियार था, मेरी पीठ पर हाथ फेरकर बोला, ‘‘ऐ गधे नादान ! बचाकर जान ! चला जा बम्बई ! वहां फिरते हैं तेरे जैसे कई-तू वहां जरूर कमा खाएगा-बल्कि मेरा बिल भी अदा कर सकेगा।’’
डॉक्टर की नसीहत मुझको बहुत भाई। मैंने दिल्ली को दी जुदाई और रेल की पटरी के किनारे-किनारे चलते-चलते बम्बई पहुंच गया और वहां घेसू घसियारे के यहां नौकरी कर ली। सोचा, बिल्कुल एक गधे के समान रहूंगा और कभी मनुष्यों की बोली नहीं बोलूंगा।
मगर एक दिन मुझे घेसू घसियारे ने पच्चीस रुपये के बदले रमाजाई कसाई के हाथ बेच दिया, जिससे जोजफ, शराब की स्मगलिंग करने वाले ने मुझे खरीद लिया। अब मैं अपने पेट में शराब भरकर बांद्रा से माहिम पहुंचता था और पुलिस को कभी शुबहा नहीं होता था कि इस गधे के पेट में कितने गैलन शराब भरी है।
जिस दिन पुलिस को शुबहा हो गया, मैं अपनी जान बचाकर ऐसा बगटूट भागा, ऐसा बगटूट भागा कि मेरे भागने का वेग देखकर रुस्तम सेठ ने मुझे अपने पास रख लिया।
रुस्तम सेठ बम्बई की रेसकोर्स में घोड़े दौड़ाते थे। मगर मेरी तेज चाल देखकर उन्होंने मुझे भी घोड़ों की रेस में दौड़ा दिया। और मैं कप जीत गया। रुस्तम सेठ मुझसे बहुत खुश हुए और खुश होकर मुझे जान से मारने की सोचने लगे। क्योंकि अगर रेसकोर्स वालों को किसी तरह से पता चल जाता कि रुस्तम सेठ ने घोड़े की रेस में एक गधे को दौड़ा दिया है, तो वह रुस्तम सेठ को रेसकोर्स से बाहर निकाल देते।
खैर, मैं किसी तरह से वहां से जान बचाकर भागा ! फिर मैं एक सेठ को अंटसंट सट्टे के नम्बर बताने लगा। नम्बर आते गए और मेरे पुजारी बढ़ते गए। मैंने सेठ से पार्टनरशिप कर ली और मुझे एक ही दिन में सट्टे के नम्बर बताने में तीस लाख का फायदा हो गया।
मैंने तीन लाख बैंक में रख दिए और फिल्म-प्रोड्यूसर बन गया। अखबारों में बड़े-बड़े शीर्षकों में छपा-‘‘दुनिया का पहला गधा प्रोड्यूसर !’’ लेकिन यह अखबार वालों की बड़ी ज्यादती थी। अवश्य ही मुझसे पहले भी ऐसे लोग फिल्म में आए होंगे जो मेरे सामने प्रोड्यूसर थे और गधे भी।
पिक्चर बनाते-बनाते मुझे पिक्चर की हीरोइन प्रेमबाला से प्रेम हो गया और साथ-साथ यह भी तय हो गया कि अगर जेब में तीस लाख रुपये हों तो एक सुन्दर स्त्री एक गधे से भी प्रेम कर सकती है।
प्रेमबाला तीस लाख रुपये तीन महीने में चट कर गई, फिर उसने अपने प्रेमी के साथ मिलकर मुझे मार-मारकर घर से बाहर निकाल दिया। और मैं दोनों हाथ खाली, दोलत्तियां झाड़ता हुआ एक किसान मर्द और औरत के साथ पूना की ओर रवाना हो गया।
किसान का नाम तुपकरी था और बीवी का नाम ललताबाई। किसान की जमीन पन्द्रह सौ रुपये में गिरवी पड़ी थी और जब जमीन छुड़ाने के लिए कोई तरकीब उसकी समझ न आई तो उसने बैल को लोगों की किस्मत का हाल बताने को सधाया और बैल को लेकर अपनी बीवी के साथ गांव से बाहर निकल गया। वह शहर-शहर, गांव-गांव, कस्बे-कस्बे मारा-मारा फिरता था और मजमे इकट्ठे करके बैल के जरिये किस्मत का हाल बताता था और अपना पेट पालता था। उसका विचार था कि इसी तरह वह बहुत-सा रुपया कमा लेगा और अपनी खोई जमीन फिर से प्राप्त कर लेगा और खेती-बाड़ी करने लगेगा। मगर लोगों की किस्मत बताने में बैल भी ज्यादा उपयोगी सिद्ध न हुआ। और कुछ महीनों के बाद बैल बम्बई में मर गया। और अब दोनों-पति पत्नी निराश और मजबूर होकर पूना जा रहे थे-भाग्य आजमाने के लिये...।
उनकी कथा सुनकर मुझे बड़ी दया आई-दयालु होना इस संसार में गधेपन की पहली निशानी है ! मैं उनकी विपदा सुनकर रो पड़ा और उनके साथ हो लिया।
पूना पहुंचकर हमने पहला मजमा दक्कन टाकीज के सामने जमाया।
तुपकरी ढोल बजाता था और ललताबाई लकड़ी के एक पुराने भोंपू में से भों-भों की विचित्र-सी आवाज निकालती थी जो किसी शंख के नाद से मिलती-जुलती थी। जब पचास-साठ के लगभग आदमी इकट्ठे हो गए तो तुपकरी बोला-
‘‘बहनो और भाइयो !’’
