उपासना एवं आरती >> 1281 श्री दुर्गा सप्तशती (विशिष्ट संस्करण) 1281 श्री दुर्गा सप्तशती (विशिष्ट संस्करण)श्रीरामनारायण दत्त (अनुवादक)
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दुर्गा सप्तशती संस्कृत तथा हिन्दी अनुवाद...
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
।। ॐ नमश्चण्डिकायै।।
प्रथम संस्करणका निवेदन
देवि प्रपन्नार्तिहरे प्रसीद प्रसीद मातर्जगतोऽखिलस्य।
प्रसीद विश्वेश्वरि पाहि विश्वं त्वमीश्वरी देवि चराचरस्य।।
दुर्गासप्तशती हिंदू-धर्म का सर्वमान्य ग्रन्थ है। इसमें भगवती की कृपा के सुन्दर इतिहास के साथ ही बड़े-बड़े गूढ़ साधन-रहस्य भरे हैं। कर्म, भक्ति और ज्ञान की त्रिविध मन्दाकिनी बहानेवाला यह ग्रन्थ भक्तों के लिये वांछाकल्पतरु है। सकाम भक्त इसके सेवन से मनोऽभिलषित दुर्लभतम वस्तु या स्थिति सहज ही प्राप्त करते हैं और निष्काम भक्त परम दुर्लभ मोक्षको पाकर कृतार्थ होते हैं। राजा सुरथ से महर्षि मेधा ने कहा था-‘तामुपैहि महाराज शरणं परमेश्वरीम्। आराधिता सैव नृणां भोगस्वर्गापवर्गदा।। महाराज ! आप उन्हीं भगवती परमेश्वरी की शरण ग्रहण कीजिये। वे आराधना से प्रसन्न होकर मनुष्यों को भोग, स्वर्ग और अपुनरावर्ती मोक्ष प्रदान करती हैं।’ इसी के अनुसार आराधना करके ऐश्वर्यकामी राजा सुरथ ने अखण्ड साम्राज्य प्राप्त किया तथा वैराग्यवान् समाधि वैश्य ने दुर्लभ ज्ञान के द्वारा मोक्ष की प्राप्ति की। अब तक इस आशीर्वाद रूप मन्त्रमय ग्रन्थ के आश्रय से न मालूम कितने आर्त, अर्थार्थी, जिज्ञासु तथा प्रेमी भक्त अपना मनोरथ सफल कर चुके हैं। हर्ष की बात है कि जगज्जननी भगवती श्रीदुर्गाजी की कृपा से वही सप्तशती संक्षिप्त पाठ-विधिसहित पाठकों के समक्ष पुस्तक रूप में उपस्थित की जा रही है। इसमें कथा-भाग तथा अन्य बातें वे ही हैं, जो ‘कल्याण’ के विशेषांक ‘संक्षिप्त मार्कण्डेय-ब्रह्मपुराणांक’ में प्रकाशित हो चुकी हैं। कुछ उपयोगी स्तोत्र और बढ़ाये गये हैं।
इसमें पाठ करने की विधि स्पष्ट, सरल और प्रामाणिक रूप में दी गयी है। इसके मूल पाठको विशेषतः शुद्ध रखने का प्रयास किया गया है। आजकल प्रेसों में छपी हुई अधिकांश पुस्तकें अशुद्ध निकलती हैं किंतु प्रस्तुत पुस्तक को इस दोष से बचाने की यथासाध्य चेष्टा की गयी है। पाठकों की सुविधा के लिये कहीं-कहीं महत्त्वपूर्ण पाठान्तर भी दे दिये गये हैं। शापोद्धार के अनेक प्रकार बतलाये गये हैं। कवच, अर्गला और कीलक के भी अर्थ दिये गये हैं। वैदिक-तान्त्रिक रात्रि सूक्त और देवीसूक्त के साथ ही देव्यथर्वशीर्ष, सिद्ध-कुंजिका स्तोत्र, मूल सप्तश्लोकी दुर्गा, श्रीदुर्गाद्वात्रिंशन्नाममाला, श्रीदुर्गाष्टोत्तरशतनामस्तोत्र, श्रीदुर्गामानसपूजा और देव्यपराधक्षमापनस्तोत्र को भी दे देने से पुस्तक की उपादेयता विशेष बढ़ गयी है। नवार्ण-विधि तो है ही, आवश्यक न्यास भी नहीं छूटने पाये हैं। सप्तशती के मूल श्लोकों का पूरा अर्थ दे दिया गया है। तीनों रहस्यों में आये हुए कई गूढ़ विषयों को भी टिप्पणी द्वारा स्पष्ट किया गया है। इन विशेषताओं के कारण यह पाठ और अध्ययन के लिये बहुत ही उपयोगी और उत्तम पुस्तक हो गयी है।
