परिवर्तन >> भूतनाथ - भाग 1 भूतनाथ - भाग 1देवकीनन्दन खत्री
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चन्द्रकांता व चन्द्रकांता सन्तति की परम्परा में एक और कड़ी...
भूतनाथ, इक्कीस भाग व सात खण्डों में, ‘चन्द्रकान्ता’ व
‘चन्द्रकान्ता-सन्तति’ की ही परम्परा और श्रृंखला का,
बाबू देवकीनन्दन खत्री विरचित एक अत्यन्त लोकप्रिय और बहुचर्चित प्रसिद्ध
उपन्यास है। ‘चन्द्रकान्ता-सन्तति’ में ही बाबू
देवकीनन्दन खत्री के अद्भुत पात्र भूतनाथ (गदाधर सिंह) ने अपनी जीवनी
(जीवन-कथा) प्रस्तुत करने का संकल्प किया था। यह संकल्प वस्तुतः लेखक का
ही एक संकेत था कि इसके बाद ‘भूतनाथ’ नामक बृहत्
उपन्यास की रचना होगी। देवकीनन्दन खत्री की अद्भुत कल्पना-शक्ति को शत-शत
नमन है। लाखों करोड़ों पाठकों का यह उपन्यास कंठहार बना हुआ है। जब यह कहा
जाता है कि ‘चन्द्रकान्ता’ और
‘चन्द्रकान्ता-सन्तति’ उपन्यासों को पढ़ने के लिए
लाखों लोगों ने हिन्दी भाषा सीखी तो इस कथन में
‘भूतनाथ’ भी स्वतः सम्मिलित हो जाता है क्योंकि
‘भूतनाथ’ उसी तिलिस्मी और ऐयारी उपन्यास परम्परा ही
नहीं, उसी श्रृंखला का प्रतिनिधि उपन्यास है। कल्पना की अद्भुत उड़ान और
कथारस की मार्मिकता इसे हिन्दी साहित्य की विशिष्ट रचना सिद्ध करती है।
मनोरंजन का मुख्य उद्देश्य होते हुए भी इसमें बुराई और असत् पर अच्छाई और
सत् की विजय का शाश्वत विधान ऐसा है जो इसे एपिक नॉवल (Epic Novel) यानी
महाकाव्यात्मक उपन्यासों की कोटि में लाता है।
‘भूतनाथ’ का यह शुद्ध पाठ-सम्पादन और भव्य नवप्रकाशन,
आशा है, पाठकों को विशेष रुचिकर प्रतीत होगा।
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