व्यवहारिक मार्गदर्शिका >> सफलता का रहस्य सफलता का रहस्यपार्किन्सन, रूस्तमजी
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प्रस्तुत है व्यापार और व्यवहार में सफलता प्राप्त करने का मूलमंत्र...
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
बहुत आसान और बोलचाल के लहज़े में तीन सर्वश्रेष्ठ मैनेजमेन्ट विशेषज्ञ इस
पुस्तक में आपका मार्गदर्शन करते हैं कि रोजमर्रा के ज़रूरी कामों को किस
तरह सहजभाव से लें और अपने काम को ऊँचे दर्जे के रचनात्मक, आनंददायक और
सफल अनुभव में रूपान्तरित करें।
ज़िन्दगी के जीते-जागते अनुभवों, उदाहरणों और रोचक कार्टूनों से भरपूर यह पुस्तक मैनेजमेन्ट की उन नवीनतम पद्धतियों पर प्रकाश डालती है, जिनमें जापान के आर्थिक जगत में हुए करिश्मों का रहस्य छिपा है। इनर गेम, जस्ट-इन-टाइम प्रोडक्शन सिस्टम, लाइफ-टाइम ट्रेनिंग और क्वालिटी सर्किल उन्हीं में से कुछेक हैं। जापान में उत्पादन क्रांति करने वाली करिश्माई जापानी कार्य शैली की भी इसमें व्याख्या की गई है। आप चाहे बिजनेस एक्जीक्यूटिव हों या मैनेजर, टेक्नोक्रेट हों या सिविल सर्वेंट, जो भी ज़िम्मेदारी आपके ऊपर हों, उस पर ये आसान और प्रभावी तकनीकें अमल में लाइए...और भरपूर सफलता प्राप्त कीजिए।
ज़िन्दगी के जीते-जागते अनुभवों, उदाहरणों और रोचक कार्टूनों से भरपूर यह पुस्तक मैनेजमेन्ट की उन नवीनतम पद्धतियों पर प्रकाश डालती है, जिनमें जापान के आर्थिक जगत में हुए करिश्मों का रहस्य छिपा है। इनर गेम, जस्ट-इन-टाइम प्रोडक्शन सिस्टम, लाइफ-टाइम ट्रेनिंग और क्वालिटी सर्किल उन्हीं में से कुछेक हैं। जापान में उत्पादन क्रांति करने वाली करिश्माई जापानी कार्य शैली की भी इसमें व्याख्या की गई है। आप चाहे बिजनेस एक्जीक्यूटिव हों या मैनेजर, टेक्नोक्रेट हों या सिविल सर्वेंट, जो भी ज़िम्मेदारी आपके ऊपर हों, उस पर ये आसान और प्रभावी तकनीकें अमल में लाइए...और भरपूर सफलता प्राप्त कीजिए।
अध्याय 1
लक्ष्य-सिद्धि और छोटी-छोटी बातों का महत्त्व
एक भुल्लकड़ जज
एक वरिष्ठ जज अपनी कानूनी जानकारी के साथ-साथ इसलिए भी मशहूर थे कि वह
हमेशा खोये-खोये से रहते थे। एक बार जब रेल में सफ़र करते हुए टिकट चैकर
ने टिकट दिखाने को कहा, तो जज ने अफ़सोस प्रकट करते हुए कहा कि टिकट तो वह
खरीदना ही भूल गये थे। जब टिकट चैकर ने बड़े ही सम्मान के साथ कहा,
‘‘हुजूर, क्या आप बता सकते हैं कि आप रेल में कहाँ से
चढ़े थे
और कहां जायेंगे’’, तो जज साहब ने और परेशान होकर
कहा,
‘‘वही तो मुसीबत है। मुझे याद ही नहीं कि कहाँ जाना
है।’’ कई बार मैनेजमेंट की भी ऐसी ही समस्याएँ होती
हैं। वे
अपने लक्ष्यों को स्पष्ट रूप से तय नहीं करते और अगर करते भी हैं तो उन
छोटी-छोटी बातों पर ध्यान देना भूल जाते हैं जो इन लक्ष्यों को पूरा करने
