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लेख-निबंध >> औरत का कोई देश नहीं

औरत का कोई देश नहीं

तसलीमा नसरीन

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2008
पृष्ठ :236
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 7014
आईएसबीएन :9788181439857

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औरत का कोई देश नहीं होता। देश का अर्थ अगर सुरक्षा है, देश का अर्थ अगर आज़ादी है तो निश्चित रूप से औरत का कोई देश नहीं होता।...


औरत-मर्द, दोनों ही इस पद पर आसीन हो सकते हैं। राष्ट्रपति निहायत ही एक पद का नाम है।' जो लोग ऐसी बातें करते हैं, उनसे मुझे और भी ज़ोरदार शब्दों में कहना है, वाकई यह एक पद का नाम है, लेकिन किसी पुरुष के पद का नाम है। इस पद पर औरत आसीन हो सकती है, ज़रूर हो सकती है लेकिन इसके बावजूद यह पुरुष-पद ही है। यह बात, इतिहास, भाषाविज्ञान, पुरुषतन्त्र-सभी बेझिझक यही कहेंगे।

लिंग-निरपेक्ष शब्द के लिए आन्दोलन अन्य भाषा-भाषी देशों में भी हुआ है। 'फायरमैन' को अब ‘फायर-फाइटर' कहा जाता है। बारमैन को बर्टेन्डर! स्टुआर्ड या स्टुआर्डस को फ्लाइट ऐटेण्डेण्ट! मेलमैन को मेलकैरियर, चेयरमैन को चेयर परसन या चेयर! ही (He) और शी (She) की जगह शिक्षा-प्रतिष्ठानों में, आजकल सिंगुलर दे (They) इस्तेमाल करने का प्रचलन शुरू हो गया है। यूरोप, अमेरिका में बहुत से शिक्षा-प्रतिष्ठानों में, यहाँ तक कि प्रचुर व्यावसायिक प्रतिष्ठानों में लिंग वैषम्यवाले चिह्न का कोई शब्द, किसी भी शर्त पर इस्तेमाल नहीं किया जायेगा-यह निर्देश भी जारी कर दिया गया है। यह स्तुत्य प्रयास है। जो लोग इस प्रयास में विश्वास नहीं करते, वे लोग मानवाधिकार, आधुनिकता में और विवर्तन में विश्वास नहीं करते।


लिंग-वैषम्य व्यक्त हो, ऐसे शब्दों के इस्तेमाल पर एतराज करने पर विरोधी दल एकदम से टट पडेगा. इन सब कॉस्मेटिक परिवर्तन से परुषतन्त्र में कोई सच्चा परिवर्तन नहीं होने वाला। वे लोग यह भी कहेंगे, 'अकारण ही भाषा पर अत्याचार किया जा रहा है।' इसके अलावा यह भी कहेंगे, 'देश में इससे बढ़कर और भी अहम समस्याएँ हैं। उन सबके समाधान की कोशिश की जानी चाहिए।

किसी भी संस्कार या संशोधन में, खासकर अगर वह औरत के पक्ष में हो तो उसमें रोड़ा अटकाने वाले लोगों की कभी कमी नहीं हुई। लेकिन जो लोग मानवाधिकार में विश्वास करते हैं, वे लोग जानते हैं कि इसकी हर क्षेत्र में रक्षा करनी चाहिए, यहाँ तक कि जुबान की भाषा में भी! तुच्छ से तुच्छ शब्द का भी अनन्त मूल्य होता है। और राष्ट्रपति? वह शब्द तो महामूल्यवान है।

औरत के सन्दर्भ में इस पद का नाम 'राष्ट्रनेत्री' या इसी किस्म का कुछ हो सकता है। लिंग-निरपेक्ष बनाने के लिए 'राष्ट्र-प्रधान' शब्द खूबसूरत है। वैसे कौन-सा शब्द इस्तेमाल करना चाहिए, यह पारिभाषिक वृंद और भाषाविद् लोग और गहराई से सोच-समझकर बतायें। मैं सिर्फ इतना ही कहना चाहती हूँ कि राष्ट्रपति की जगह, कोई लिंग-निर्दिष्ट (gender-specific) या लिंग-निरपेक्ष (gender-neutral) शब्द अतिशय ज़रूरी है।

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    अनुक्रम

  1. इतनी-सी बात मेरी !
  2. पुरुष के लिए जो ‘अधिकार’ नारी के लिए ‘दायित्व’
  3. बंगाली पुरुष
  4. नारी शरीर
  5. सुन्दरी
  6. मैं कान लगाये रहती हूँ
  7. मेरा गर्व, मैं स्वेच्छाचारी
  8. बंगाली नारी : कल और आज
  9. मेरे प्रेमी
  10. अब दबे-ढँके कुछ भी नहीं...
  11. असभ्यता
  12. मंगल कामना
  13. लम्बे अरसे बाद अच्छा क़ानून
  14. महाश्वेता, मेधा, ममता : महाजगत की महामानवी
  15. असम्भव तेज और दृढ़ता
  16. औरत ग़ुस्सा हों, नाराज़ हों
  17. एक पुरुष से और एक पुरुष, नारी समस्या का यही है समाधान
  18. दिमाग में प्रॉब्लम न हो, तो हर औरत नारीवादी हो जाये
  19. आख़िरकार हार जाना पड़ा
  20. औरत को नोच-खसोट कर मर्द जताते हैं ‘प्यार’
  21. सोनार बांग्ला की सेना औरतों के दुर्दिन
  22. लड़कियाँ लड़का बन जायें... कहीं कोई लड़की न रहे...
  23. तलाक़ न होने की वजह से ही व्यभिचार...
  24. औरत अपने अत्याचारी-व्याभिचारी पति को तलाक क्यों नहीं दे देती?
  25. औरत और कब तक पुरुष जात को गोद-काँख में ले कर अमानुष बनायेगी?
  26. पुरुष क्या ज़रा भी औरत के प्यार लायक़ है?
  27. समकामी लोगों की आड़ में छिपा कर प्रगतिशील होना असम्भव
  28. मेरी माँ-बहनों की पीड़ा में रँगी इक्कीस फ़रवरी
  29. सनेरा जैसी औरत चाहिए, है कहीं?
  30. ३६५ दिन में ३६४ दिन पुरुष-दिवस और एक दिन नारी-दिवस
  31. रोज़मर्रा की छुट-पुट बातें
  32. औरत = शरीर
  33. भारतवर्ष में बच रहेंगे सिर्फ़ पुरुष
  34. कट्टरपन्थियों का कोई क़सूर नहीं
  35. जनता की सुरक्षा का इन्तज़ाम हो, तभी नारी सुरक्षित रहेगी...
  36. औरत अपना अपमान कहीं क़बूल न कर ले...
  37. औरत क़ब बनेगी ख़ुद अपना परिचय?
  38. दोषी कौन? पुरुष या पुरुष-तन्त्र?
  39. वधू-निर्यातन क़ानून के प्रयोग में औरत क्यों है दुविधाग्रस्त?
  40. काश, इसके पीछे राजनीति न होती
  41. आत्मघाती नारी
  42. पुरुष की पत्नी या प्रेमिका होने के अलावा औरत की कोई भूमिका नहीं है
  43. इन्सान अब इन्सान नहीं रहा...
  44. नाम में बहुत कुछ आता-जाता है
  45. लिंग-निरपेक्ष बांग्ला भाषा की ज़रूरत
  46. शांखा-सिन्दूर कथा
  47. धार्मिक कट्टरवाद रहे और नारी अधिकार भी रहे—यह सम्भव नहीं

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