‘‘इससे पहले शहर में एक बैल आकर आपकी किस्मत बताता था। आज से एक गधा बताएगा। मेरा गधा ज्योतिष विद्या का पूर्ण ज्ञाता है और मेरा विचार है कि अक्सर भाग्य बताने वाले जो होते हैं, गधे होते हैं। नहीं तो दूसरों को उनका भाग्य क्यों बताएं, अपना ही भाग्य ठीक न कर लें ? फिर भी यह एक अलग बात है कि इसके पक्ष में और विपक्ष में बहुत-सी बातें कहीं जा सकती हैं।
वास्तविक बात यह है कि आपको अपना भाग्य जानने का शौक है और यह शौक आपका एक गधा ही पूरा कर सकता है। इसलिए आज मैं एक गधे को अपने साथ लाया हूं।’’
‘‘इस गधे में एक विशेष बात यह है कि इसे बैल के समान आंखों पर पट्टी बांधने की जरूरत नहीं है। यह गधा जो कुछ बताएगा-आंखें खोलकर बताएगा और बैल के समान मुंह मारकर नहीं बताएगा या खुर को जमीन पर टेककर नहीं बताएगा-बल्कि अपनी जुबान से बताएगा।’’
‘‘अपनी जुबान से ?’’ मजमे में सनसनी फैल गई, ‘‘क्या यह गधा बोलता है ?’’
‘‘जी हां,’’ तुपकरी ऊंचे स्वर में बोला, ‘‘गधा होकर भी यह मनुष्यों की बोली बोलता है जबकि बहुत-से मनुष्य गधे होकर भी गधे की बोली नहीं बोल सकते। इसलिए यह गधा बहुत-से इन्सानों से ज्यादा समझदार है। डरम-डरम-डरम...।’’
तुपकरी ने जोर से ढोल बजाया क्योंकि इस विचित्र गधे को देखने के लिए भीड़ बढ़ती जा रही थी।
तुपकरी ने ढोल बजाना बन्द किया। फिर दोनों हाथ जोड़कर बोला, ‘‘मगर एक बात। हाथ जोड़कर कहता हूं, बुरा न मानना। यह गधा पाखण्डी ज्योतिषी नहीं है। खरा और सच्चा ज्योतिषी है। यह सदा सच्ची बात कहता है, इसलिए इसकी बात का बुरा मत मानना और जो बात इसकी समझ में नहीं आएगी, वह भी साफ-साफ बोल देगा। प्रत्येक प्रश्न के दाम आठ आने होंगे। केवल आठ आने..पूछो...आने....केवल आठ आने...’’
तुपकरी जोर-जोर से ढोल पीटने लगा। ललता भोंपू बजाने लगी। मैं भीड़ के अन्दर रस्सी से बंधा एक गोलाकार चक्कर में घुमाने लगा। एक आदमी ने, जो शक्ल व सूरत से बनिया लगता था, मेरी रस्सी को हाथ से पकड़ा-उसके पास रुक गया।
बनिये ने पूछा, ‘‘मैं इस समय कहां से आ रहा हूँ ?’’
