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अगला यथार्थ

हिमांशु जोशी

प्रकाशक : पेंग्इन बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :258
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 7147
आईएसबीएन :0-14-306194-1

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हिमांशु जोशी की हृदयस्पर्शी कहानियों का संग्रह...


मैदान की अपेक्षा एकदम सर्दी। फर-फर ठंडी हवा चल रही थी। धीरे-धीरे कंपकंपी-सी लगने लगी उसे। ठंड से शरीर पर कांटे-से उभर आए थे। जब-जब ऐसा होता है, उसे सहसा मां दीखती। उसके ठिठुरते हुए, कांपते हाथों को अपनी खुरदरी, रक्तहीन हथेलियों से सहलाती हुई चिंतित स्वर में अकसर कहती थी, “कांछा, तू इतना दुबला-पतला है कमजोर... इस निठोर दुनिया में तू कैसे जिएगा रे...?" मां का आर्द्र स्वर कंपकंपाने लगता।

उसकी काली-काली निरीह आंखों के आगे धुआं-सा छाने लगा। एक क्षण कुछ सोचता हुआ वह मुड़ा और झटके से सिर हिलाता हुआ आंगन में आ गया।

अब तक पांव सही ढंग से ज़मीन पर नहीं पड़ रहे थे। सिर चकरा रहा था, रिंगाई-जैसी आ रही थी। लोहे के बड़े-बड़े कमरे-जैसे डब्बे-एक-दूसरे से जुड़े खड़खड़ाते हुए आगे सरकते, वैसा ही अजूबा... मोटर-गाड़ी सड़क से धूल उड़ाती हुई...खटीमा आकर उसने इन्हें दूर से ही देखा था बहुत बार... डरते-डरते

छुआ भी था कई बार, पर बैठने की हिम्मत नहीं हुई थी...इस बार जब बैठा तो धरती से लगे-लगे, उड़ने का जैसा अहसास हुआ था...

घुमावदार ऊबड़-खाबड़ मोड़ों पर गाड़ी मुड़ती तो वह झप्प-से आंखें मूंद लेता। कहीं गाड़ी नीचे खड्डे में गिर पड़ी तो ! उसका रोम-रोम कांप उठता।

देवदार के पेड़ों के पास एक समतल-सी जगह पर गाड़ी रुकी। कुछ लोग उतरे तो उनके साथ-साथ वे दोनों भी नीचे उतर पड़े थे।

धूल से अटे किसी आदमी ने गाड़ी के पीछे लगी लोहे की छोटी-छोटी सीढ़ियां चढ़कर सामान नीचे उतार दिया था।

गाड़ी धूल उड़ाती हुई फिर आगे चल पड़ी तो वहां पर वे ही दो लोग रह गए थे।

उसके सिर पर छोटी-सी टिन की बक्सी, और अपने कंधे पर ख़ाकी किरमिच के गोल, लंबे थैले को रखकर वह मिलिट्री के बूटों से बजरी रगड़ता हुआ आगे बढ़ने लगा था।

"कब आए भौंना?" किसी बुजुर्ग ने कहा तो 'पैंलांग' कहते हुए उसने गर्दन किंचित नीचे झुकाई थी।

"मल्ले घर का भवान सिंह सिपाही घर आया है। चारों ओर यही चर्चा शुरू हो गई थी। अपने घरों के आंगन के तीर पर खड़े लोग कितनी जिज्ञासा से, किस तरह से देखने लगे थे-उसे आता हुआ !

"ले, तेरे लिए इस बार एक नन्हा-सा नौकर ले आया हूं, हाथ बंटाने के लिए !” कंधे को सामान नीचे उतारते हुए भवान सिंह ने कहा था।

सामने खड़ी औरत हंस पड़ी थी, "नौकर कहां, यह तो नौकर की पोथि है-छोटा-सा छौना। किस घोंसले से उठा लाए...?”

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    अनुक्रम

  1. कथा से कथा-यात्रा तक
  2. आयतें
  3. इस यात्रा में
  4. एक बार फिर
  5. सजा
  6. अगला यथार्थ
  7. अक्षांश
  8. आश्रय
  9. जो घटित हुआ
  10. पाषाण-गाथा
  11. इस बार बर्फ गिरा तो
  12. जलते हुए डैने
  13. एक सार्थक सच
  14. कुत्ता
  15. हत्यारे
  16. तपस्या
  17. स्मृतियाँ
  18. कांछा
  19. सागर तट के शहर

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