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भूतनाथ (सेट)

देवकीनन्दन खत्री

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2009
पृष्ठ :2177
मुखपृष्ठ :
पुस्तक क्रमांक : 7144
आईएसबीएन :000000000

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प्रश्न- शिक्षा के उद्देश्य सम्बन्धी शिक्षाशास्त्रियों के विचार को बताइए।
उत्तर-
शिक्षा के उद्देश्य सम्बन्धी शिक्षाशास्त्रियों के विचार
(Views of Educationer Related to the Aims of Education)
शिक्षा के उद्देश्यों को प्रतिपादित करने के सम्बन्ध में विभिन्न शिक्षाशास्त्रियों ने अपने विचारों को प्रस्तुत किया जो कि निम्नलिखित हैं-
(1) सुकरात के अनुसार 'शिक्षा का उद्देश्य व्यक्ति को सत्य समझाना तथा तदनुसार व्यवहार सिखाना है।'
(2) अरस्तु के कथन के अनुसार "शिक्षा का उद्देश्य सुख प्राप्त करना है।'
(3) जॉन डीवी के मतानुसार - "शिक्षा का उद्देश्य ऐसा वातावरण उत्पन्न करना है जिसके अन्तर्गत व्यक्ति मानव जाति की सामाजिक जागृति में सफलता से भाग ले सके।'
(4) प्लेटो की दृष्टि से "वह शिक्षा अनुदार है जिसका उद्देश्य बुद्धि और न्याय की ओर ध्यान न देकर केवल धन या शारीरिक बल की प्राप्ति है।'
(5) हरबर्ट की दृष्टि से - “शिक्षा की सभी समस्याओं का समाधान नैतिकता के अन्तर्गत सीमित है, इसी शब्द से शिक्षा के सभी उद्देश्य व्यक्त होते हैं।
(6) मिल्टन के मतानुसार - "शिक्षा का उद्देश्य शान्ति और युद्ध के काल में निजी तथा सार्वजनिक कार्यों के उचित प्रकार से करने हेतु व्यक्ति को तैयार करना है।"
(7) टी. पी. नन के अनुसार - "शिक्षा को ऐसी दशायें उत्पन्न करनी चाहिए जिनमें व्यक्तिकता का पूर्ण विकास हो और व्यक्ति मानव जीवन को अपना मौलिक योग दे सके।'
(8) अरविन्द घोष के अनुसार - "शिक्षा का उद्देश्य विकसित होने वाली आत्मा को सर्वोत्तम प्रकार से विकास करने में सहायता देना है और श्रेष्ठ कार्य के लिए पूर्ण बनाना होना चाहिए।"
(9) स्पेन्सर के मतानुसार - "जीविकोपार्जन के लिए तैयार करना हमारी शिक्षा का आवश्यक अंग है।'
(10) रॉस के अनुसार - "वास्तव में जीवन और शिक्षा के उद्देश्यों के रूप में आत्मानुभूति तथा समाज सेवा में कोई भेद नहीं है क्योंकि दोनों एक ही हैं।
(11) स्मिथ के अनुसार - "स्कूल को व्यापक कार्य करने चाहिए। उसे निश्चित रूप से सामाजिक दायित्व और समाज के प्रति व्यक्ति का निर्माण एवं विकास का कार्य करना चाहिए।'
(12) रेमण्ट के कथन के अनुसार - "शिक्षा का उद्देश्य न तो शारीरिक शक्ति उत्पन्न करना है न ज्ञान की पूर्ण प्राप्ति करना, न विचारधारा का शुद्धिकरण, बल्कि उसका उद्देश्य चरित्र को शक्तिशाली तथा उज्ज्वल बनाना है।'

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न 1

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