‘‘कुर्की कराके !’’ मैंने फौरन जवाब दिया, क्योंकि मैंने उसके हाथ में कुर्की के कागज देख लिए थे।
बनिया चौंककर एकदम पीछे हट गया। मुझे बोलता देखकर भीड़ एकदम आगे खिसक आई। गोलकार चक्कर सिमट गया।
‘‘ठीक है,’’ बनिये ने सिर हिलाकर कहा, ‘‘लेकिन मैं तुमको तब मानूंगा जब तुम यह बताओगे कि मेरी जेब में कितना धन है।’’
यह कहकर उसने अपना बटुआ निकाला।
मैंने कहा, ‘‘कितना धन है वह तो मैं नहीं बता सकता लेकिन इतना जानता हूँ कि तुम्हारी जेब में जितना धन है उसमें असल कम है, सूद ज्यादा है।’’
बनिया हंसा, ‘‘गधा बहुत होशियार मालूम होता है।’’
इतना कहकर बनिये ने मेरी रस्सी छोड़ दी और वापस जाने लगा कि मैंने धीरे से उसकी धोती दांतों से लेते हुए कहा, ‘‘कहां जाते हो ? एक रुपया देते जाओ।’’
‘‘कैसा रुपया ?’’ बनिये ने मुड़कर पूछा।
‘‘तुमने दो प्रश्न पूछे थे। तुमको दोनों प्रश्नों का उत्तर मिला कि नहीं ?’’ तुपकरी ने पूछा।
बनिये ने धीरे से सिर हिलाया और जेब से एक रुपया निकालकर तुपकरी के हवाले किया।
भीड़ हंसने लगी। बनिया शर्मिन्दा होकर खिसक गया।
एक लड़के ने अठन्नी निकालकर तुपकरी के हाथ में दी और बोला, ‘‘बताओ मेरे थैले में क्या है ?’’
मैंने कहा, ‘‘अगर मैं बता दूं तो तुमको इसी वक्त पुलिस पकड़कर ले जायेगी।’’
भीड़ के लोग फिर हंसे। वह लड़का जल्दी से ठर्रे की बोतलों का थैला लेकर गायब हो गया। मगर ठर्रे की बास अभी तक मेरे नथुनों में आ रही थी।
एक लड़का और एक लड़की एक-दूसरे के पास खड़े थे। दोनों जवान और सुन्दर थे। दबी नज़रों से एक-दूसरे की ओर देखते थे और फिर घबराकर नजरें अलग कर लेते थे। कभी-कभी एक का हाथ दूसरे के हाथ को छू लेता। उंगलियां
मैं न रूसियों का राकेट हूँ, न अमरीकियों का पाकेट हूँ—न गली हब्शखाँ का फाटक हूँ, न रमता जोगी न्यारा हूँ। न कोई मन्सूई सैयारा हूँ, न किसी फिल्मी हिरोइन का प्यारा हूँ। न किसी लखपति की आँख का तारा हूँ—मैं सिर्फ एक गधा आवारा हूँ।
मुझको अपने बचपन में एक ही अखबार पढ़ने की लत लग गयी थी। अखबार पढ़ते-पढ़ते मैं इंसानों की बोली बोलने लगा और सच और झूठ को अक्ल के तराजू में तोलने लगा। इसी के लिए मैंने अपना प्यारा वतन बाराबंकी छोड़ा और डंकी बनकर दिल्ली के एक धोबी से नाता जोड़ा।
एक दिन उस धोबी को मगरमच्छ ने खा लिया और मैं उसकी विधवा पत्नी और बच्चों के गुजारे के लिए अर्जी लेकर दफ्तर-दफ्तर घूमने लगा। मंत्रियों तक पहुँच गया। लेकिन जब कहीं सुनवाई नहीं हुई तो किसी प्रकार पं. नेहरू की कोठी के अंदर चला गया।
पण्डित नेहरू से जो मेरा अचानक इंटरव्यू हो गया, उसने मुझे एक पल में सारे संसार में प्रसिद्ध कर दिया। अब लोग मुझसे बड़े आदर से पेश आने लगे। गलियों और बाजार में मेरा जुलूस निकालने लगे। एक सेठ ने समझा, मैं कोई दैवीदूत हूँ; जिसने ऊपर से एक मासूम गधे का भेष धरा है और अंदर ही अंदर कोई बहुत बड़ा ठेका मारा है।
वह सेठ मुझे बहला-फुसलाकर अपने घर ले गया। मेरे लिए कमरा सुरक्षित करा दिया। मुझे चाँदी की प्लेट में केवड़े में बसी हुई खुशबूदार घास खिलाने लगा।
