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परमाणु गाथा

सुनील जोगी

प्रकाशक : डायमंड पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2008
पृष्ठ :160
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 6957
आईएसबीएन :978-81-288-1218

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परमाणु करार भारत के प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह व अमेरिकी राष्ट्रपति जार्ज बुश के संयुक्त प्रयत्नों का प्रतिफल है...

Parmanu Gatha - A Hindi Book - by Sunil Jogi

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

प्राक्कथन

भारत-अमेरिका असैन्य परमाणु करार विभिन्न अन्तरराष्ट्रीय मंचों पर गत तीन वर्षों से चर्चा का ज्वलंत विषय रहा है। अब आईएईए व एनएसजी की मंजूरी मिलने के बाद यह अमेरिकी कांग्रेस में प्रस्तुत होने के बाद सम्पन्न होने गया है।
परमाणु करार भारत के प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह व अमेरिकी राष्ट्रपति जार्ज बुश के संयुक्त प्रयत्नों का प्रतिफल है। इससे पिछले तीन दशकों से अधिक समय से विश्व-परमाणु बिरादरी में अलग-अलग पड़े भारत को अपनी पुनर्प्रतिष्ठा प्राप्त करने में मदद मिली है।

विषय सामयिक है, अतः हम इस पर यह पुस्तक पाठकों के समक्ष प्रस्तुत कर रहे हैं। पुस्तक में परमाणु करार से सम्बन्धित अद्यतन घटनाक्रम, भारत का परमाणु-इतिहास, करार के लाभ एवं हानियां तथा प्रतिष्ठित लोगों के परमाणु करार के विषय में विचारों को शामिल किया गया है। आशा है, सुधी पाठकों को पुस्तक पसंद आएगी।
प्रसिद्ध समाचारपत्र ‘दैनिक हिन्दुस्तान’ से हमने कुछ प्रसिद्ध व्यक्तियों के साक्षात्कार लिए हैं। एक साक्षात्कार सुश्री अदिति फणनीस का है। हम दोनों के प्रति अपना हार्दिक आभार व्यक्त करते हैं।

अध्याय एक

1. परमाणु का अर्थ, उसके भाग, परमाणु उर्जा, रेडियोधर्मी पदार्थ और रेडियोधर्मिता


पदार्थ (द्रव्य-Matter) के तीन भाग होते हैं-ठोस, द्रव और गैस। द्रव्य छोटे-छोटे कणों से मिलकर बना होता है, जिन्हें परमाणु (Atoms) कहा जाता है। ‘एटम’ शब्द ग्रीक भाषा के Atoms = Indivisible (अदृश्य) से बना है। सन् 1800 के प्रारम्भ में यह ‘थ्योरी’ (Theory) जॉन डॉल्टन नामक वैज्ञानिक ने प्रतिपादित की। डॉल्टन के अनुसार परमाणु कड़ा अदृश्य व अपरिवर्तनीय होता है। इस परमाणु की भी अपनी एक निजी संरचना होती है। परमाणु अपने से भी ज्यादा छोटे कणों से मिलकर बने होते हैं, जिन्हें इलेक्ट्रॉन (Electron), प्रोटॉन (Proton). और न्यूटॉन (Neutron), कहा जाता है।
पिछली शताब्दी में बहुत-से वैज्ञानिकों ने परमाणु की संरचना के विस्तार में अपना योगदान दिया है। इनमें से जे. जे. थामसन और रदरफोर्ड के नाम उल्लेखनीय हैं। थॉमसन ने इलेक्ट्रॉन की कोज की और प्रोटॉन के अस्तित्व को बताया। रदरफोर्ड ने-अल्फाकण की खोज की और बताया कि परमाणु में एक नाभिक (Nucleus) होता है। चैडविक ने परमाणु में एक अन्य कण न्यूट्रॉन की उपस्थिति का प्रदर्शन किया।

अब सभी वैज्ञानिकों द्वारा ऐसा विश्वास किया जाता है कि ‘एटम’ (Atom: परमाणु)  तीन प्रकार के कणों-इलेक्ट्रॉन, प्रोटॉन और न्यूट्रान से मिलकर बना होता है, जिन्हें परमाणु के उप-परमाणविक कण (Sub-atomic particles of an atom) कहते हैं।
रदरफोर्ड और मार्सडन नामक वैज्ञानिकों के नाम इसलिए उल्लेखनीय हैं, क्योंकि उन्होंने एटॉमिक मॉडल (Atomic Model  दिए, जिसे ‘रदरफोर्ड मॉडल’ के नाम से जाना जाता है।
इलेक्ट्रॉन पर ऋण आवेश होता है और प्रोटॉन धन आवेशित कण होते हैं, जबकि न्यूट्रॉन पर कोई आवेश नहीं होता। वे उदासीन होते हैं।

