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जीवनी/आत्मकथा >> करिश्माई कलाम

करिश्माई कलाम

पी. एम. नायर

प्रकाशक : प्रभात प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2008
पृष्ठ :150
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 6801
आईएसबीएन :978-81-7315-621

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भारत के मिसाइल मैन के रूप में विश्वविख्यात डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम के जीवन पर आधारित पुस्तक

Karishmai Kalam - a hindi book by P M Nair

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम जुलाई 2002 में जब भारत के राष्ट्रपति बने तो एक राजनीतिज्ञ न होने के कारण आम लोगों में शंका थी कि क्या वे सफल राष्ट्रपति बन पाएँगे ? क्या वे विशाल भारत राष्ट्र के प्रथम नागरिक के पद के दायित्व का सफल निर्वहन कर पाएँगे ?

भारत के मिसाइल मैंने के रूप में विख्यात देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ से विभूषित डॉ. कलाम ने अपने राष्ट्रपतित्व काल में ऐसे तमाम कयासों पर पूर्णविराम लगा दिया। उन्होंने अपनी सौम्यता और संवेदनाशीलता से सब पर जादू सा कर दिया। एक उन्नत-समर्थ-विकसित भारत के निर्माण के लिए उन्होंने भारत की युवाशक्ति को प्रेरित किया और राष्ट्रकार्य में सकारात्मक योगदान देने के लिए उनका आह्वान किया, जिसने देश का वातावरण ही बदल दिया।

भले ही राष्ट्रपति के रूप में डॉ. कलाम का कार्यकाल समाप्त हो गया हो, उनके बारे में जानने की जिज्ञासा सबके मन में लगातार रहती है। डॉ. कलाम के इसी जादुई व्यक्तितत्व, सम्मोहन और करिश्मे को पाँच साल उनके सचिव रहे पी. एम. नायर ने प्रस्तुत किया है करिश्माई कलाम में।

आभार

मैं अपनी निजी सचिव, एन. वेंकटेशन के प्रति असीम आभार प्रकट करता हूँ जिन्होंने अपनी व्यस्ततम दिनचर्या में से समय निकालकर मेरी लगभग पूर्णतः अपठनीय हस्तलिपि को बिना किसी गलती के टाइप किया। मैं अपने निजी सहायक सौम्या  श्रीकांत को धन्यवाद देता हूँ, जिन्होंने इस कार्य में वेंकटेशन की सहायता की।

वरिष्ठ आई. पी. एस. अधिकारी आर. सुंदरराज के प्रति मैं यथोचित धन्यवाद प्रकट करने में स्वयं को असमर्थ पाता हूँ, जिन्होंने लक्षद्वीप और पांडिचेरी में मेरे साथ काम किया और इन पाँच वर्षों में विभिन्न अवसरों पर मुझे बहुमूल्य सलाह दी, साथ ही इस पुस्तक को लिखने की मुझे प्रेरणा भी दी।
मैं टी. एस. अशोक, उपनिदेशक (फोटो विभाग, राष्ट्रपति भवन) की अत्यधिक मदद और समर मंडल, फोटोग्राफर, जिन्होंने मुझे ये तसवीरें इस पुस्तक के लिए उपब्ध करवाईं, के प्रति हृदय से आभार प्रकट करता हूँ।

राष्ट्रपति के संयुक्त सचिव अशोक कुमार मंगोत्रा और संयुक्त सचिव (संवैधानिक मामले) बरुन मित्रा, जो मेरी टीम के वरिष्ठ सदस्य थे, ने मेरी हस्तलिपि के प्रत्येक शब्द को कठिनाइयों से पढ़ा और मुझे हर कदम पर अपना बहुमूल्य सुझाव दिया, उन दोनों के प्रति मैं अपना हार्दिक आभार व्यक्त करता हूँ।
पत्नी चंद्रलेखा, पुत्र राजेश और राकेश तथा पुत्रवधू पूनम और दिव्या ने मुझे इस पुस्तक के अपने यादगार अनुभवों को लिखने के लिए मेरे अंदर निरंतर ऊर्जा व उत्साह का संचार किया।

