विविध >> भारत 2020 नवनिर्माण की रूपरेखा भारत 2020 नवनिर्माण की रूपरेखाए. पी. जे. अब्दुल कलाम, वाई. एस. राजन
|
6 पाठकों को प्रिय 356 पाठक हैं |
इस पुस्तक में दुनिया के सबसे शक्तिशाली और समृद्ध पाँच राष्ट्रों की परिकल्पना और परियोजना प्रस्तुत करती है
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
क्या भारत अगले बीस वर्षों में पहली दुनिया का देश बन सकता है ?
अवश्य- भारत के अग्रणी वैज्ञानिक तथा पिछले दिनों पोखरण में किए गए न्यूक्लियर विस्फोट के जनक भारत-रत्न डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम का यह निश्चित विश्वास है।
और कैसे ?
- यह इस राष्ट्रीय महत्व की विचारोत्तेजक पुस्तक का विषय है।
ग़रीबी, तेज़ी-से बढ़ती जनसंख्या, शिक्षा का अभाव, बेरोज़गारी, विकास की धीमी गति आदि स्वाधीनता-प्राप्ति के पचास वर्ष बाद भी भारत की प्रमुख समस्याएँ हैं। आज स्थिति ऐसी आ गई है कि लगता है, दो-चार वर्ष में ही देश बिलकुल तबाह हो जाएगा।
परन्तु नहीं, डॉ.अब्दुल कलाम का कहना है कि इस परिकल्पना के अनुसार मेहनत से काम करने से अगले बीस वर्षों में हम संसार के पाँच सबसे समृद्ध और शक्तिशाली देशों में सम्मिलित हो सकते हैं।
दरअसल यह पुस्तक जापान, अमेरिका आदि देशों के अनुकरण पर भारत सरकार द्वारा कराए गए एक व्यापक और विशिष्ट अध्ययन पर आधारित है जिसमें सभी क्षेत्रों के अग्रणी विशेषज्ञों, वैज्ञानिकों, समाजसेवी संस्थाओं, पत्रकारों तथा गाँवों तक के बहुत-से व्यक्तियों ने भाग लिया था। डॉ. कलाम इस योजना के संचालकों में एक थे और श्री वाई एस राजन ‘टाइफ़ैक’ नामक उस संस्था के प्रमुख थे जिसने यह विशेष अध्ययन किया। खनिज, खेती, उद्योग, विज्ञान, इन्फ़ोटैक, अनुसंधान, स्वास्थय, अर्थ, समाज आदि विषयों पर बड़ी गहराई से तथ्यों, आंकड़ों, संभावनाओं तथा प्रयत्नों को इस प्रकार वर्णित किया गया है जो सही लगने के साथ ही प्रेरणा भी प्रदान करती है।
यह पुस्तक देश के भविष्य के प्रति चिंतित प्रत्येक भारतीय के लिए अवश्य पठनीय है।
भारत में न्यूक्लियर बम के निर्माता
डाँ.ए.पी.जे अब्दुल कलाम की यह
महत्वपूर्ण रचना, भारत अगले बीस वर्षों में
किस प्रकार दुनिया के सबसे शक्तिशाली
और समृद्ध पाँच राष्ट्रों में सम्मिलित हो
सकता है-उसकी परिकल्पना तथा उसकी
कार्ययोजना प्रस्तुत करती है। अमेरिका,
जापान, दक्षिण कोरिया आदि देश जिस
प्रकार कार्ययोजनाएँ बनाकर निर्माण का
कार्य करते हैं, उसी प्रकार भारत भी
विज्ञान तथा अन्य क्षेत्रों में नई ऊँचाइयाँ,
नए आयाम छू सकता है।
‘यह पुस्तक उस महत्वाकांक्षी योजना के गूढ़-गंभीर आयामों का विश्लेषण तो करती ही है, प्रेरणा का एक गहन स्रोत्र भी बन जाती है। विषय का अत्यंत सरल प्रस्तुतीकरण। विकसित देशों के विकास की पूरी प्रक्रिया, उनके मापदंड और उन पैमाने पर भारत की क्षमता का लेखक द्वय ने नितांत सरल विश्लेषण किया है।
अवश्य- भारत के अग्रणी वैज्ञानिक तथा पिछले दिनों पोखरण में किए गए न्यूक्लियर विस्फोट के जनक भारत-रत्न डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम का यह निश्चित विश्वास है।
और कैसे ?
