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लेख-निबंध >> औरत का कोई देश नहीं

औरत का कोई देश नहीं

तसलीमा नसरीन

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2008
पृष्ठ :236
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 7014
आईएसबीएन :9788181439857

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औरत का कोई देश नहीं होता। देश का अर्थ अगर सुरक्षा है, देश का अर्थ अगर आज़ादी है तो निश्चित रूप से औरत का कोई देश नहीं होता।...


4. टेलीविजन में चन्द धारावाहिक नाटकों के दो एक पर्व मैंने देखे हैं। मैं अचम्भे से देखती हूँ, नाटक की महिला पात्र जब घर में होती हैं, घर के कामकाज कर रही होती हैं, नींद से जागती हैं या सोने जाती हैं, उनके चेहरे पर शोख मेकअप होता है। वे अत्यन्त सजी-धजी होती हैं। मैंने टेलीविजन के ही चन्द निर्देशकों से पूछा, 'उनके नाटक वास्तविकता से मेल क्यों नहीं खाते? औरतें क्या घर में इस तरह सजी-धजी बैठी रहती हैं?' निर्देशकों ने जवाब दिया, 'और कोई उपाय नहीं है। औरतें अगर उस तरह सजी-धजी न हों तो टी आर पी घट जाती है। औरतों का रंग-रोगनहीन चेहरा देखना दर्शक पसन्द नहीं करते।'

'इसलिए क्या सोते जाते समय भी औरतों को लिपस्टिक, रूज, आइशैडो, आइलाइनर, माथे पर बड़ी-सी बिन्दी लगाना होगी? बदन पर ढेरों गहने लादे रहना होगा?'

'जी-हाँ।'

'वैसे पुरुषों के लिए तो ज़रूर ऐसा कोई नियम नहीं है?'

उन्होंने सिर हिला कर इनकार जताया।

औरतें जैसी होती हैं, उससे काम क्यों नहीं चलता?

औरतों को अतिरिक्त रंग-रोगन, अतिरिक्त ढंग की ज़रूरत क्यों पड़ती है? फैशन-पत्रिकाओं, फैशन शो या विज्ञापनों में प्रदर्शित फिगर अख्तियार करने के लिए, औरतों को अपनी देह पर जगह-जगह से मोटापा क्यों छाँटना पड़ता है? ये तमाम सवाल क्या कभी किसी ने किये हैं? शारीरिक सौन्दर्य के अलावा भी पुरुषों ने सौन्दर्य की जो संज्ञा तैयार की है, उसके मुताबिक औरतों को नितान्त मूल्यहीन और आकर्षणहीन समझा जाता है। इसलिए सौन्दर्य की हिफाजत के लिए औरतें तरह-तरह के कायदे-कानून सीखने को लाचार हैं। इस पुरुष-शासित समाज में पुरुष अपना व्यक्तित्व, अपनी खूबियाँ जटिल से जटिलतर विषय पर अपना ज्ञान, अपनी दक्षता पारदर्शिता वगैरह प्रदर्शित कर सकते हैं। उधर शरीर के अलावा औरत के पास प्रदर्शन करने के लिए कुछ नहीं होता। एक शरीर की वजह से औरत का सब कुछ तुच्छ हो जाता है। चूँकि जो सब तथ्य औरत के गुण माने जाने लगे हैं, वह इसलिए कि वह सब पुरुष के काम आते हैं और ये औरत को दबाये रखते हैं। मसलन रसोई-पानी, घर-गृहस्थी, सिलाई-पुराई, सेवा, संवेदना, अतिशय परनिर्भरशीलता, विनीत-नम्र स्वभाव, लज्जा, भय वगैरह।