सप्तशती के पाठ में विधिका ध्यान रखना तो उत्तम है ही, उसमें भी सबसे उत्तम बात है भगवती दुर्गा माता के चरणों में प्रेमपूर्ण भक्ति। श्रद्धा और भक्ति के साथ जगदम्बा के स्मरणपूर्वक सप्तशती का पाठ करने वाले को उनकी कृपा का शीघ्र अनुभव हो सकता है। आशा है, प्रेमी पाठक इससे लाभ उठायेंगे। यद्यपि पुस्तक को सब प्रकार से शुद्ध बनाने की ही चेष्टा की गयी है तथापि प्रमादवश कुछ अशुद्धियों का रह जाना असम्भव नहीं है। ऐसी भूलों के लिये क्षमा माँगते हुए हम पाठकों से अनुरोध करते हैं कि वे हमें सूचित करें, जिससे भविष्य में उनका सुधार किया जा सके।
इसमें पाठ करने की विधि स्पष्ट, सरल और प्रामाणिक रूप में दी गयी है। इसके मूल पाठको विशेषतः शुद्ध रखने का प्रयास किया गया है। आजकल प्रेसों में छपी हुई अधिकांश पुस्तकें अशुद्ध निकलती हैं किंतु प्रस्तुत पुस्तक को इस दोष से बचाने की यथासाध्य चेष्टा की गयी है। पाठकों की सुविधा के लिये कहीं-कहीं महत्त्वपूर्ण पाठान्तर भी दे दिये गये हैं। शापोद्धार के अनेक प्रकार बतलाये गये हैं। कवच, अर्गला और कीलक के भी अर्थ दिये गये हैं। वैदिक-तान्त्रिक रात्रि सूक्त और देवीसूक्त के साथ ही देव्यथर्वशीर्ष, सिद्ध-कुंजिका स्तोत्र, मूल सप्तश्लोकी दुर्गा, श्रीदुर्गाद्वात्रिंशन्नाममाला, श्रीदुर्गाष्टोत्तरशतनामस्तोत्र, श्रीदुर्गामानसपूजा और देव्यपराधक्षमापनस्तोत्र को भी दे देने से पुस्तक की उपादेयता विशेष बढ़ गयी है। नवार्ण-विधि तो है ही, आवश्यक न्यास भी नहीं छूटने पाये हैं। सप्तशती के मूल श्लोकों का पूरा अर्थ दे दिया गया है। तीनों रहस्यों में आये हुए कई गूढ़ विषयों को भी टिप्पणी द्वारा स्पष्ट किया गया है। इन विशेषताओं के कारण यह पाठ और अध्ययन के लिये बहुत ही उपयोगी और उत्तम पुस्तक हो गयी है।
सप्तशती के पाठ में विधिका ध्यान रखना तो उत्तम है ही, उसमें भी सबसे उत्तम बात है भगवती दुर्गा माता के चरणों में प्रेमपूर्ण भक्ति। श्रद्धा और भक्ति के साथ जगदम्बा के स्मरणपूर्वक सप्तशती का पाठ करने वाले को उनकी कृपा का शीघ्र अनुभव हो सकता है। आशा है, प्रेमी पाठक इससे लाभ उठायेंगे। यद्यपि पुस्तक को सब प्रकार से शुद्ध बनाने की ही चेष्टा की गयी है तथापि प्रमादवश कुछ अशुद्धियों का रह जाना असम्भव नहीं है। ऐसी भूलों के लिये क्षमा माँगते हुए हम पाठकों से अनुरोध करते हैं कि वे हमें सूचित करें, जिससे भविष्य में उनका सुधार किया जा सके।
- हनुमानप्रसाद पोद्दार
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