के लिए ज़रूरी होती हैं। सफल होने के लिए मैनेजरों को सही काम सही तरीके
से करना चाहिए। यही इस पुस्तक का मूल विषय है।
विश्वविद्यालय प्रशासन की ख़स्ता हालत
किसी भी विश्वविद्यालय का उद्देश्य स्पष्ट रूप से निर्धारित होता है-
मुख्यतः अध्यापन और शोध पर यह तभी सम्भव है जब रोज़मर्रा का प्रशासन सही
ढंग से चलता रहे। विश्वविद्यालय में एक महत्त्वपूर्ण काम होता है
परीक्षाओं का सुचारू रूप से संचालन परन्तु आजकल परीक्षाओं का जो हाल होता
है वह शर्मनाक है। इसके चलते अभूतपूर्व कानूनी समस्याएँ खड़ी हो गई हैं।
यहाँ तक कि एक मामले में एक राज्य के मुख्यमन्त्री को त्यागपत्र तक देना
पड़ा था। कुछ समय पहले एक और मामला सामने आया था जिसमें परीक्षक ने उत्तर
पुस्तिकाएँ विश्वविद्यालय को लौटाने की जगह उन्हें नष्ट कर दिया था। ऊँचे
आदर्शों की बात करना तो आसान है परन्तु उन्हें पूरा करने के लिए आवश्यकता
होती है निरन्तर सावधानी और छोटी से छोटी बात पर ध्यान देने की। अक्सर इसी
की कमी पाई जाती है।
टेनेसी वैली ऑथॉरिटी
दूसरी तरफ़ उद्देश्यों को स्पष्ट न करने से भी समस्याएँ खड़ी हो जाती हैं।
अमरीका की बहुचर्चित टेनेसी वैली ऑथॉरिटी (बिजली उत्पादन हेतु बनाई गई एक
कम्पनी) परियोजना के शुरुआती दौड़ में इसी कारण से अव्यवस्था बनी रही।
परियोजना के अधिकारी एक साथ कई काम करने का प्रयास कर रहे थे, जैसे बाढ़
की रोकथाम, बिजली का उत्पादन, वृक्षारोपण और समुदाय का विकास इत्यादि।
नतीजा यह हुआ कि इनमें से कुछ भी ठीक से नहीं हो पाया, और परियोजना के
प्रशासन से सभी असन्तुष्ट नज़र आने लगे। आखिर में, तत्कालीन अमरीकी
राष्ट्रपति रूज्वेल्ट को टी. वी. ए. प्रशासन आर्थर मार्गर (जो एक कुशल
इंजीनियर थे) के स्थान पर एक युवा वकील डेविड लिंलिएंथल को लाना पड़ा।
लिलिएंथल का सबसे पहला काम था परियोजना का मुख्य उद्देश्य निर्धारित करना। यह उद्देश्य था बिजली का उत्पादन, जिसे सबसे अधिक प्राथमिकता दी गई। इसके नतीजे बड़े उत्साहर्धक थे। टी.वी. ए. परियोजना विश्व में अपनी तरह की सबसे सफल परियोजनाओं में गिनी जाने लगी।
लिलिएंथल का सबसे पहला काम था परियोजना का मुख्य उद्देश्य निर्धारित करना। यह उद्देश्य था बिजली का उत्पादन, जिसे सबसे अधिक प्राथमिकता दी गई। इसके नतीजे बड़े उत्साहर्धक थे। टी.वी. ए. परियोजना विश्व में अपनी तरह की सबसे सफल परियोजनाओं में गिनी जाने लगी।
1884 में ‘मार्क्स एंड स्पेंसर’ का जन्म
फुटकर वस्तुओं की एक बड़ी कम्पनी ‘मार्क्स एंड
स्पेंसर’ की
शुरूआत 1884 में माईकल मार्क्स ने एक ‘पेनि बाज़ार’
के रूप
में की, जहां हर सामान एक-एक पेनि में बेचा जाता था (इंग्लैंड की मुद्रा
में एक पाउंड सौ पेनि के बराबर होता है)। दूसरे देश से आए हुए माइकल का