- यह इस राष्ट्रीय महत्व की विचारोत्तेजक पुस्तक का विषय है।
ग़रीबी, तेज़ी-से बढ़ती जनसंख्या, शिक्षा का अभाव, बेरोज़गारी, विकास की धीमी गति आदि स्वाधीनता-प्राप्ति के पचास वर्ष बाद भी भारत की प्रमुख समस्याएँ हैं। आज स्थिति ऐसी आ गई है कि लगता है, दो-चार वर्ष में ही देश बिलकुल तबाह हो जाएगा।
परन्तु नहीं, डॉ.अब्दुल कलाम का कहना है कि इस परिकल्पना के अनुसार मेहनत से काम करने से अगले बीस वर्षों में हम संसार के पाँच सबसे समृद्ध और शक्तिशाली देशों में सम्मिलित हो सकते हैं।
दरअसल यह पुस्तक जापान, अमेरिका आदि देशों के अनुकरण पर भारत सरकार द्वारा कराए गए एक व्यापक और विशिष्ट अध्ययन पर आधारित है जिसमें सभी क्षेत्रों के अग्रणी विशेषज्ञों, वैज्ञानिकों, समाजसेवी संस्थाओं, पत्रकारों तथा गाँवों तक के बहुत-से व्यक्तियों ने भाग लिया था। डॉ. कलाम इस योजना के संचालकों में एक थे और श्री वाई एस राजन ‘टाइफ़ैक’ नामक उस संस्था के प्रमुख थे जिसने यह विशेष अध्ययन किया। खनिज, खेती, उद्योग, विज्ञान, इन्फ़ोटैक, अनुसंधान, स्वास्थय, अर्थ, समाज आदि विषयों पर बड़ी गहराई से तथ्यों, आंकड़ों, संभावनाओं तथा प्रयत्नों को इस प्रकार वर्णित किया गया है जो सही लगने के साथ ही प्रेरणा भी प्रदान करती है।
यह पुस्तक देश के भविष्य के प्रति चिंतित प्रत्येक भारतीय के लिए अवश्य पठनीय है।
भारत में न्यूक्लियर बम के निर्माता
डाँ.ए.पी.जे अब्दुल कलाम की यह
महत्वपूर्ण रचना, भारत अगले बीस वर्षों में
किस प्रकार दुनिया के सबसे शक्तिशाली
और समृद्ध पाँच राष्ट्रों में सम्मिलित हो
सकता है-उसकी परिकल्पना तथा उसकी
कार्ययोजना प्रस्तुत करती है। अमेरिका,
जापान, दक्षिण कोरिया आदि देश जिस
प्रकार कार्ययोजनाएँ बनाकर निर्माण का
कार्य करते हैं, उसी प्रकार भारत भी
विज्ञान तथा अन्य क्षेत्रों में नई ऊँचाइयाँ,
नए आयाम छू सकता है।
‘यह पुस्तक उस महत्वाकांक्षी योजना के गूढ़-गंभीर आयामों का विश्लेषण तो करती ही है, प्रेरणा का एक गहन स्रोत्र भी बन जाती है। विषय का अत्यंत सरल प्रस्तुतीकरण। विकसित देशों के विकास की पूरी प्रक्रिया, उनके मापदंड और उन पैमाने पर भारत की क्षमता का लेखक द्वय ने नितांत सरल विश्लेषण किया है।
- इंडिया टुडे
‘यह पुस्तक समग्र विकास में सबकी भागीदारी की रूपरेखा प्रस्तुत
करती
है।’
- राष्ट्रीय सहारा
‘इस किताब की शक्ल में डॉ. कलाम ने सिर्फ सपना ही नहीं देखा,
बल्कि
वह रास्ते भी बताए हैं जिन पर चलकर भारत सन् 2020 तक दुनिया के पांच सबसे
शक्तिशाली राष्ट्रों में आ
जाएगा।’
- पंजाब केसरी
समर्पण
डॉ. कलाम के एक भाषण के बाद एक दस साल की लड़की उनसे ऑटोग्राफ़ लेने आई।
उन्होंने उससे पूछा, ‘‘तुम्हारी महत्त्वाकांक्षा क्या
है
?’’
लड़की ने बिना एक क्षण रुके जवाब दिया, ‘‘मैं एक विकसित भारत में जीवन बिताना चाहती हूँ।’’
यह पुस्तक उस लड़की को और उसके समान आकांक्षा रखने वाले लाखों भारतीयों को समर्पित है !
लड़की ने बिना एक क्षण रुके जवाब दिया, ‘‘मैं एक विकसित भारत में जीवन बिताना चाहती हूँ।’’
यह पुस्तक उस लड़की को और उसके समान आकांक्षा रखने वाले लाखों भारतीयों को समर्पित है !
