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भूतनाथ (सेट)

देवकीनन्दन खत्री

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2009
पृष्ठ :2177
मुखपृष्ठ :
पुस्तक क्रमांक : 7144
आईएसबीएन :000000000

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तिलिस्म और ऐयारी संसार की सबसे अधिक महत्वपूर्ण रचना

प्रश्न- भारतीय सांस्कृतिक धरोहर की प्रमुख विशेषताओं का संक्षिप्त में उल्लेख कीजिए।
अथवा
हमारी संस्कृति के समन्वयकारी रूप का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
भारतीय सांस्कृतिक धरोहर की प्रमुख विशेषताएँ
(Characteristics of our Cultural Heritage)
दूसरी संस्कृतियों को आत्मसात् करने की क्षमता- भारतीय संस्कृति की यह विशेषता रही है कि जितनी भी संस्कृतियों का यहाँ आगमन हुआ, सबको उसने अपने में आत्मसात् किया कि उनका कोई पृथक् स्वरूप नहीं रह गया। अतः दक्षिण से उत्तर तथा पूर्व से पश्चिम- सम्पूर्ण भारत को हम एक संस्कृति - सूत्र में बँधा हुआ पाते हैं।
प्रत्येक जीव में ईश्वर का अस्तित्व स्वीकारना- भारतीय दर्शन के अनुसार, प्रत्येक जीव ईश्वर का अंश है। जिस प्रकार एक ही सूर्य की अगणित किरणें सम्पूर्ण पृथ्वी को एक साथ प्रकाशित करती है। उसी प्रकार ईश्वर अपने अगणित अंशों में समस्त जीवों में व्याप्त होता है। प्राणियों के प्रति समान भाव से ही हम अहिंसा तथा करुणा तक पहुँचते हैं। इसी विचार के कारण ही समष्टिवादी भाव का उदय होता है।
पुनर्जन्म- भारतीय संस्कृति के अनुसार, कर्म ही प्रधान और कर्म के फलस्वरूप ही जीव विभिन्न योनियों में भ्रमण करता है। अतः मनुष्य, जो कि समस्त प्राणियों में तर्कशील है, भगवान से डरकर काम करने लगा जिसमें अवांछनीय कर्मों के लिए स्थान ही नहीं रहा। पुनर्जन्म के विश्वास ने ही आर्य जाति को विपदाओं में भी धैर्य और साहस न छोड़ने का साहस दिया।
अतिथि सत्कार- भारतीय संस्कृति में अतिथि को देवता मानकर उसकी पूजा करने की प्रथा रही है। अतिथि का अनादर घोर पाप माना जाता था। नर में नारायण के दर्शन करना इसी अवस्था की उपमान्यता है। 'ना जाने केहि भेस में नारायण मिलि जाइ'।
त्याग और संयम - भारतीय संस्कृति में त्याग की भावना को प्राचीन काल से ही महत्व प्रदान किया गया है। भगवतगीता में भी भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है-“कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन्। त्याग ने ही बुद्ध को भगवान बनाया, गाँधी को महात्मा बनाया और अरविन्द को महर्षि की पदवी दिलाई। त्याग से ही तप और संयम आते हैं। मन, वचन तथा कर्म का संयम ही तप है।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न 1

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