अंग्रेजी भाषा का ज्ञान बहुत कम था, परन्तु दूरदर्शिता और व्यावहारिक
कुशलता उसमें कूट-कूट कर भरी थी। उसने तय किया कि उसके नये व्यापार का
उदेश्य होगा बढ़िया क्वालिटी का सामान बेचना जिसका एक ही दाम होगा- एक
पैनि।
माइकल ने यह सब बड़े ही काल्पनिक ढंग से किया। सारा सामान खुली टोकरियों में सजाया गया, ताकि ग्राहक अपने आप उसे पसन्द कर सकें। दुकान के बोर्ड पर लिखा गया ‘दाम ना पूछें, दाम है एक पैनि’। कारोबार बढ़ता ही चला गया।
माइकल ने यह सब बड़े ही काल्पनिक ढंग से किया। सारा सामान खुली टोकरियों में सजाया गया, ताकि ग्राहक अपने आप उसे पसन्द कर सकें। दुकान के बोर्ड पर लिखा गया ‘दाम ना पूछें, दाम है एक पैनि’। कारोबार बढ़ता ही चला गया।
आज का ‘मार्क्स एंड स्पेंसर’
1924 में साइमन मार्क्स ने अमरीका जाकर विश्व के सबसे बड़े और सबसे सफल
फुटकर विक्रेता ‘सिअर्स, रोबेक एंड कम्पनी’ के कामकाज
का
अध्ययन किया। यूँ तो कम्पनी ने कई क्षेत्रों में नए प्रयोग किए थे पर इसकी
सफलता का मुख्य कारण था बाज़ार और ग्राहक का विश्लेषण।
‘मार्क्स एंड स्पेंसर’ ने इससे सबक लेकर अपने बाज़ार में इसी तरह का विश्लेषण किया, और पाया कि उन्हें अपने व्यापार के उद्देश्य को पुनः निर्धारित करने की आवश्यकता थी। उनका नया उद्देश्य बना मध्यम और निम्न वर्ग के लोगों को उच्च स्तर के कपड़े, जो सभी की पहुँच के भीतर हों, उचित दामों पर उपलब्ध कराना इसका एक खास सामाजिक महत्त्व भी था। उन दिनों जहाँ ऊँचे वर्ग के लोग खूब बन-ठन कर रहते थे, निचले वर्गों के लोग चाहते हुए भी बढ़िया कपड़े नहीं पहन पाते थे। अतः बाज़ार में सस्ते और बढ़िया कपड़ों की खूब माँग थी, जिसका ‘मार्क्स एंड स्पेंसर ने पूरा लाभ उठाया।
इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए कम्पनी ने ग्राहक विश्लेषण से लेकर दुकानों की योजना तक हर काम पर बारीकी से ध्यान दिया। कम्पनी का कड़ा क्वालिटी नियंत्रण सारे विश्व में प्रसिद्ध हैं। कहा जाता हैं कि ‘मार्क्स एंड स्पेंसर’ के लिए खरीदारी करने वाले लोग उस छोटे से छोटे नुक्स के कारण सामान वापस भिजवा देते हैं जो और लोगों को ढूँढ़ने से भी नहीं मिलेगा।
‘मार्क्स एंड स्पेंसर’ ने इससे सबक लेकर अपने बाज़ार में इसी तरह का विश्लेषण किया, और पाया कि उन्हें अपने व्यापार के उद्देश्य को पुनः निर्धारित करने की आवश्यकता थी। उनका नया उद्देश्य बना मध्यम और निम्न वर्ग के लोगों को उच्च स्तर के कपड़े, जो सभी की पहुँच के भीतर हों, उचित दामों पर उपलब्ध कराना इसका एक खास सामाजिक महत्त्व भी था। उन दिनों जहाँ ऊँचे वर्ग के लोग खूब बन-ठन कर रहते थे, निचले वर्गों के लोग चाहते हुए भी बढ़िया कपड़े नहीं पहन पाते थे। अतः बाज़ार में सस्ते और बढ़िया कपड़ों की खूब माँग थी, जिसका ‘मार्क्स एंड स्पेंसर ने पूरा लाभ उठाया।
इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए कम्पनी ने ग्राहक विश्लेषण से लेकर दुकानों की योजना तक हर काम पर बारीकी से ध्यान दिया। कम्पनी का कड़ा क्वालिटी नियंत्रण सारे विश्व में प्रसिद्ध हैं। कहा जाता हैं कि ‘मार्क्स एंड स्पेंसर’ के लिए खरीदारी करने वाले लोग उस छोटे से छोटे नुक्स के कारण सामान वापस भिजवा देते हैं जो और लोगों को ढूँढ़ने से भी नहीं मिलेगा।
भगवान बारीकियों में बसते हैं
‘मार्क्स एंड स्पेंसर’ के उदाहरण से साफ़ पता चलता है
कि
उदेश्यों को तय करना ही काफ़ी नहीं है। इन्हें पूरा करने की प्रकिया भी
उतनी ही महत्त्वपूर्ण है। बेचने के लिए तैयार किया गया सामान पूरी तरह
नुक्स-रहित और उत्तम क्वालिटी का होना चाहिए। कहते हैं न, कितने ही बढ़िया
पकवान बनाइए, एक चुटकी ज़्यादा नमक से बात बिगड़ जाती है। महान वास्तुविद
माइक वैन ने ठीक ही कहा है-‘गाड इज़ इन द डीटेल्ज़’
(भगवान
बारीकियों में बसते हैं।) जाने-माने संगीतकार सर्जियू कमीशन अमरीका के
‘ह्यूस्टन सिंफनी आर्केस्ट्रा’ के संचालक के रूप में
विश्व भर
में प्रसिद्ध हैं। उनकी सबसे बड़ी खूबी यह है कि वे अपने
संगीतज्ञों
का समय व्यर्थ नहीं करते। उनके निर्देश बहुत स्पष्ट होते हैं- वे अपने
संगीतज्ञों को साफ़ बता देते हैं कि उन्हें किस पल क्या सुनना है। इन्हीं
बारीकियों पर ध्यान देने से उनका संगीत इस बुलन्दी पर पहुँचा है।
‘डयूक आफ़ वेलिंगटन’ ने हमें मैनेजमेंट के तीन सुनहरे नियम दिए हैं।
‘डयूक आफ़ वेलिंगटन’ ने हमें मैनेजमेंट के तीन सुनहरे नियम दिए हैं।
पहला नियम
‘मेरा हमेशा से नियम रहा है कि जिस दिन का काम हो उसी दिन में
पूरा किया जाए’
दूसरा नियम
हर वस्तु की एक जगह हो और हर वस्तु अपनी जगह पर हो।
उदाहरण के लिए, उन्होंने सुनिश्चित किया कि बीमारों को उनका बिस्तर और कंबल मिले, स्वस्थ्य लोगों को ताड़ी और पानी का सही मिश्रण, और बैलों के लिए सही गति और बोझ तय किया जाए।
वे सभी छोटी-छोटी बातों पर ध्यान देने के लिए मशहूर थे।
उदाहरण के लिए, उन्होंने सुनिश्चित किया कि बीमारों को उनका बिस्तर और कंबल मिले, स्वस्थ्य लोगों को ताड़ी और पानी का सही मिश्रण, और बैलों के लिए सही गति और बोझ तय किया जाए।
वे सभी छोटी-छोटी बातों पर ध्यान देने के लिए मशहूर थे।
तीसरा नियम
‘मैं अपने घोड़े पर चढ़कर स्वयं देखूँगा, और तब तुम्हें
बताऊँगा।’ वह हर बात स्वयं अपनी आँखों से देखने में विश्वास
करते
थे। उदाहरण के लिए, नेपोलियन की सेना के विरुद्ध पुर्तगाल और स्पेन की
ऐतिहासिक लड़ाइयों के दौरान उन्होंने कई हफ्तों तक अपने मुख्य इंजीनियर के
साथ लिब्सन प्रायद्वीप का दौरा किया। इसके बाद उन्होंने अपने मुख्य
इंजीनयर को 21 बातों के ज्ञापन के साथ नेपोलियन की सेना के होने वाले हमले
