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लेख-निबंध >> औरत का कोई देश नहीं

औरत का कोई देश नहीं

तसलीमा नसरीन

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2008
पृष्ठ :236
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 7014
आईएसबीएन :9788181439857

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औरत का कोई देश नहीं होता। देश का अर्थ अगर सुरक्षा है, देश का अर्थ अगर आज़ादी है तो निश्चित रूप से औरत का कोई देश नहीं होता।...


अधिकांश लोग जिस कलकत्ता को विराट प्रगतिशील शहर और भारत की सांस्कृतिक राजधानी मानते हैं, उसी कलकत्ता शहर में, अभी हाल के दिनों में ही मारे शर्म के मुँह छिपाये एक समकामी औरत ने मुझे बताया कि उसने किसी मर्द से विवाह नहीं किया। उसके माँ-बाप क्षुब्ध हैं। उस औरत को औरत ही पसन्द है। उस औरत को ले कर, जब वह अपने घर जाती है, तो लोग-बाग़ उस पर व्यंग्य-ताने कसते हैं। मुहल्ले में थू-थू पड़ गयी है। कहते हैं, वह 'बुरी' औरत है। वह अपनी प्रेमिका के साथ इकट्ठे रहना चाहती है। लेकिन इस कलकत्ता शहर में यह सम्भव नहीं है-यह बताते-बताते वह रो पड़ी।

मैंने उसे तसल्ली दी, 'लोग जो कहते हैं, कहने दो। तुम्हें जो अच्छा लगे, तुम वही करो।' मैंने उसे तसल्ली तो दी, लेकिन सच तो यह है कि वह इस कलकत्ता शहर में टिकेगी कैसे? उसे तो कोई जीने नहीं देगा। समकामी होने के गुनाह पर आजकल तो इन्सानों की नौकरी भी चली जाती है। वह लड़की नौकरी जाने के डर से, मुहल्ले से खदेड़े जाने के डर से घबरायी रहती है। मुझे इस लड़की के लिए बेहद तकलीफ़ हुई। उसके दुर्भाग्य पर अफसोस हुआ। हाँ मुझे उस सड़े-गले, पुराने पुरुषतान्त्रिक रिवाज़ में फँसे पड़े रक्षणशील होमोफोबिक लोगों पर अफ़सोस होता है, उन लोगों की बुद्धिहीनता पर अफ़सोस होता है।

जहाँ लड़की हो कर जन्म लेना ही एक गुनाह है, वहाँ समकामी होना ठीक क्या है, यह समझने की क्षमता अधिकांश लोगों में नहीं है। समकामिता के खिलाफ़ क़ानून बना है, पकड़े जाने पर दस वर्ष कारादंड! जी हाँ, इस गणतंत्र के देश में, यही सज़ा है। वाकई यह अविश्वसनीय है। इस गणतन्त्र देश में मत-प्रकाश की आज़ादी और मानवाधिकार उल्लंघन कितने आराम से किया जाता है। कितने लोग इसका प्रतिवाद करते हैं?

सरकारी हिसाब के मुताबिक, प्रति घण्टे एक लड़की बलात्कार का शिकार होती है। प्रति छह घंटे में एक लड़की को दहेज न लाने के अपराध में जला कर मार दिया जाता है और नाजायज़ गर्भपात में अस्सी प्रतिशत शिशु लड़की होती हैं। जी हाँ, औरत को बलात्कार का शिकार होने, निर्यातित होने, मर जाने का अधिकार है लेकिन किसी लड़की को प्यार करने का अधिकार नहीं है। प्यार करना होगा मर्द को, प्यार देना होगा मर्द को, मर्द को ही अपनी ज़िन्दगी उत्सर्ग करना होगी, वर्ना इस पुरुषतन्त्र में तुम्हें तिल मात्र भी जगह नहीं मिलेगी।

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    अनुक्रम

  1. इतनी-सी बात मेरी !
  2. पुरुष के लिए जो ‘अधिकार’ नारी के लिए ‘दायित्व’
  3. बंगाली पुरुष
  4. नारी शरीर
  5. सुन्दरी
  6. मैं कान लगाये रहती हूँ
  7. मेरा गर्व, मैं स्वेच्छाचारी
  8. बंगाली नारी : कल और आज
  9. मेरे प्रेमी
  10. अब दबे-ढँके कुछ भी नहीं...
  11. असभ्यता
  12. मंगल कामना
  13. लम्बे अरसे बाद अच्छा क़ानून
  14. महाश्वेता, मेधा, ममता : महाजगत की महामानवी
  15. असम्भव तेज और दृढ़ता
  16. औरत ग़ुस्सा हों, नाराज़ हों
  17. एक पुरुष से और एक पुरुष, नारी समस्या का यही है समाधान
  18. दिमाग में प्रॉब्लम न हो, तो हर औरत नारीवादी हो जाये
  19. आख़िरकार हार जाना पड़ा
  20. औरत को नोच-खसोट कर मर्द जताते हैं ‘प्यार’
  21. सोनार बांग्ला की सेना औरतों के दुर्दिन
  22. लड़कियाँ लड़का बन जायें... कहीं कोई लड़की न रहे...
  23. तलाक़ न होने की वजह से ही व्यभिचार...
  24. औरत अपने अत्याचारी-व्याभिचारी पति को तलाक क्यों नहीं दे देती?
  25. औरत और कब तक पुरुष जात को गोद-काँख में ले कर अमानुष बनायेगी?
  26. पुरुष क्या ज़रा भी औरत के प्यार लायक़ है?
  27. समकामी लोगों की आड़ में छिपा कर प्रगतिशील होना असम्भव
  28. मेरी माँ-बहनों की पीड़ा में रँगी इक्कीस फ़रवरी
  29. सनेरा जैसी औरत चाहिए, है कहीं?
  30. ३६५ दिन में ३६४ दिन पुरुष-दिवस और एक दिन नारी-दिवस
  31. रोज़मर्रा की छुट-पुट बातें
  32. औरत = शरीर
  33. भारतवर्ष में बच रहेंगे सिर्फ़ पुरुष
  34. कट्टरपन्थियों का कोई क़सूर नहीं
  35. जनता की सुरक्षा का इन्तज़ाम हो, तभी नारी सुरक्षित रहेगी...
  36. औरत अपना अपमान कहीं क़बूल न कर ले...
  37. औरत क़ब बनेगी ख़ुद अपना परिचय?
  38. दोषी कौन? पुरुष या पुरुष-तन्त्र?
  39. वधू-निर्यातन क़ानून के प्रयोग में औरत क्यों है दुविधाग्रस्त?
  40. काश, इसके पीछे राजनीति न होती
  41. आत्मघाती नारी
  42. पुरुष की पत्नी या प्रेमिका होने के अलावा औरत की कोई भूमिका नहीं है
  43. इन्सान अब इन्सान नहीं रहा...
  44. नाम में बहुत कुछ आता-जाता है
  45. लिंग-निरपेक्ष बांग्ला भाषा की ज़रूरत
  46. शांखा-सिन्दूर कथा
  47. धार्मिक कट्टरवाद रहे और नारी अधिकार भी रहे—यह सम्भव नहीं

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