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गीता प्रेस, गोरखपुर >> 279 स्कन्दपुराण

279 स्कन्दपुराण

गीताप्रेस

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2008
पृष्ठ :1372
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 7146
आईएसबीएन :81-293--013903

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विभिन्न विषयों के विस्तृत विवेचन की दृष्टि से पुराणों में सबसे बड़ा पुराण

Skand Puran

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

विषय वस्तु

विभिन्न विषयों के विस्तृत विवेचन की दृष्टि से पुराणों में स्कन्द पुराण सबसे बड़ा है। भगवान् स्कन्द के द्वारा कथित होने के कारण इसका नाम स्कन्दपुराण है। यह खण्डात्मक और संहितात्मक दो स्वरूपों में उपलब्ध है। दोनों खण्डों में ८१-८१ हजार श्लोक हैं। खण्डात्मक स्कन्द पुराण में क्रमशः माहेश्वर, वैष्णव, ब्राह्म, काशी, अवन्ती (ताप्ती और रेवाखण्ड) नागर तथा प्रभास--ये सात खण्ड हैं। संहितात्मक स्कन्दपुराण में सनत्कुमार, शंकर, ब्राह्म, सौर, वैष्णव और सूत--छः संहिताएँ हैं। इसमें बदरिकाश्रम, अयोध्या, जगन्नाथपुरी, रामेश्वर, कन्याकुमारी, प्रभास, द्वारका, काशी, कांची आदि तीर्थों की महिमा; गंगा, नर्मदा, यमुना, सरस्वती आदि नदियों के उद्गम की मनोरथ कथाएँ; रामायण, भागवतादि ग्रन्थों का माहात्म्य, विभिन्न महीनों के व्रत-पर्व का माहात्म्य तथा शिवरात्रि, सत्यनारायण आदि व्रत-कथाएँ अत्यन्त रोचक शैली में प्रस्तुत की गयी हैं। विचित्र कथाओं के माध्यम से भौगोलिक ज्ञान तथा प्राचीन इतिहास की ललित प्रस्तुति इस पुराण की अपनी विशेषता है। आज भी इसमें वर्णित विभिन्न व्रत-त्योहारों के दर्शन भारत के घर-घर में किये जा सकते हैं।

इस पुराण की विशेषताओं को देखकर "कल्याण-वर्ष २५, सन् १९५१" के विशेषाँक के रूप में संक्षिप्त स्कन्दपुराण का प्रकाशन किया गया था जिसके स्वाध्याय से जिज्ञासु अपने आत्मकल्याण का पथ प्रशस्त करते रहे हैं। अब इस संक्षिप्त स्कन्दपुराण को गीता प्रेस द्वारा पुस्तक रूप में पाठकों की सेवा में प्रस्तुत किया जा रहा है। आशा है, धर्मप्रेमी सज्जन इसके स्वाध्याय एवं मनन के माध्यम से पारमार्थिक लाभ उठाते रहेंगे।

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