से जूझने के लिए विस्तृत निर्देश भी दिए।
वैलिंग्टन एक प्रतिभाशाली युद्धनीतिज्ञ होने के साथ-साथ छोटी-छोटी किन्तु महत्त्वपूर्ण बातों की बारीकियों पर पूरा ध्यान देते थे और यही उनकी अभूतपूर्व सफलताओं का रहस्य था।
ड्यूक के नियम उनकी बहुत बड़ी सफलताओं का आधार बने। 1803 में अस्साए की बड़ी लड़ाई में भारी मुश्किलों से जूझ कर उन्होंने मराठा सेना को मात दी उस समय उनके पास केवल 7,000 सैनिक थे, जबकि मराठा सेना इससे छह गुना बड़ी थी। उनके हर घुड़सवार के मुकाबले मराठों के पास 21 घुड़सवार थे, और केवल 22 तोपों के मुकाबले सौ से भी अधिक तोपें। इसके बाद वह विश्व प्रसिद्ध हो गए जब उन्होंने 1815 में वाटरलू की लड़ाई में नेपोलियन पर जीत हासिल की। इस विजय ने यूरोप के इतिहास का रुख ही मोड़ कर रख दिया।
वैलिंग्टन एक प्रतिभाशाली युद्धनीतिज्ञ होने के साथ-साथ छोटी-छोटी किन्तु महत्त्वपूर्ण बातों की बारीकियों पर पूरा ध्यान देते थे और यही उनकी अभूतपूर्व सफलताओं का रहस्य था।
ड्यूक के नियम उनकी बहुत बड़ी सफलताओं का आधार बने। 1803 में अस्साए की बड़ी लड़ाई में भारी मुश्किलों से जूझ कर उन्होंने मराठा सेना को मात दी उस समय उनके पास केवल 7,000 सैनिक थे, जबकि मराठा सेना इससे छह गुना बड़ी थी। उनके हर घुड़सवार के मुकाबले मराठों के पास 21 घुड़सवार थे, और केवल 22 तोपों के मुकाबले सौ से भी अधिक तोपें। इसके बाद वह विश्व प्रसिद्ध हो गए जब उन्होंने 1815 में वाटरलू की लड़ाई में नेपोलियन पर जीत हासिल की। इस विजय ने यूरोप के इतिहास का रुख ही मोड़ कर रख दिया।
रोज़मर्रा का कामकाज और नयापन
नयेपन से ही आर्थिक उन्नति होती है। कोई भी व्यापार तभी आगे बढता है जब
उसमें कुछ न कुछ नया होता रहे। जैसे 1925 में डाक के जरिए सामान मांगने की
जगह ‘रीटेल चेन’ के आ जाने से अमरीका में खरीदारी
करने के
तरीके में एक क्रान्ति आ गयी। इसी तरह हवाई जहाज़ आ जाने से पानी के
जहाज़ों पर काफ़ी असर पड़ा। स्टीमर्स से यात्रियों के आने-जाने में भारी
कमी आई।
पर कुछ भी नया करना आसान नहीं होता। इसके लिए ऐसी मैनेजमेंट चाहिए जो नए काम का जोखिम उठाने को तैयार हो- कौन जाने उसका नतीजा क्या निकले। और फिर नए काम को रोज़म़र्रा के नित्यक्रम (रूटीन) में जमाना भी अवश्यक हो जाता है। अब पानी के जहाज़ की जगह हवाई जहाज़ का आना ही ले लीजिए।
पर कुछ भी नया करना आसान नहीं होता। इसके लिए ऐसी मैनेजमेंट चाहिए जो नए काम का जोखिम उठाने को तैयार हो- कौन जाने उसका नतीजा क्या निकले। और फिर नए काम को रोज़म़र्रा के नित्यक्रम (रूटीन) में जमाना भी अवश्यक हो जाता है। अब पानी के जहाज़ की जगह हवाई जहाज़ का आना ही ले लीजिए।
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