आभार
इस पुस्तक की रचना में सैकड़ों भारतीयों ने हमारे विचारों को स्वरूप
प्रदान किया है-जिनमें से अनेक प्रख्यात व्यक्ति हैं। उनके साथ हुए
प्रत्येक संवाद से हमारे अनुभव में वृद्धि हुई और भारत की विकास
आवश्यकताओं तथा उपयुक्त कार्यवाहियों के संबंध में हमारी समझ में नए आयाम
जुड़े। इन सभी व्यक्तियों को यहाँ नामोल्लेख करना संभव नहीं है। सर्वप्रथम
हम ‘तकनीकी परिकल्पना : 2020’ के विविध टास्क
फ़ोर्सों,
पैनलों के अध्यक्षों और सह-अध्यक्षों तथा
कोआर्डिनेटरों, और टाइफैक से संबंधित प्रमुख व्यक्तियों के प्रति हमारे प्रोत्साहन का आज भी स्रोत्र हैं। इन टास्क फ़ोर्सों और पैनलों के अनेक सदस्य अब कार्यदल के सदस्य हैं और टाइफैक के कर्मचारी भी हैं। हम उनेक समर्पित भाव से किए गए कार्य के प्रति आभार व्यक्त करते हैं। इस पुस्तक के लेखन में अनेक स्थानों पर उनके कार्य के परिणामों का उपयोग किया गया है। हम भारत सरकार के डिपार्टमेंट ऑफ साइंस एंड टेक्नॉलॉजी के सचिव प्रो. वी.एस.राममूर्ति के विशेष आभारी हैं। जिन्होंने हमें न केवल प्रोत्साहित किया वरन् टाइफैक रिपोर्टों के उपयोग की अनुमति भी प्रदान की।
किताब लिखने की तैयारी शुरू करते ही हमें उन अनेक कार्यों का ध्यान आया जो पांडुलिपि को अन्तिन रूप देने तक हमें करने होंगे। इसमें एच. शेरिडन का योगदान सबसे महत्त्वपूर्ण है जो बड़े समर्पित भाव से अपने ‘लैपटॉप’ कम्प्यूटर पर आफिस के समय के बाद कई महीनों तक इस पर परिश्रम करते रहे। पेंग्विन बुक्स के कृष्ण चोपड़ा ने अपनी विशिष्ट योजकता द्वारा पांडुलिपि को अंतिम रूप देने में योग दिया- उनका विशेष आभार।
वाई. एस. राजन अपनी पत्नी गोमती के आभारी हैं जिन्होंने लेखन के दौरान उन्हें न केवल सब प्रकार की सुविधा और सहायता प्रदान की, बल्कि जीवन की वास्तविकताओं पर भी सही रोशनी डाली।
ए. पी. जे. अब्दुल कलाम का उन सब हज़ारों भारतीयों को आभार जो उन्हें निरंतर लिखते रहते हैं और इस प्रकार उन्हें नई तकनीक योजनाएँ लेने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।
कोआर्डिनेटरों, और टाइफैक से संबंधित प्रमुख व्यक्तियों के प्रति हमारे प्रोत्साहन का आज भी स्रोत्र हैं। इन टास्क फ़ोर्सों और पैनलों के अनेक सदस्य अब कार्यदल के सदस्य हैं और टाइफैक के कर्मचारी भी हैं। हम उनेक समर्पित भाव से किए गए कार्य के प्रति आभार व्यक्त करते हैं। इस पुस्तक के लेखन में अनेक स्थानों पर उनके कार्य के परिणामों का उपयोग किया गया है। हम भारत सरकार के डिपार्टमेंट ऑफ साइंस एंड टेक्नॉलॉजी के सचिव प्रो. वी.एस.राममूर्ति के विशेष आभारी हैं। जिन्होंने हमें न केवल प्रोत्साहित किया वरन् टाइफैक रिपोर्टों के उपयोग की अनुमति भी प्रदान की।
किताब लिखने की तैयारी शुरू करते ही हमें उन अनेक कार्यों का ध्यान आया जो पांडुलिपि को अन्तिन रूप देने तक हमें करने होंगे। इसमें एच. शेरिडन का योगदान सबसे महत्त्वपूर्ण है जो बड़े समर्पित भाव से अपने ‘लैपटॉप’ कम्प्यूटर पर आफिस के समय के बाद कई महीनों तक इस पर परिश्रम करते रहे। पेंग्विन बुक्स के कृष्ण चोपड़ा ने अपनी विशिष्ट योजकता द्वारा पांडुलिपि को अंतिम रूप देने में योग दिया- उनका विशेष आभार।