रदरफोर्ड और बोहर वैज्ञानिकों ने अपनी ‘थ्योरी’ में नाभिकीय संरचना (Atomic Structure) बताई। इसके अनुसार एक परमाणु एक धनावेशित नाभिक से बना होता है, जिसके चारों ओर ऋणावेशित इलेक्ट्रॉन पर्याप्त संख्या में होते हैं। इस तरह विद्युतीय उदासीनता (Electrical Neutrality) पैदा होती है। पर परमाणु की स्थिरता धनावेशित नाभिक और ऋणावेशित इलेक्ट्रॉन के इलेक्ट्रोस्टेटिक आकर्षण के कारण होती है।
परमाणु के नाभिक के कारण ही ‘न्यूक्लिअर कैमिस्ट्री’ का जन्म हुआ है। यह नाभिक की संरचना से संम्बद्घ है। नाभिकीय क्रिया, वह क्रिया है, जिसमें प्रोटॉन और न्यूटॉन के परिवर्तन द्वारा एक नाभिक दूसरे नाभिक में परिवर्तित हो जाता है। इस प्रकार एक नाभिकीय क्रिया दूसरी एक रासायनिक क्रिया से भिन्न होती है, जिसमें परमाणु के कक्षा में स्थित इलेक्ट्रॉन में परिवर्तन होता है, लेकिन नाभिक अपरिवर्तित रहता है।

हेनरी बैक्क्वेरल ने रेडियोधर्मिता (Radioactivity) की खोज के बाद इस रासायनिक शाखा की नींव सन् 1895 में डाली। इसमें नाभिक में संचित ऊर्जा को नाभिकीय ऊर्जा या परमाणु ऊर्जा (Atomic energy) कहा गया।
बैक्क्वेरल (Becqueral)  ने देखा कि यूरेनियम और इसके कम्पाउण्ड एक निश्चित प्रकार की अदृश्य किरणें छोड़ते हैं, जो एक फोटोग्राफिक प्लेट को अंधेरे में प्रभावित करती है। ये ठोस पदार्थों को भेद सकती हैं और गैसों को आयनीकृन कर सकती हैं। उन्होंने इन किरणों को रेडियो एक्टिव किरणें (Radioactive rays) कहकर पुकारा। वह पदार्थ, जो इन रेडियोएक्टिव किरणों को उत्सर्जित करता है, रेडियोएक्टिव कहलाता है और यह सारा फिनोमेना’ रेडियोएक्टिविटी (रेडियोधर्मिता) कहलाता है।

सन् 1898 में नोबेल पुरस्कार विजेता वैज्ञानिक मैडम क्यूरी और उनके पति पियरे क्यूरी ने पोलोनियम और रेडियम की खोज की, जिनमें से रेडियम को यूरेनियम से अधिक रेडियोएक्टिव पाया गया। उसी समय उन्होंने थोरियम और एक्टीनियम को भी रेडियोएक्टिव पाया। बाद में वर्षों में दूसरे रेडियोएक्टिव पदार्थों की खोज की गई। आज लगभग 40 रेडियोएक्टिव पदार्थ खोजे जा चुके हैं।
परमाणु बम में यूरेनियम नामक रेडियोएक्टिव पदार्थ का प्रयोग होता है। भारत ने प्लूटोनियम नामक रेडियोएक्टिव पदार्थ से भी बम बनाने में दक्षता हासिल की है। ये परमाणु बम नाभिकीय संलयन और नाभिकीय विखण्डन क्रियाओं द्वारा बनाए जा सकते हैं।

2. हमारी परमाणुनीति शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए है


इस समय भारत-अमेरिका असैन्य परमाणु करार की सर्वत्र चर्चा हो रही है। इस करार के लाभ और हानियां गिनाई जा रही है। परमाणु शक्ति की महत्ता के कारण समूचे विश्व में प्रत्येक देश की अपनी पृथक परमाणु नीति है। इस नीति द्वारा राष्ट्रविशेष अपने वैश्विक सम्बन्धों का निर्धारण व उसका समयानुसार आकलन करता है। जो राष्ट्र वर्तमान में परमाणु शक्ति सम्पन्न हैं, वे हैं-अमेरिका, रूस, ब्रिटेन, फ्रांस व चीन। ये राष्ट्र अपनी परमाणुशक्ति के बल पर दूसरे देशों पर, जो परमाणुशक्ति सम्पन्न नहीं हैं, अपने प्रभु्त्व का इस्तेमाल कर अपनी उचित-अनुचित माँगे उनसे मनवाते हैं और दूसरे राष्ट्रों को कमजोर होने की वजह से उनके निर्देशों को मानना पड़ता है। भारत ने सर्वप्रथम 1974 में पोखरण में परमाणु-विस्फोट किया, दूसरा परमाणु-विस्फोट 1998 में किया गया। दूसरे उत्तरी कोरिया, इजरायल भी अघोषित रूप से परमाणु शक्ति सम्पन्न राष्ट्र हैं। ईरान भी इस दिशा में लगातार आगे बढ़ रहा है। अमेरिका को ईरान फूटी आंखों नहीं सुहाता। वह चाहता है कि ईरान अपना यूरेनियम संवर्द्धन परमाणु कार्यक्रम बंद कर दे। इसके लिए वह प्रयासरत है।

