लोगों की राय

कहानी संग्रह >> अगला यथार्थ

अगला यथार्थ

हिमांशु जोशी

प्रकाशक : पेंग्इन बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :258
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 7147
आईएसबीएन :0-14-306194-1

Like this Hindi book 8 पाठकों को प्रिय

61 पाठक हैं

हिमांशु जोशी की हृदयस्पर्शी कहानियों का संग्रह...


बहू के व्यवहार का रंग तब कुछ दूसरा ही था। अमीर बाप की इकलौती नकचढ़ी बेटी ! सास-ससुर भी भार लगते ! पर प्रियांशु, अत्यधिक संवेदनशील होने के बावजूद सब संभाल लेता, बड़े धीरज के साथ। पहले ही दिन जब पहुंचे तो श्रेया ने बाजार जाते समय प्रियांशु को झोला थमाते हुए कहा, “लौटते समय बाज़ार से एक आलू ले आना।”

वे दोनों बोले कुछ नहीं। मात्र जिज्ञासा से उन्होंने एक-दूसरे की तरफ देखा-एक आलू !

किंतु जब प्रियांशु बाज़ार से लौटा तो उन्हें अपनी भूल का अहसास हुआ।

सचमुच दो किलो से कम क्या होगा एक आलू !

रात की स्याही अभी धुली नहीं थी ! मन भारी था। श्रेया का स्वर था, वह कह रही थी-“इस कोठी को बेच दो ! इतने बड़े घर में पापा अकेले कैसे रहेंगे?"

“पापा ने यह मकान अपनी खून-पसीने की कमाई से कैसे बनाया है, तुम कल्पना नहीं कर सकतीं। किसी भी हालत में वे तैयार नहीं होंगे ! फिर इतनी जल्दी बिकेगा भी कैसे? दाम कम मिलेंगे !"

"दाम ! दाम ! तुम्हें दाम की पड़ी है। यह घर घर नहीं, जी का जंजाल है। किसी दिन ऐसी-वैसी कोई बात हो गई तो फिर न कहना! दिल्ली की पॉश कालोनियों में कितनी हत्याएं आए दिन होती रहती हैं...!"

कुछ देर तक सन्नाटा रहा !

फिर बेटे का गंभीर स्वर सुनाई दिया, “श्रेया ! तुम समझती क्यों नहीं? पापा को हम अपने साथ अमेरिका ले नहीं जा सकते। डॉक्टरों ने मना किया है। इस विशाल कोठी में अकेला रख नहीं सकते। मम्मी जिंदा होतीं तो सब संभाल लेतीं, जैसे पहले संभाला करती थीं। कोई रिश्तेदार भी ऐसे नहीं, जहां पापा इत्मीनान से, घर की तरह रह सकें। रंजन के सुझाव पर नोएडा का 'वृद्धाश्रम' देख आया। पापा को वहां रखने को मन नहीं करता। लोग क्या कहेंगे? फिर मेरी आत्मा भी गवारा नहीं करती। हरिद्वार में भी ऐसे अनेक आश्रम हैं, पर पापा वहां रह नहीं पाएंगे।”

"बस, तुम जिंदगी भर सोचते ही रहोगे, कुछ होगा नहीं। यह तुम्हारे वश का नहीं। मैंने सोच लिया है। सलिल भैया की दोस्त है-'बत्रा प्रापर्टी डीलर !' भैया ने सब तय कर दिया है। अगले हफ्ते फ्राइडे की हमारी फ्लाइट है। अब मैं किसी भी कीमत पर उसे पोस्टपोन नहीं कर सकती...।”

“मुझसे पूछ तो लिया होता !” प्रियांशु का चीख़ता हुआ आहत स्वर था, “पापा से बिना पूछे मकान बेच दिया ! वे सुनेंगे तो सदमे से ही मर जाएंगे ! मकान केवल मिट्टी-पत्थर को ढेर ही नहीं होता, उसमें आत्मा भी बसती है...।”

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

    अनुक्रम

  1. कथा से कथा-यात्रा तक
  2. आयतें
  3. इस यात्रा में
  4. एक बार फिर
  5. सजा
  6. अगला यथार्थ
  7. अक्षांश
  8. आश्रय
  9. जो घटित हुआ
  10. पाषाण-गाथा
  11. इस बार बर्फ गिरा तो
  12. जलते हुए डैने
  13. एक सार्थक सच
  14. कुत्ता
  15. हत्यारे
  16. तपस्या
  17. स्मृतियाँ
  18. कांछा
  19. सागर तट के शहर

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book

A PHP Error was encountered

Severity: Notice

Message: Undefined index: mxx

Filename: partials/footer.php

Line Number: 7

hellothai