अपनी फार्म का भागीदार बनाने लगा और अपनी लड़की से मेरी शादी रचाने लगा और मुझे हाई सोसाइटी में घुमाने लगा।
मैंने बहुत इंकार किया, बताया वैसे तो मैं ज्ञान और गुण से लदा हूँ मगर वास्तव में एक गधा हूँ। मगर वह सेठ लालच का अंधा और गांठ का पूरा अपनी ही हाँके जाता था और बराबर मेरी आवभगत किए जाता था।
मगर जिस दिन उस लालची को पता चला कि मेरे पास न कोई परमिट है न कोई कोटा, उसी दिन वह बेपेंदे का लोटा मुझे मारने पर तुल गया।
एक दिन कमरा बंद करके उस सेठ ने और उसकी लड़की ने—जो कल तक मुझसे शादी करने को तैयार थी—मुझे डंडे से मार-मारकर मेरा भुरकस निकाल दिया और मुझे बहुत घायल कर सड़क पर डाल दिया।
छः महीने तक मैं जानवरों के अस्पताल में पड़ा मौत और जिंदगी के बीच लटकता रहा। पीड़ा से कराहता रहा। मनुष्य की बेहिसी और गधे की बेबसी पर रोता रहा। मगर विधाता को मेरा जीना प्रिय था—और मेरे लिए जीवन का विषपान करना अवशंयभावी था—इसलिए मैं स्वस्थ हो गया।
जब मैं स्वस्थ हो गया तो डॉक्टर ने मेरे हाथ में दो हजार का बिल थमा दिया। बिल देखकर मैंने डॉक्टर से प्रार्थना की, ‘‘डाक्टर, मैं एक पढ़ा-लिखा गधा जरूर हूँ मगर बिलकुल गरीब और मजबूर हूँ। मैं यह बिल अदा नहीं कर सकता।’’
डॉक्टर, कि जिसका नाम रामअवतार था और जो अपने काम में बड़ा होशियार था, मेरी पीठ पर हाथ फेरकर बोला, ‘‘ऐ गधे नादान ! बचाकर जान ! चला जा बम्बई ! वहां फिरते हैं तेरे जैसे कई-तू वहां जरूर कमा खाएगा-बल्कि मेरा बिल भी अदा कर सकेगा।’’
डॉक्टर की नसीहत मुझको बहुत भाई। मैंने दिल्ली को दी जुदाई और रेल की पटरी के किनारे-किनारे चलते-चलते बम्बई पहुंच गया और वहां घेसू घसियारे के यहां नौकरी कर ली। सोचा, बिल्कुल एक गधे के समान रहूंगा और कभी मनुष्यों की बोली नहीं बोलूंगा।
मगर एक दिन मुझे घेसू घसियारे ने पच्चीस रुपये के बदले रमाजाई कसाई के हाथ बेच दिया, जिससे जोजफ, शराब की स्मगलिंग करने वाले ने मुझे खरीद लिया। अब मैं अपने पेट में शराब भरकर बांद्रा से माहिम पहुंचता था और पुलिस को कभी शुबहा नहीं होता था कि इस गधे के पेट में कितने गैलन शराब भरी है।
जिस दिन पुलिस को शुबहा हो गया, मैं अपनी जान बचाकर ऐसा बगटूट भागा, ऐसा बगटूट भागा कि मेरे भागने का वेग देखकर रुस्तम सेठ ने मुझे अपने पास रख लिया।
रुस्तम सेठ बम्बई की रेसकोर्स में घोड़े दौड़ाते थे। मगर मेरी तेज चाल देखकर उन्होंने मुझे भी घोड़ों की रेस में दौड़ा दिया। और मैं कप जीत गया। रुस्तम सेठ मुझसे बहुत खुश हुए और खुश होकर मुझे जान से मारने की सोचने लगे। क्योंकि अगर रेसकोर्स वालों को किसी तरह से पता चल जाता कि रुस्तम सेठ ने घोड़े की रेस में एक गधे को दौड़ा दिया है, तो वह रुस्तम सेठ को रेसकोर्स से बाहर निकाल देते।
खैर, मैं किसी तरह से वहां से जान बचाकर भागा ! फिर मैं एक सेठ को अंटसंट सट्टे के नम्बर बताने लगा। नम्बर आते गए और मेरे पुजारी बढ़ते गए। मैंने सेठ से पार्टनरशिप कर ली और मुझे एक ही दिन में सट्टे के नम्बर बताने में तीस लाख का फायदा हो गया।