वाई. एस. राजन अपनी पत्नी गोमती के आभारी हैं जिन्होंने लेखन के दौरान उन्हें न केवल सब प्रकार की सुविधा और सहायता प्रदान की, बल्कि जीवन की वास्तविकताओं पर भी सही रोशनी डाली।
ए. पी. जे. अब्दुल कलाम का उन सब हज़ारों भारतीयों को आभार जो उन्हें निरंतर लिखते रहते हैं और इस प्रकार उन्हें नई तकनीक योजनाएँ लेने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।
भूमिका
जब भारत अपनी स्वाधीनता के लिए संघर्ष कर रहा था, तब इस पुस्तक के हम
दोनों लेखकों का जन्म हुआ। जब जवाहरलाल नेहरू ने स्वाधीनता प्राप्त होने
पर ‘ट्रिस्ट विद डेस्टनी’ नाम से प्रसिद्ध अपना भाषण
दिया, तब
हममें एक स्कूल के अंतिम वर्ष में शिक्षा प्राप्त कर रहा था, दूसरा शैशव
के अपने तोतले बोल बोल रहा था। दोनों में से किसी का भी परिवार न धनी था,
न शक्तिसम्पन्न। दोनों को एक-साथ लाने वाली शक्ति थी आधुनिक भारत का विकास
करने के लिए स्वतंत्र देश में विज्ञान और तकनीक के उपयोग की सम्भावना तथा
भवितव्य।
यह नेहरूजी तथा होमी भाभा द्वारा समर्थित विक्रम साराभाई की परिकल्पना थी, जिससे हमें अनेक अन्तरिक्ष कार्यक्रम में कार्य करने का अवसर मिला। यह कार्यक्रम था देशभर में, विशेषत: उसके छह लाख ग्रामों में, पारम्परिक उपायों से आगे बढ़कर, विकास के संदेशों को पहुँचाने का। हमें देश के प्राकृतिक संसाधनों का भी सर्वेक्षण करना था जिससे जनहित में उनका उपयोग किया जा सके।
साठ के दशक में जब अन्तरिक्ष कार्यक्रम की शुरूआत हुई थी, तब अनेकों को यह सब कर पाना असंभव लगता होगा। परन्तु हम, और हमारे अनेक साथी, इस परिकल्पना को उचित ही नहीं, संभव भी मानते थे। इससे एक ऐसे मिशन ने जन्म लिया जिसके हम सभी भागीदार थे। हमारे संस्थान इसरो (ISRO) का हर व्यक्ति यह विश्वास करने लगा कि उसका जन्म इस मिशन को साकार करके अंतरिक्ष तकनीकी द्वारा देश तथा उसकी जनता का हितसाधन करने के लिए ही हुआ है।
अब हमारे लिए पीछे लौटना संभव नहीं था। हम रात-दिन काम करते। अनेक बार असफल होकर कभी एकाध सफलता प्राप्त करते। इस प्रकार हमने जो साधन तथा तंत्र बनाए, विकसित किए और परीक्षण करके जिनकी जाँच की-उनका एक ही उद्देश्य था : एक विकसित, शक्तिशाली तथा गर्वोन्नत ऐसे भारत का निर्माण जिसके प्रत्येक नागरिक को उनसे प्राप्त होने वाली सुविधाएँ उपलब्ध हों। हमें यह कहते हुए प्रसन्नता होती है कि अंतरिक्ष तकनीकी से संबंधित हमारे स्वप्न-जैसे, आम जनता तक हमारी पहुँच, दूरदराज़ के इलाकों में नेटवर्क्स के द्वारा संचार तथा संदेश पहुँचाने की व्यवस्था, खतरों की सूचना देने वाले साधन, ज़मींदोज़ जल की जानकारी, जंगल बचाओ योजनाएँ, इत्यादि-पूरे किए जा चुके हैं।
