परिवर्तन >> भूतनाथ (सेट) भूतनाथ (सेट)देवकीनन्दन खत्री
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तिलिस्म और ऐयारी संसार की सबसे अधिक महत्वपूर्ण रचना
प्रश्न- शिक्षा के क्षेत्र का वर्णन कीजिए।
उत्तर -
शिक्षाशास्त्र ज्ञान की वह शाखा है जिसमें शिक्षा प्रक्रिया के स्वरूप एवं उसके विभिन्न अंगों तथा समस्याओं का दार्शनिक समाजशास्त्रीय, राजनीतिक, आर्थिक, मनोवैज्ञानिक एवं वैज्ञानिक दृष्टिकोण से अध्ययन किया जाता है।
शिक्षा मनोविज्ञान - वर्तमान शिक्षा में बालक का महत्वपूर्ण स्थान है उसी के शारीरिक, मानसिक, सामाजिक और संवेगात्मक विकास को आधार बनाकर शिक्षा की व्यवस्था मनोविज्ञान के सहयोग से की जाती है। अतः शिक्षा मनोविज्ञान कहलाती है। इसके अन्तर्गत बच्चों की बुद्धि, सीखने की प्रक्रिया के फलस्वरूप विधियों तथा दशाओं का विस्तृत अध्ययन व्यक्तित्व के विकास की विधियों, बच्चों की प्रकृति, रुचियों, स्मृति, उनकी योग्यता, चिन्तन, कल्पना आदि शक्तियों का अध्ययन किया जाता है।
शिक्षा का इतिहास - आदिकाल से अब तक जो शिक्षा का स्वरूप रहा है, उसकी व्यवस्था तथा परिणाम का विस्तृत अध्ययन नहीं कर सकते। इसलिए शिक्षाशास्त्र के अन्तर्गत शिक्षा के इतिहास का अध्ययन आवश्यक है।
शिक्षा दर्शन जीवन के प्रति जो विभिन्न दृष्टिकोण हैं, उनका और उनके आधार पर शिक्षा के स्वरूप, शिक्षा के उद्देश्य और शिक्षा की पाठ्यचर्या आदि का अध्ययन किया जाता है। शिक्षाशास्त्र के इस भागलको शिक्षा दर्शन कहते हैं।
शैक्षिक समाजशास्त्र- समाज एवं व्यक्ति का शिक्षा से घनिष्ठ सम्बन्ध है, इनके अन्तः सम्बन्धों का अध्ययन समाजशास्त्र में किया जाता है। शिक्षा पर व्यक्ति व समाज और समाज पर शिक्षा के प्रभावों का अध्ययन किया जाता है तो वह शिक्षा समाजशास्त्र हो जाती है।
तुलनात्मक शिक्षा प्रणाली - शिक्षा की अन्य देशों की शिक्षा प्रणाली से तुलना करके उनके गुणों को अपनी शिक्षा प्रणाली में समाहित किया जाना चाहिए। अतः शिक्षाशास्त्र की विषय-वस्तु में तुलनात्मक शिक्षा भी आ जाती है।
शिक्षा की तकनीकी एवं शिक्षण कला - शिक्षण प्रक्रिया में सीखना और सिखाना दोनों क्रियायें आती हैं। इसमें अनेक विधियों और तकनीकियों का प्रयोग होता है।
शिक्षा संगठन प्रशासन व वित्तीय व्यवस्था शिक्षा देने के लिए अनेक संस्थाओं का विकास किया गया है और इनको संगठित, व्यवस्था प्रशासन संचालन विधियों का अध्ययन किया जाता है।
शैक्षिक समस्यायें - देश की वर्तमान शैक्षिक समस्याओं पर विचार किया जाता है और उनके समाधान के तरीके खोजे जाते हैं। समस्याओं के समाधान के बाद ही देश विकास के पथ पर अग्रसर हो सकता है।
दूरस्थ शिक्षा - शिक्षा के प्रसार व विस्तार के लिए शिक्षा को विद्यालय एवं विश्वविद्यालयों के बाहर विस्तृत क्षेत्रों में शिक्षा प्रदान की जानी चाहिए और इसके लिए दूरस्थ शिक्षा का महत्वपूर्ण स्थान है।
भारतीय एवं पाश्चात्य शिक्षा - शिक्षा द्वारा बालक को भारतीय एवं पाश्चात्य शिक्षा का अध्ययन किया जाता है। बालक को दोनों की भिन्नता से अवगत कराया जाता है।
व्यावसायिक शिक्षा - बालक को शिक्षा के क्षेत्र में अनेक नये-नये शोध करना, शोध की विस्तृत जानकारी प्राप्त करना तथा उसे उचित वैज्ञानिक स्वरूप प्रदान करना है जो कि आज तक अलग विषय है।
शिशु शिक्षा - शिक्षा के क्षेत्र के अन्तर्गत बालक शिक्षा भी आती है। शिशु के जन्म से पूर्व व बाद तक माताओं को किन बातों का ध्यान रखना चाहिए। इसकी शिक्षा भी दी जानी चाहिए।
स्त्री शिक्षा- शिक्षा के हर क्षेत्रों में स्त्री शिक्षा का महत्वपूर्ण स्थान है। स्त्री परिवार की आधारशिला है। स्त्री की शिक्षा अत्यन्त आवश्यक है।
शिक्षाशास्त्र में सांख्यिकी एवं मूल्यांकन विधियों का प्रयोग किया जाता है। इसके अन्तर्गत बालक को क्षेत्र एवं व्यवसाय में निर्देशन दिया जाता है। शिक्षा के नये प्रयोगों का अध्ययन किया जाता है।
अतः शिक्षा के क्षेत्र में यह स्पष्ट है कि शिक्षा का क्षेत्र संकुचित दृष्टिकोण से भी बड़ा व्यापक है और यदि विस्तृत एवं अनौपचारिक अर्थ में शिक्षा को लें तो इसका क्षेत्र अत्यधिक व्यापक हो जाता है। ज्ञान विज्ञान के जितने भी विषय हैं, वे सब इसकी परिधि में आ जाते हैं। अन्य विषयों का भाग्य शिक्षा पर ही निर्भर है। विस्तृत अर्थ में केवल ज्ञान के विषयों तक भी शिक्षा को सीमित न करके जीवन के प्रत्येक भाग से इसको सम्बन्धित करते हैं।
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- प्रश्न 1