मैंने तीन लाख बैंक में रख दिए और फिल्म-प्रोड्यूसर बन गया। अखबारों में बड़े-बड़े शीर्षकों में छपा-‘‘दुनिया का पहला गधा प्रोड्यूसर !’’ लेकिन यह अखबार वालों की बड़ी ज्यादती थी। अवश्य ही मुझसे पहले भी ऐसे लोग फिल्म में आए होंगे जो मेरे सामने प्रोड्यूसर थे और गधे भी।
पिक्चर बनाते-बनाते मुझे पिक्चर की हीरोइन प्रेमबाला से प्रेम हो गया और साथ-साथ यह भी तय हो गया कि अगर जेब में तीस लाख रुपये हों तो एक सुन्दर स्त्री एक गधे से भी प्रेम कर सकती है।
प्रेमबाला तीस लाख रुपये तीन महीने में चट कर गई, फिर उसने अपने प्रेमी के साथ मिलकर मुझे मार-मारकर घर से बाहर निकाल दिया। और मैं दोनों हाथ खाली, दोलत्तियां झाड़ता हुआ एक किसान मर्द और औरत के साथ पूना की ओर रवाना हो गया।
किसान का नाम तुपकरी था और बीवी का नाम ललताबाई। किसान की जमीन पन्द्रह सौ रुपये में गिरवी पड़ी थी और जब जमीन छुड़ाने के लिए कोई तरकीब उसकी समझ न आई तो उसने बैल को लोगों की किस्मत का हाल बताने को सधाया और बैल को लेकर अपनी बीवी के साथ गांव से बाहर निकल गया। वह शहर-शहर, गांव-गांव, कस्बे-कस्बे मारा-मारा फिरता था और मजमे इकट्ठे करके बैल के जरिये किस्मत का हाल बताता था और अपना पेट पालता था। उसका विचार था कि इसी तरह वह बहुत-सा रुपया कमा लेगा और अपनी खोई जमीन फिर से प्राप्त कर लेगा और खेती-बाड़ी करने लगेगा। मगर लोगों की किस्मत बताने में बैल भी ज्यादा उपयोगी सिद्ध न हुआ। और कुछ महीनों के बाद बैल बम्बई में मर गया। और अब दोनों-पति पत्नी निराश और मजबूर होकर पूना जा रहे थे-भाग्य आजमाने के लिये...।
उनकी कथा सुनकर मुझे बड़ी दया आई-दयालु होना इस संसार में गधेपन की पहली निशानी है ! मैं उनकी विपदा सुनकर रो पड़ा और उनके साथ हो लिया।
पूना पहुंचकर हमने पहला मजमा दक्कन टाकीज के सामने जमाया।
तुपकरी ढोल बजाता था और ललताबाई लकड़ी के एक पुराने भोंपू में से भों-भों की विचित्र-सी आवाज निकालती थी जो किसी शंख के नाद से मिलती-जुलती थी। जब पचास-साठ के लगभग आदमी इकट्ठे हो गए तो तुपकरी बोला-
‘‘बहनो और भाइयो !’’
‘‘इससे पहले शहर में एक बैल आकर आपकी किस्मत बताता था। आज से एक गधा बताएगा। मेरा गधा ज्योतिष विद्या का पूर्ण ज्ञाता है और मेरा विचार है कि अक्सर भाग्य बताने वाले जो होते हैं, गधे होते हैं। नहीं तो दूसरों को उनका भाग्य क्यों बताएं, अपना ही भाग्य ठीक न कर लें ? फिर भी यह एक अलग बात है कि इसके पक्ष में और विपक्ष में बहुत-सी बातें कहीं जा सकती हैं।
वास्तविक बात यह है कि आपको अपना भाग्य जानने का शौक है और यह शौक आपका एक गधा ही पूरा कर सकता है। इसलिए आज मैं एक गधे को अपने साथ लाया हूं।’’
‘‘इस गधे में एक विशेष बात यह है कि इसे बैल के समान आंखों पर पट्टी बांधने की जरूरत नहीं है। यह गधा जो कुछ बताएगा-आंखें खोलकर बताएगा और बैल के समान मुंह मारकर नहीं बताएगा या खुर को जमीन पर टेककर नहीं बताएगा-बल्कि अपनी जुबान से बताएगा।’’
‘‘अपनी जुबान से ?’’ मजमे में सनसनी फैल गई, ‘‘क्या यह गधा बोलता है ?’’