हमें इसका भी गर्व और प्रसन्नता है कि कृषि, विज्ञान, कला, संस्कृति और सामाजिक क्षेत्रों में कार्यरत अनेक व्यक्तियों के स्वप्न भी साकार हो चुके हैं परन्तु हमारी परिकल्पना अभी-भी अधूरी ही है- ग़रीबी से रहित एक समृद्ध भारत की परिकल्पना, वाणिज्य तथा व्यापार में अग्रणी भारत की परिकलिपना, विज्ञान तथा तकनीकी के विविध क्षेत्रों में शक्तिशाली भारत की परिकल्पना, और नवपरिवर्तनशील ऐसे औद्योगिक भारत की परिकल्पना जिसमें प्रत्येक व्यक्ति को शिक्षा और स्वास्थ्य की सुविधाएँ उपलब्ध हों। सच्चाई यह है कि इनमें से कई विषयों पर आज निराशा ही व्याप्त है।
हम स्वाधीनता का पचासवाँ वर्ष पूरा कर चुके हैं- और आज के अधिकांश भारतवासी इसी अवधि में पैदा हुए हैं। हर साल हमारे देश की जनसंख्या लगभग दो करोड बढ़ जाती है।
उनके लिए हमारी परिकल्पना क्या हो ? कुछ व्यक्तियों की तरह क्या हम विकास की धारणा पर प्रश्नचिंह्न लगाकर उन लोगों को सदियों से चली आ रही उनकी गतिरुद्ध स्थिति में ही पड़ा रहने देना चाहेंगे, अथवा हम केवल समाज के उच्च वर्ग की ओर ही ध्यान देकर शेष सबको उनके भाग्य पर निर्भर करने को-‘बाज़ार-संचालित नीतियाँ’ तथा ‘प्रतियोगिता की क्षमता’ जैसे मधुर शब्दों का इस्तेमाल करते हुए-छोड़ देंगे ? अथवा विश्वीकरण की शक्तियों का सहारा लेकर अपने स्वयं के प्रयत्नों को तिलांजलि दे देंगे ? अगले दो दशकों में हम भारत (तथा उसकी जनता को) किस ओर जाते हुए देखना चाहते हैं ? इससे भी आगे के पाँच दशकों में, तथा उससे भी अगले वर्षों में हम देश को किस दिशा में ले जाना चाहेंगे ?
सौभाग्य से हम दोनों लेखक ऐसे अनेक व्यक्तियों के संपर्क में आए जो इन सवालों को उठा रहे थे और कुछ उत्तर भी तलाश रहे थे। ये प्रश्न बिल्कुल नई संस्था, दि टेक्नॉलॉजी इन्फ़ार्मेशन, फ़ोरकास्टिंग एण्ड एसेसमेंट कौंसिल (टाइफ़ैक) के माध्यम से, जिसने सन् 2020 तक भारत के लिए एक तकनीकी योजना निर्धारित करने का कार्यक्रम बनाया था, उठाए गए।
इस कार्यक्रम में उद्योग, शिक्षा, प्रयोगशालाओं तथा शासन-प्रबंधन के क्षेत्रों से लगभग 500 अनुभवी व्यक्ति सम्मिलित हुए। विशेषज्ञों तथा सामाजिक विकास से जुड़े अन्य अनेक व्यक्तियों ने इसमें भाग लिया। प्रश्नावलियों के उत्तर भेजकर तथा अन्य माध्यमों से लगभग 5000 और भी व्यक्तियों ने इसमें योगदान किया।
इस प्रक्रिया में अनेक टीमों ने विविध विषयों पर विचार किया, ड्राफ़्ट रिपोर्टों को देखा-परखा तथा 2 अगस्त, 1996 को तत्कालीन प्रधानमंत्री ने अन्तिम रिपोर्ट जारी की। इस प्रकार हमें अगणित व्यक्तियों से सम्पर्क करके भारत के लिए एक सुविचारित योजना प्रस्तुत करने का अवसर प्राप्त हुआ।
हमें प्राप्त योगदानों में अनेक ठोस सुझावों द्वारा हमारा उत्साहवर्धन करके तो अनेक का कहना यह ही था कि सुनिश्चित तथा दीर्घकालीन कार्यक्रमों और तंत्रों को कार्यरूप दिया जाना लगभग असम्भव था-जो बड़ी निराशा की बात थी। हम देश के अनेक भागों में जाकर वहाँ विविध वर्गों के लोगों से मिलकर भी इन विषयों पर बातचीत करते रहे। हमने इस पर भी विचार किया कि आज की परिवर्तनशील दुनिया में भारत की आवश्यकताएँ क्या कम हो सकती हैं ?
