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लेख-निबंध >> औरत का कोई देश नहीं

औरत का कोई देश नहीं

तसलीमा नसरीन

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2008
पृष्ठ :236
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 7014
आईएसबीएन :9788181439857

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औरत का कोई देश नहीं होता। देश का अर्थ अगर सुरक्षा है, देश का अर्थ अगर आज़ादी है तो निश्चित रूप से औरत का कोई देश नहीं होता।...


यह 'लेस्बियन' शब्द भी मिस्र के 'लेस्बो' नामक एक द्वीप से आया है जिस द्वीप में ईसा के भी जन्म से साढ़े तीन सौ वर्ष पहले, सैफो नामक एक कवयित्री का जन्म हुआ था। जो कवयित्री खुद औरत थी और किसी दूसरी औरत से प्यार करती थी और उसके प्रति अपने सेक्स-आकर्षण की बात भी क़बूल की थी। बांग्ला में भी हम सब 'लेस्बियन' को समकामी कहते हैं। यह शब्द सुन्दर है लेकिन इस शब्द में सिर्फ 'काम' का उल्लेख है, प्यार का नहीं! लेकिन समकामी जोड़ी एक-दूसरे से प्यार करती है। उन लोगों के रिश्ते को 'काम' टिकाये नहीं रखता, प्रेम टिकाये रखता है। मैंने बहुत बार गौर किया है, समकामी लोग प्यार की जितनी कद्र करते हैं, असमकामी उतना नहीं करते।

टेनिस खिलाड़ी मार्टिना नावातिलोवा की भूतपूर्व प्रेमिका, अमेरिकी लेखिका, रीता में ब्राउन ने समकामी के प्रसंग में कहा है कि जो लड़की किसी लड़की को प्यार करती है, वह लेस्बियन होती है। चूंकि मर्द, औरतों को सेक्स-सामग्री मानता है, वे लोग लेस्बियन की संज्ञा बिलकुल अलग ढंग से देते हैं। उन लोगों की राय मुताबिक, लेस्बियन का मतलब है, दो औरतों के बीच सेक्स-सम्पर्क होना। उन्होंने यह भी कहा 6-No Government has the right to tell its citizens, when or whom to love. The only queer people are those, who don't love anybody.
जिस तरह सरकार को यह अधिकार नहीं होना चाहिए कि वह जनता के प्रेमी जीवन में टाँग अड़ाये, उसी तरह हमारा भी यह दायित्व है कि जनता के अधिकार के लिए जंग करें। हम लोग, जो मानवाधिकार में विश्वास करते हैं, हम असमकामी और समकामी, सभी लोगों के लिए इस गणतान्त्रिक देश में, समानाधिकार के आधार पर, कोई सभ्य क़ानून प्रणयन करने के लिए आन्दोलन क्यों नहीं कर रहे हैं? हम सब और कितने अर्से तक घणा, हिंसा, यद्ध, रक्तपात में विश्वास करेंगे? और कितने दिनों हम प्यार में विश्वास करने से इनकार करेंगे? कितने अर्से तक प्रेम को धिक्कार भेजते रहेंगे? चुम्बन को सेन्सर करेंगे? कितने युगों तक हम सब सभ्यता के नाम पर असभ्यता का प्रदर्शन करते रहेंगे?



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    अनुक्रम

  1. इतनी-सी बात मेरी !
  2. पुरुष के लिए जो ‘अधिकार’ नारी के लिए ‘दायित्व’
  3. बंगाली पुरुष
  4. नारी शरीर
  5. सुन्दरी
  6. मैं कान लगाये रहती हूँ
  7. मेरा गर्व, मैं स्वेच्छाचारी
  8. बंगाली नारी : कल और आज
  9. मेरे प्रेमी
  10. अब दबे-ढँके कुछ भी नहीं...
  11. असभ्यता
  12. मंगल कामना
  13. लम्बे अरसे बाद अच्छा क़ानून
  14. महाश्वेता, मेधा, ममता : महाजगत की महामानवी
  15. असम्भव तेज और दृढ़ता
  16. औरत ग़ुस्सा हों, नाराज़ हों
  17. एक पुरुष से और एक पुरुष, नारी समस्या का यही है समाधान
  18. दिमाग में प्रॉब्लम न हो, तो हर औरत नारीवादी हो जाये
  19. आख़िरकार हार जाना पड़ा
  20. औरत को नोच-खसोट कर मर्द जताते हैं ‘प्यार’
  21. सोनार बांग्ला की सेना औरतों के दुर्दिन
  22. लड़कियाँ लड़का बन जायें... कहीं कोई लड़की न रहे...
  23. तलाक़ न होने की वजह से ही व्यभिचार...
  24. औरत अपने अत्याचारी-व्याभिचारी पति को तलाक क्यों नहीं दे देती?
  25. औरत और कब तक पुरुष जात को गोद-काँख में ले कर अमानुष बनायेगी?
  26. पुरुष क्या ज़रा भी औरत के प्यार लायक़ है?
  27. समकामी लोगों की आड़ में छिपा कर प्रगतिशील होना असम्भव
  28. मेरी माँ-बहनों की पीड़ा में रँगी इक्कीस फ़रवरी
  29. सनेरा जैसी औरत चाहिए, है कहीं?
  30. ३६५ दिन में ३६४ दिन पुरुष-दिवस और एक दिन नारी-दिवस
  31. रोज़मर्रा की छुट-पुट बातें
  32. औरत = शरीर
  33. भारतवर्ष में बच रहेंगे सिर्फ़ पुरुष
  34. कट्टरपन्थियों का कोई क़सूर नहीं
  35. जनता की सुरक्षा का इन्तज़ाम हो, तभी नारी सुरक्षित रहेगी...
  36. औरत अपना अपमान कहीं क़बूल न कर ले...
  37. औरत क़ब बनेगी ख़ुद अपना परिचय?
  38. दोषी कौन? पुरुष या पुरुष-तन्त्र?
  39. वधू-निर्यातन क़ानून के प्रयोग में औरत क्यों है दुविधाग्रस्त?
  40. काश, इसके पीछे राजनीति न होती
  41. आत्मघाती नारी
  42. पुरुष की पत्नी या प्रेमिका होने के अलावा औरत की कोई भूमिका नहीं है
  43. इन्सान अब इन्सान नहीं रहा...
  44. नाम में बहुत कुछ आता-जाता है
  45. लिंग-निरपेक्ष बांग्ला भाषा की ज़रूरत
  46. शांखा-सिन्दूर कथा
  47. धार्मिक कट्टरवाद रहे और नारी अधिकार भी रहे—यह सम्भव नहीं

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