सबसे बढ़कर, मैं अंतः करण से डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम के प्रति कृतज्ञता प्रकट करता हूँ कि राष्ट्रपति बनने पर उन्होंने मुझे अपने सचिव के रूप में चुना, जिससे वर्ष 2002 से 2007 तक उनके साथ जुड़कर इन पाँच वर्षों में‘ विलक्षण’ कार्य करने का मुझे अवसर मिला।

लेखकीय

जब सन् 2002 से 2007 तक डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम भारत के राष्ट्रपति थे, तब मैं उनका सचिव था। ‘करिश्माई कलाम’ उन अतिविशिष्ट पाँच वर्षों का मेरा वृत्तांत है यह किसी भी प्रकार से डॉ. कलाम के वैज्ञानिक क्रियाकलापों का इतिवृत्त या उनकी जीवनी नहीं है। राष्ट्रपति के सचिव होने के नाते मैं इन पाँच वर्षों में उनके काफी करीब रहा, लेकिन मैंने कुछ वास्तविक दूरियों को हमेशा बनाए रखा। मैंने उनके असंख्य पहलुओं को देखा है। यह न ही उन्हें परिभाषित करने और न ही उनकी आराधना करने का प्रयास है, बल्कि यह केवल उस समय के कुछ बिंदुओं पर प्रकाश डालने का प्रयास है जो उस समय मैंने उनके साथ बिताए और उस समय जो अनुभव मैंने प्राप्त किए। मैंने इस बात का विशेष ध्यान रखा है कि इस अनुभव के वृत्तांत में कहीं भी जरा भी अतिशयोक्ति न हो। मैंने इस बात का भी ध्यान रखा है कि तथ्यों को वास्तविक रूप में प्रस्तुत करूँ। तथ्यों को दबाने या असत्य को महिमामंडित करने की कोशिश नहीं की है।

कलाम की अपनी ताकत और कमजोरियाँ हैं। वे आपकी और मेरी ही तरह एक आम इनसान हैं। उनके लिए मैं कह सकता हूँ कि बहुत अच्छे इनसान हैं। नेल्सन मंडेला के बारे में एक बार आर्क बिशप टुटु ने कहा था, ‘‘वे एक अच्छे इनसान थे और उन्होंने अच्छे कार्य किए।’’ यह कलाम के लिए भी उतना ही सच है।
और प्रिय पाठकों ! जैसा मैंने उन्हें देखा, आप भी इस पुस्तक के माध्यम से उन्हें देखें।

भूमिका

कोई भी व्यक्ति उसके सचिव के लिए नायक नहीं होता, लेकिन कभी ऐसा भी होता है कि सचिव अपने बॉस के प्रति इतना स्नेहासिक्त होता है कि वह उनकी स्तुति करने को विवश हो जाता है- जैसा कि सैमुअल जॉनसन न बॉसवेल के लिए किया था।

यह पुस्तक स्तूति- गान नहीं है, बल्कि यह पूर्व राष्ट्रपति डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम के साथ बिताए पी. एम. नायर के दिनों की दस्तावेजी प्रशंसा है, जिसे बिना किसी चाटुकारिता एवं खुशामद के स्पष्टवादिता, निश्छलता, निष्ठा और स्नेहयुक्त श्रद्धा के साथ वर्णित किया गया है। यह पुस्तक पढ़ना बेहद आसान है। यदि मुझे इस पुस्तक की विषयवस्तु को केवल दो शब्दों में कहने को कहा जाए तो मैं बिना झिझक कहूँगा-‘ अत्यधिक पठनीय’।

इस वृत्तांत में जहाँ मुग्ध कर देने वाले रंगीन चित्र भरे पड़े हैं, वहीं इसमें मटमैले छायांकन भी हैं। राष्ट्रपति कलाम राजनीतिज्ञ नहीं थे, लेकिन उन्हें राजनीति की समझ थी। उदाहरण के लिए जब अफजल खान की फाँसी होने या नहीं होने की समस्या सामने आई तब उन्होंने बिना अपने हाथ खोले ही अपने पत्ते फेंके।


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