हमें देश के शासन प्रबंधन की स्थिति तथा सामाजिक और राजनीतिक विवशताओं का ज्ञान है। सौभाग्य से हमें समाज के विविध स्तरों पर जनहित के लिए चलाए जाने वाले कार्यों का अनुभव है, तथा दूसरी ओर व्यावसायिक दबावों के अधीन बनाई और चलाई जाने वाली योजनाओं और बड़े पैमाने पर उपग्रह छोड़ने, उन्हें आकाश में फेंकने वाले यंत्र निर्माण करने और मिसाइल बनाने जैसी योजनाओं का भी व्यापक अनुभव हुआ, वही सब इस पुस्तक की रचना का आधार हैं।
इन सभी तथ्यों को ध्यान में रखते हुए तथा भारत और अन्य देशों संबंधी अनेक विकास रिपोर्टों का अध्ययन करने के बाद भी हमारा निश्चित विश्वास है कि सन् 2020 में हमारा देश विकसित देशों की श्रेणी तक पहुँच सकने में पूर्ण समर्थ है। हम भारतवासी अपनी दरिद्रता की वर्तमान दशा से ऊपर उठकर अपनी शिक्षा, स्वास्थ्य तथा आत्मसम्मान की उन्नत हो रही स्थिति को आधार बनाकर देश की प्रगति में योगदान कर सकते हैं।
भारत अपनी सामाजिक क्षमताओं के विकास के लिए अनिवार्य विविध तकनीकी क्षमताएँ भी पर्याप्त मात्रा में प्राप्त कर सकता है।
इस पुस्तक में हमने इस विषय से संबंधित कुछ विचार प्रस्तुत किए हैं। हमने कुछ उन कार्य-योजनाओं के तत्त्व भी बताए हैं जो देश के अनेक युवकों का जीवनोद्देश्य बन सकते हैं। हमें आशा है कि जिस प्रकार तीन दशक पूर्व हमारे मन उन समय के अन्तरिक्ष कार्यक्रम से प्रज्वलित हो उठे थे, उसी प्रकार ये कार्यक्रम भी अनेक युवा मस्तिष्कों को प्रज्वलित करने में समर्थ होंगे। देश के लिए अपने स्वप्न और उससे निर्मित जीवन के अपने मिशन के कारण हम आज भी स्वयं को युवा ही महसूस करते हैं।
सन् 2020 तक, तथा उसके पूर्व भी, विकसित भारत की कल्पना स्वप्न मात्र नहीं है। यह कुछ गिने-चुने भारतीयों की प्रेरणा मात्र भी नहीं होना चाहिए-यह हम सब भारतीयों का मिशन होना चाहिए, जिसे हमें पूर्ण करना है।
हमारा विश्वास है कि प्रज्वलित युवा मस्तिष्क प्रबल संसाधन होते हैं। धरती के ऊपर, आकाश में तथा जल के नीचे छिपे किसी भी संसाधन से यह संसाधन कहीं अधिक शक्तिशाली है। हम सबको आज का ‘विकासशील’ भारत एक ‘विकसित’ भारत में रूपांतरित करने के उद्देश्य से एक-साथ मिलकर काम करना चाहिए, और इस महान उद्योग की पूर्ति के लिए आवश्यक क्रांति को हमारे मस्तिष्कों में जन्म लेना चाहिए। हमें विश्वास है कि यह पुस्तक अनेक मस्तिष्कों को जाग्रत करने में सफल होगी।
यह नेहरूजी तथा होमी भाभा द्वारा समर्थित विक्रम साराभाई की परिकल्पना थी, जिससे हमें अनेक अन्तरिक्ष कार्यक्रम में कार्य करने का अवसर मिला। यह कार्यक्रम था देशभर में, विशेषत: उसके छह लाख ग्रामों में, पारम्परिक उपायों से आगे बढ़कर, विकास के संदेशों को पहुँचाने का। हमें देश के प्राकृतिक संसाधनों का भी सर्वेक्षण करना था जिससे जनहित में उनका उपयोग किया जा सके।
साठ के दशक में जब अन्तरिक्ष कार्यक्रम की शुरूआत हुई थी, तब अनेकों को यह सब कर पाना असंभव लगता होगा। परन्तु हम, और हमारे अनेक साथी, इस परिकल्पना को उचित ही नहीं, संभव भी मानते थे। इससे एक ऐसे मिशन ने जन्म लिया जिसके हम सभी भागीदार थे। हमारे संस्थान इसरो (ISRO) का हर व्यक्ति यह विश्वास करने लगा कि उसका जन्म इस मिशन को साकार करके अंतरिक्ष तकनीकी द्वारा देश तथा उसकी जनता का हितसाधन करने के लिए ही हुआ है।