भारत की परमाणु नीति विश्व में बिल्कुल पृथक और अलग किस्म की है। यह नीति हमारी विदेश नीति का एक अविभाज्य अंग है। पिछले चौंतीस वर्षों में अपनी इस नीति से हमने विश्व के राष्ट्रों के बीच अपनी विश्वसनीयता बनाई है। हमारी नीति पंचशील के सिद्धांतों से संचालित है। इसके अंतर्गत अब राजनीति, सांस्कृतिक, आर्थिक कूटनीतिक कारकों के अतिरिक्त अन्य महत्त्वपूर्ण कारकों का भी महत्त्वपूर्ण योगदान है।

परमाणुशक्ति सृजन और विध्वंस दोनों कर सकती है, जिसका प्राकट्य 1940 के दशक में हुआ था। विश्व-पटल पर इसका पदार्पण एक विस्मयकारी, आश्चर्यजनक, किंतु सत्य घटना थी। इसके विध्वसंक रूप को देखते हुए भारत ने 1948 से ही विभिन्न मंचों के माध्यम से इसके खिलाफ आवाज उठाई और इसका शांतिपूर्ण कार्यों के लिए उपयोग करने पर जोर दिया। भारत की आशंका तब सच साबित हुई, जब अमेरिका ने जापान के हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु बम गिराकर अपार जन-धन की हानि की।

परमाणुनीति बनाते समय कोई भी देश कुछ नीति-निर्धारक तत्त्वों का ध्यान रखता है, जिनसें परमाणुशक्ति के विकास, प्रबंधन, नियमन और इसके उपयोग/उपभोग प्रमुख हैं। भारत की परमाणुनीति हमारे स्थानीय परमाणु कार्यक्रम पर आधृत है। यह डायनैमिक (Dynamic) हैं और इसमें राष्ट्रीय-अन्तरराष्ट्रीय संयुक्त प्रयासों का प्रतिफलन है।
भारत हमेशा से भगवान बुद्ध के शांतिपूर्ण उपदेशों को आत्मसात् करके आगे बढ़ा है। वह चाहता है कि राष्ट्र के विकास के लिए इस शक्ति का शांतिपूर्ण उपयोग हो, न कि विश्व को आपसी दुश्मनी के कारण नष्ट करने में इसका उपभोग हो। वास्तव में विभिन्न राष्ट्रों की विध्वंसकमानसिकता के कारण आज दुनिया बारूद के ढेर पर बैठी है, जिसमें एक चिन्गारी लागकर इसे समूचा नष्ट किया जा सकता है। इसलिए भारत विकास के लिए गैर-सैन्य उद्देश्यों हेतु इसका उपयोग विद्युत-उत्पादन, कृषि, चिकित्सा और उद्योगों में करने का पक्षधर रहा है।

भारत में 1960 के दशक में तत्कालीन प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू और डॉ. होमी जहांगीर भाभा के संयुक्त प्रयास से परमाणुशक्ति प्राप्त करने की तकनीक का विकास हुआ। डॉ. होमी जहांगीर भाभा प्रसिद्ध विज्ञानी और भारत के परमाणुशक्ति जनक हैं। परमाणु ऊर्जा के उत्पादन एवं अन्य शांतिपूर्ण कार्यों के लिए परमाणुशक्ति तकनीक विकसित की गई। भारत 1960 से लेकर 2008 तक परमाणु शस्त्र बनाने की तकनीक व विद्युत-उत्पादन करने में आत्मनिर्भर हो गया है। भारत अब परमाणुऊर्जा उत्पादन और परमाणु ईधन-चक्र के संचालन में भी सक्षम हो गया है।
सन् 1960 में महाराष्ट्र के तारापुर में अमेरिका के मैत्रीपूर्ण सहयोग से एक परमाणु रिएक्टर की स्थापना की गई थी। अमरीका ही इसके लिए संवर्द्धित यूरेनियम की आपूर्ति करता था, लेकिन तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा 1974 में परमाणु-विस्फोट किए जाने पर उसने रूष्ट होकर यूरेनियम देने पर प्रतिबंध लगा दिया। इसके बाद हमारे सहयोग को फ्रांस आगे आया। उसने 1982 में हमें संवर्द्धित यूरेनियम देने की हामी भरी, इससे हमारे दम तोड़ते परमाणु–कार्यक्रम को संजीवनी मिली। बार-बार दूसरे देशों मुखापेक्षी सोने के बजाय इंदिरा गांधी ने भारत को इस दिशा में आत्मनिर्भर बनाने का दृढ़ संकल्प व्यक्त किया।


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