‘‘जी हां,’’ तुपकरी ऊंचे स्वर में बोला, ‘‘गधा होकर भी यह मनुष्यों की बोली बोलता है जबकि बहुत-से मनुष्य गधे होकर भी गधे की बोली नहीं बोल सकते। इसलिए यह गधा बहुत-से इन्सानों से ज्यादा समझदार है। डरम-डरम-डरम...।’’
तुपकरी ने जोर से ढोल बजाया क्योंकि इस विचित्र गधे को देखने के लिए भीड़ बढ़ती जा रही थी।
तुपकरी ने ढोल बजाना बन्द किया। फिर दोनों हाथ जोड़कर बोला, ‘‘मगर एक बात। हाथ जोड़कर कहता हूं, बुरा न मानना। यह गधा पाखण्डी ज्योतिषी नहीं है। खरा और सच्चा ज्योतिषी है। यह सदा सच्ची बात कहता है, इसलिए इसकी बात का बुरा मत मानना और जो बात इसकी समझ में नहीं आएगी, वह भी साफ-साफ बोल देगा। प्रत्येक प्रश्न के दाम आठ आने होंगे। केवल आठ आने..पूछो...आने....केवल आठ आने...’’
तुपकरी जोर-जोर से ढोल पीटने लगा। ललता भोंपू बजाने लगी। मैं भीड़ के अन्दर रस्सी से बंधा एक गोलाकार चक्कर में घुमाने लगा। एक आदमी ने, जो शक्ल व सूरत से बनिया लगता था, मेरी रस्सी को हाथ से पकड़ा-उसके पास रुक गया।
बनिये ने पूछा, ‘‘मैं इस समय कहां से आ रहा हूँ ?’’
‘‘कुर्की कराके !’’ मैंने फौरन जवाब दिया, क्योंकि मैंने उसके हाथ में कुर्की के कागज देख लिए थे।
बनिया चौंककर एकदम पीछे हट गया। मुझे बोलता देखकर भीड़ एकदम आगे खिसक आई। गोलकार चक्कर सिमट गया।
‘‘ठीक है,’’ बनिये ने सिर हिलाकर कहा, ‘‘लेकिन मैं तुमको तब मानूंगा जब तुम यह बताओगे कि मेरी जेब में कितना धन है।’’
यह कहकर उसने अपना बटुआ निकाला।
मैंने कहा, ‘‘कितना धन है वह तो मैं नहीं बता सकता लेकिन इतना जानता हूँ कि तुम्हारी जेब में जितना धन है उसमें असल कम है, सूद ज्यादा है।’’
बनिया हंसा, ‘‘गधा बहुत होशियार मालूम होता है।’’
इतना कहकर बनिये ने मेरी रस्सी छोड़ दी और वापस जाने लगा कि मैंने धीरे से उसकी धोती दांतों से लेते हुए कहा, ‘‘कहां जाते हो ? एक रुपया देते जाओ।’’
‘‘कैसा रुपया ?’’ बनिये ने मुड़कर पूछा।
‘‘तुमने दो प्रश्न पूछे थे। तुमको दोनों प्रश्नों का उत्तर मिला कि नहीं ?’’ तुपकरी ने पूछा।
बनिये ने धीरे से सिर हिलाया और जेब से एक रुपया निकालकर तुपकरी के हवाले किया।
भीड़ हंसने लगी। बनिया शर्मिन्दा होकर खिसक गया।
एक लड़के ने अठन्नी निकालकर तुपकरी के हाथ में दी और बोला, ‘‘बताओ मेरे थैले में क्या है ?’’
मैंने कहा, ‘‘अगर मैं बता दूं तो तुमको इसी वक्त पुलिस पकड़कर ले जायेगी।’’
भीड़ के लोग फिर हंसे। वह लड़का जल्दी से ठर्रे की बोतलों का थैला लेकर गायब हो गया। मगर ठर्रे की बास अभी तक मेरे नथुनों में आ रही थी।
एक लड़का और एक लड़की एक-दूसरे के पास खड़े थे। दोनों जवान और सुन्दर थे। दबी नज़रों से एक-दूसरे की ओर देखते थे और फिर घबराकर नजरें अलग कर लेते थे। कभी-कभी एक का हाथ दूसरे के हाथ को छू लेता। उंगलियां
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