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अगला यथार्थ

हिमांशु जोशी

प्रकाशक : पेंग्इन बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :258
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 7147
आईएसबीएन :0-14-306194-1

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हिमांशु जोशी की हृदयस्पर्शी कहानियों का संग्रह...


"क्या मांगा तुमने?” लौटते समय मैंने यों ही पूछा तो तुम्हारे मुंह से निकल पड़ा था, "अपनी मुक्ति !”

तुम्हारे क्लांत चेहरे पर धूप-छांह की तरह कितने ही भाव आ-आकर ओझल हो रहे थे। मन का कोई भाव तुमसे छिपता नहीं। आकृति पर साफ झलक आता है। इसे तुम्हारे हृदय की निर्मलता भी कह सकते हैं, और दुर्बलता भी।

''पोखरा जाने वाला विमान अभी तक भी विराटनगर से आया नहीं !* कोई यात्री परेशान-सा है।

यानी उड़ान में पर्याप्त विलंब है।

जेट और बैलगाड़ियां साथ-साथ चलते देख आश्चर्य नहीं होता। कहां निजी कंपनियों द्वारा संचालित ये आधुनिकतम छोटेछोटे जहाज़ ! कहां कच्ची सड़क-जैसे रन-वे'! ऐसी टूटी-फूटी इमारतें... !

तभी छत पर गड़गड़ाहट-सी होती है।

कोई विमान उतर रहा है, या उड़ान भर रहा है !

"थोड़ा-सा कष्ट और है। मुझे लगता है...!”

तुम्हारे मुरझाए अधरों पर यों ही फीकी-सी मुस्कान उभरी, "यही। न कि वहां जाते ही मैं ठीक हो जाऊंगी- !”

"हां, हां।” मैंने कहा।

“मुझे आपकी आस्था पर पूरा विश्वास है। कुछ भी असंभव मैं नहीं मानती। पर...।”

तभी सब एकाएक उठ खड़े हुए। अपने हैंड बैगं मैंने भी संभाल लिए और सबकी तरह, मैं भी शीशे के बंद द्वार की ओर बढ़ा। जिसके खुलते ही सब बाहर खड़े विमान की दिशा में जाएंगे।

कुछ ही क्षणों में इतने पहाड़, इतनी घाटियां पार कर लीं-सच नहीं लग रहा था।

पोखरा पहुंचे तो बर्फीले पहाड़, सामने दीवार की तरह हमारेस्वागत में खड़े थे। हरे वृक्षों से आच्छादित घने पहाड़ों के उस पार था ‘मांछी पुंच्छ' यानी 'मछली की पूंछ।' पूरी एक धवल श्रृंखला !

विमान से उतरकर क्षणभर तुम स्तब्ध-सी खड़ी देखती रहीं। मंत्रमुग्ध-सी।

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    अनुक्रम

  1. कथा से कथा-यात्रा तक
  2. आयतें
  3. इस यात्रा में
  4. एक बार फिर
  5. सजा
  6. अगला यथार्थ
  7. अक्षांश
  8. आश्रय
  9. जो घटित हुआ
  10. पाषाण-गाथा
  11. इस बार बर्फ गिरा तो
  12. जलते हुए डैने
  13. एक सार्थक सच
  14. कुत्ता
  15. हत्यारे
  16. तपस्या
  17. स्मृतियाँ
  18. कांछा
  19. सागर तट के शहर

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