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अगला यथार्थ

हिमांशु जोशी

प्रकाशक : पेंग्इन बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :258
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 7147
आईएसबीएन :0-14-306194-1

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हिमांशु जोशी की हृदयस्पर्शी कहानियों का संग्रह...


मैं सोचता रहा, वस्तुएं भी क्या होंगी, इन बेघर विस्थापितों के पास ! तन के कपड़े, फटे कंबल, चावल, आटा, बीड़ी, गुड़ ! इनके अलावा और क्या?

आंगन के दाहिनी तरफ, एक कोने में मूर्ति का जैसा ढांचा खड़ा था।

"यह मूर्ति किसी कैदी ने बनाई है क्या?" जिज्ञासा से मैंने पूछा।

''जी हां।"

उसी के निकट चूल्हा जल रहा था। एक बूढ़ा कैदी गर्दन झुकाए, ऊंघता हुआ बैठा चावल उबाल रहा था। सैंवार की तरह उलझे बाल ! कोटरों में धंसी निस्तेज आंखें ! झुर्रियों से ढका चेहरा।

“इसी ने बनाई है...पहले बरेली सेंट्रल जेल में था। सुना है, वहां भी ऐसा ही कुछ करता रहता था। पुलिस अधिकारी ने बतलाया।

हमें पास देखते ही उसने उठकर खड़े होने की कोशिश की। उसकी कमर धनुष की तरह झुकी थी-अधखुली आंखों में जिज्ञासा का जैसा भाव।

"बहुत अच्छी बनाई है।" मूर्ति को मैंने हाथ से छूकर देखा-परखा।

वह संकोच से और छोटा हो गया-सिकुड़कर। मेरी ओर देखता हुआ बोला, "यों ही कुछ... अब आंख से बहुत कम दीखता है। हाथों में भी जान नहीं रही।"

"यहां कैसे आ पड़े...?"

कुछ देर वह वैसा ही देखता रहा–निर्निमेष। फिर धीरे से बुदबुदाता हुआ बोला, “हत्या और बलात्कार का जुरम लगा है। साब...!"

अब आग के और निकट होने के कारण उसका सूखे खजूर-सा चेहरा और भी पीला लग रहा था। मकड़ी के जाले-जैसी अनगिनत रेखाओं से ढकी आकृति पर एक साथ कितने ही भाव आ-जा रहे थे-पानी पर डोलते प्रतिबिंब की तरह।

"कैसे हो पड़ा यह सब-?"

"किस्मत में यही लिखा था, हुजूर ! उसके लिखे को कौन टाल सकता है?"

ठंडी हवा से उसके तन पर लटके चिथड़े ही नहीं, उसका सारा बूढ़ा शरीर सूखे पत्ते की तरह कांप रहा था। अपनी कुहनियों की बगल में दोनों नंगे हाथों को, सर्दी से बचाने के लिए, छिपाने का असफल प्रयास कर रहा था।

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    अनुक्रम

  1. कथा से कथा-यात्रा तक
  2. आयतें
  3. इस यात्रा में
  4. एक बार फिर
  5. सजा
  6. अगला यथार्थ
  7. अक्षांश
  8. आश्रय
  9. जो घटित हुआ
  10. पाषाण-गाथा
  11. इस बार बर्फ गिरा तो
  12. जलते हुए डैने
  13. एक सार्थक सच
  14. कुत्ता
  15. हत्यारे
  16. तपस्या
  17. स्मृतियाँ
  18. कांछा
  19. सागर तट के शहर

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