औरत के लिए औरत के जीवन में कुछ भी नहीं है। औरत अगर किसी कम्पनी के ऊँचे पद पर काम करती है; अगर वह संचालक है, मालिक नहीं; औरत अगर कारोबार में काफी सफलता अर्जित करे; औरत अगर कोई बड़ी डॉक्टर, इंजीनियर, वैज्ञानिक हो, एयरहोस्टेस हो, बड़ी लेखिका हो, कलाकार हो, बड़ी राजनीतिज्ञ हो, अर्थ-विशेषज्ञ. समाज-विशेषज्ञ हो. तभी वह समाज में सभी लोगों की श्रद्धा अर्जित करने में समर्थ हो पाती है। सच तो यह है कि शरीर के अंगों का प्रदर्शन किये बिना या फूहड़ बर्ताव किये बिना औरत जो सफलता अर्जित करती है, वही सच्ची सफलता होती है। लेकिन सफलता को औरत का गुण ही नहीं माना जाता। पद पुरुष-प्रधान है, मैस्कुलिन है। ऊँचे पद, ऊँचे स्तर कभी भी औरत के लिए नहीं होते, इसलिए इन्सान की अनन्त श्रद्धा उन पदों के प्रति होती है, मैस्कुलिन पदों के प्रति श्रद्धा अर्पित करते हैं। इन श्रेष्ठ पदों पर चाहे जो भी बैठे, उसके प्रति श्रद्धा तो रहती ही है। अगर उस पद पर औरत विराजमान है तो उसके प्रति भी! लेकिन यह इन्सान के तौर पर औरत के प्रति श्रद्धा नहीं होती, यह तो उच्च पदों के प्रति श्रद्धा होती है उस सफलता को श्रद्धा अर्पित करना है, जिसकी उच्चता या सफलता का समर्थक शब्द है-पौरुष।

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    अनुक्रम

  1. इतनी-सी बात मेरी !
  2. पुरुष के लिए जो ‘अधिकार’ नारी के लिए ‘दायित्व’
  3. बंगाली पुरुष
  4. नारी शरीर
  5. सुन्दरी
  6. मैं कान लगाये रहती हूँ
  7. मेरा गर्व, मैं स्वेच्छाचारी
  8. बंगाली नारी : कल और आज
  9. मेरे प्रेमी
  10. अब दबे-ढँके कुछ भी नहीं...
  11. असभ्यता
  12. मंगल कामना
  13. लम्बे अरसे बाद अच्छा क़ानून
  14. महाश्वेता, मेधा, ममता : महाजगत की महामानवी
  15. असम्भव तेज और दृढ़ता
  16. औरत ग़ुस्सा हों, नाराज़ हों
  17. एक पुरुष से और एक पुरुष, नारी समस्या का यही है समाधान
  18. दिमाग में प्रॉब्लम न हो, तो हर औरत नारीवादी हो जाये
  19. आख़िरकार हार जाना पड़ा
  20. औरत को नोच-खसोट कर मर्द जताते हैं ‘प्यार’
  21. सोनार बांग्ला की सेना औरतों के दुर्दिन
  22. लड़कियाँ लड़का बन जायें... कहीं कोई लड़की न रहे...
  23. तलाक़ न होने की वजह से ही व्यभिचार...
  24. औरत अपने अत्याचारी-व्याभिचारी पति को तलाक क्यों नहीं दे देती?
  25. औरत और कब तक पुरुष जात को गोद-काँख में ले कर अमानुष बनायेगी?
  26. पुरुष क्या ज़रा भी औरत के प्यार लायक़ है?
  27. समकामी लोगों की आड़ में छिपा कर प्रगतिशील होना असम्भव
  28. मेरी माँ-बहनों की पीड़ा में रँगी इक्कीस फ़रवरी
  29. सनेरा जैसी औरत चाहिए, है कहीं?
  30. ३६५ दिन में ३६४ दिन पुरुष-दिवस और एक दिन नारी-दिवस
  31. रोज़मर्रा की छुट-पुट बातें
  32. औरत = शरीर
  33. भारतवर्ष में बच रहेंगे सिर्फ़ पुरुष
  34. कट्टरपन्थियों का कोई क़सूर नहीं
  35. जनता की सुरक्षा का इन्तज़ाम हो, तभी नारी सुरक्षित रहेगी...
  36. औरत अपना अपमान कहीं क़बूल न कर ले...
  37. औरत क़ब बनेगी ख़ुद अपना परिचय?
  38. दोषी कौन? पुरुष या पुरुष-तन्त्र?
  39. वधू-निर्यातन क़ानून के प्रयोग में औरत क्यों है दुविधाग्रस्त?
  40. काश, इसके पीछे राजनीति न होती
  41. आत्मघाती नारी
  42. पुरुष की पत्नी या प्रेमिका होने के अलावा औरत की कोई भूमिका नहीं है
  43. इन्सान अब इन्सान नहीं रहा...
  44. नाम में बहुत कुछ आता-जाता है
  45. लिंग-निरपेक्ष बांग्ला भाषा की ज़रूरत
  46. शांखा-सिन्दूर कथा
  47. धार्मिक कट्टरवाद रहे और नारी अधिकार भी रहे—यह सम्भव नहीं

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