अब हमारे लिए पीछे लौटना संभव नहीं था। हम रात-दिन काम करते। अनेक बार असफल होकर कभी एकाध सफलता प्राप्त करते। इस प्रकार हमने जो साधन तथा तंत्र बनाए, विकसित किए और परीक्षण करके जिनकी जाँच की-उनका एक ही उद्देश्य था : एक विकसित, शक्तिशाली तथा गर्वोन्नत ऐसे भारत का निर्माण जिसके प्रत्येक नागरिक को उनसे प्राप्त होने वाली सुविधाएँ उपलब्ध हों। हमें यह कहते हुए प्रसन्नता होती है कि अंतरिक्ष तकनीकी से संबंधित हमारे स्वप्न-जैसे, आम जनता तक हमारी पहुँच, दूरदराज़ के इलाकों में नेटवर्क्स के द्वारा संचार तथा संदेश पहुँचाने की व्यवस्था, खतरों की सूचना देने वाले साधन, ज़मींदोज़ जल की जानकारी, जंगल बचाओ योजनाएँ, इत्यादि-पूरे किए जा चुके हैं।
हमें इसका भी गर्व और प्रसन्नता है कि कृषि, विज्ञान, कला, संस्कृति और सामाजिक क्षेत्रों में कार्यरत अनेक व्यक्तियों के स्वप्न भी साकार हो चुके हैं परन्तु हमारी परिकल्पना अभी-भी अधूरी ही है- ग़रीबी से रहित एक समृद्ध भारत की परिकल्पना, वाणिज्य तथा व्यापार में अग्रणी भारत की परिकलिपना, विज्ञान तथा तकनीकी के विविध क्षेत्रों में शक्तिशाली भारत की परिकल्पना, और नवपरिवर्तनशील ऐसे औद्योगिक भारत की परिकल्पना जिसमें प्रत्येक व्यक्ति को शिक्षा और स्वास्थ्य की सुविधाएँ उपलब्ध हों। सच्चाई यह है कि इनमें से कई विषयों पर आज निराशा ही व्याप्त है।
हम स्वाधीनता का पचासवाँ वर्ष पूरा कर चुके हैं- और आज के अधिकांश भारतवासी इसी अवधि में पैदा हुए हैं। हर साल हमारे देश की जनसंख्या लगभग दो करोड बढ़ जाती है।
उनके लिए हमारी परिकल्पना क्या हो ? कुछ व्यक्तियों की तरह क्या हम विकास की धारणा पर प्रश्नचिंह्न लगाकर उन लोगों को सदियों से चली आ रही उनकी गतिरुद्ध स्थिति में ही पड़ा रहने देना चाहेंगे, अथवा हम केवल समाज के उच्च वर्ग की ओर ही ध्यान देकर शेष सबको उनके भाग्य पर निर्भर करने को-‘बाज़ार-संचालित नीतियाँ’ तथा ‘प्रतियोगिता की क्षमता’ जैसे मधुर शब्दों का इस्तेमाल करते हुए-छोड़ देंगे ? अथवा विश्वीकरण की शक्तियों का सहारा लेकर अपने स्वयं के प्रयत्नों को तिलांजलि दे देंगे ? अगले दो दशकों में हम भारत (तथा उसकी जनता को) किस ओर जाते हुए देखना चाहते हैं ? इससे भी आगे के पाँच दशकों में, तथा उससे भी अगले वर्षों में हम देश को किस दिशा में ले जाना चाहेंगे ?
सौभाग्य से हम दोनों लेखक ऐसे अनेक व्यक्तियों के संपर्क में आए जो इन सवालों को उठा रहे थे और कुछ उत्तर भी तलाश रहे थे। ये प्रश्न बिल्कुल नई संस्था, दि टेक्नॉलॉजी इन्फ़ार्मेशन, फ़ोरकास्टिंग एण्ड एसेसमेंट कौंसिल (टाइफ़ैक) के माध्यम से, जिसने सन् 2020 तक भारत के लिए एक तकनीकी योजना निर्धारित करने का कार्यक्रम बनाया था, उठाए गए।
इस कार्यक्रम में उद्योग, शिक्षा, प्रयोगशालाओं तथा शासन-प्रबंधन के क्षेत्रों से लगभग 500 अनुभवी व्यक्ति सम्मिलित हुए। विशेषज्ञों तथा सामाजिक विकास से जुड़े अन्य अनेक व्यक्तियों ने इसमें भाग लिया। प्रश्नावलियों के उत्तर भेजकर तथा अन्य माध्यमों से लगभग 5000 और भी व्यक्तियों ने इसमें योगदान किया।
इस प्रक्रिया में अनेक टीमों ने विविध विषयों पर विचार किया, ड्राफ़्ट रिपोर्टों को देखा-परखा तथा 2 अगस्त, 1996 को तत्कालीन प्रधानमंत्री ने अन्तिम रिपोर्ट जारी की। इस प्रकार हमें अगणित व्यक्तियों से सम्पर्क करके भारत के लिए एक सुविचारित योजना प्रस्तुत करने का अवसर प्राप्त हुआ।
हमें प्राप्त योगदानों में अनेक ठोस सुझावों द्वारा हमारा उत्साहवर्धन करके तो अनेक का कहना यह ही था कि सुनिश्चित तथा दीर्घकालीन कार्यक्रमों और तंत्रों को कार्यरूप दिया जाना लगभग असम्भव था-जो बड़ी निराशा की बात थी। हम देश के अनेक भागों में जाकर वहाँ विविध वर्गों के लोगों से मिलकर भी इन विषयों पर बातचीत करते रहे। हमने इस पर भी विचार किया कि आज की परिवर्तनशील दुनिया में भारत की आवश्यकताएँ क्या कम हो सकती हैं ?
हमें देश के शासन प्रबंधन की स्थिति तथा सामाजिक और राजनीतिक विवशताओं का ज्ञान है। सौभाग्य से हमें समाज के विविध स्तरों पर जनहित के लिए चलाए जाने वाले कार्यों का अनुभव है, तथा दूसरी ओर व्यावसायिक दबावों के अधीन बनाई और चलाई जाने वाली योजनाओं और बड़े पैमाने पर उपग्रह छोड़ने, उन्हें आकाश में फेंकने वाले यंत्र निर्माण करने और मिसाइल बनाने जैसी योजनाओं का भी व्यापक अनुभव हुआ, वही सब इस पुस्तक की रचना का आधार हैं।
इन सभी तथ्यों को ध्यान में रखते हुए तथा भारत और अन्य देशों संबंधी अनेक विकास रिपोर्टों का अध्ययन करने के बाद भी हमारा निश्चित विश्वास है कि सन् 2020 में हमारा देश विकसित देशों की श्रेणी तक पहुँच सकने में पूर्ण समर्थ है। हम भारतवासी अपनी दरिद्रता की वर्तमान दशा से ऊपर उठकर अपनी शिक्षा, स्वास्थ्य तथा आत्मसम्मान की उन्नत हो रही स्थिति को आधार बनाकर देश की प्रगति में योगदान कर सकते हैं।
भारत अपनी सामाजिक क्षमताओं के विकास के लिए अनिवार्य विविध तकनीकी क्षमताएँ भी पर्याप्त मात्रा में प्राप्त कर सकता है।
इस पुस्तक में हमने इस विषय से संबंधित कुछ विचार प्रस्तुत किए हैं। हमने कुछ उन कार्य-योजनाओं के तत्त्व भी बताए हैं जो देश के अनेक युवकों का जीवनोद्देश्य बन सकते हैं। हमें आशा है कि जिस प्रकार तीन दशक पूर्व हमारे मन उन समय के अन्तरिक्ष कार्यक्रम से प्रज्वलित हो उठे थे, उसी प्रकार ये कार्यक्रम भी अनेक युवा मस्तिष्कों को प्रज्वलित करने में समर्थ होंगे। देश के लिए अपने स्वप्न और उससे निर्मित जीवन के अपने मिशन के कारण हम आज भी स्वयं को युवा ही महसूस करते हैं।
सन् 2020 तक, तथा उसके पूर्व भी, विकसित भारत की कल्पना स्वप्न मात्र नहीं है। यह कुछ गिने-चुने भारतीयों की प्रेरणा मात्र भी नहीं होना चाहिए-यह हम सब भारतीयों का मिशन होना चाहिए, जिसे हमें पूर्ण करना है।
हमारा विश्वास है कि प्रज्वलित युवा मस्तिष्क प्रबल संसाधन होते हैं। धरती के ऊपर, आकाश में तथा जल के नीचे छिपे किसी भी संसाधन से यह संसाधन कहीं अधिक शक्तिशाली है। हम सबको आज का ‘विकासशील’ भारत एक ‘विकसित’ भारत में रूपांतरित करने के उद्देश्य से एक-साथ मिलकर काम करना चाहिए, और इस महान उद्योग की पूर्ति के लिए आवश्यक क्रांति को हमारे मस्तिष्कों में जन्म लेना चाहिए। हमें विश्वास है कि यह पुस्तक अनेक मस्तिष्कों को जाग्रत करने में सफल होगी।
|
अन्य पुस्तकें
लोगों की राय
No reviews for this book