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अगला यथार्थ

हिमांशु जोशी

प्रकाशक : पेंग्इन बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :258
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 7147
आईएसबीएन :0-14-306194-1

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हिमांशु जोशी की हृदयस्पर्शी कहानियों का संग्रह...


"ये जो सड़क पर टूटा कटोरा लिए भीख मांगते नंगे बच्चे देखती हो, क्या इनमें कहीं कभी तुम्हें रूही की शक्ल नज़र नहीं आती? ऐसी कितनी ही रूहियां हैं-तुम नहीं जानतीं... तुम नहीं जान सकतीं।”

शिव'दा पता नहीं किस समाधि में लीन हो जाते। और सीमा भाभी आसमान की ओर देखने लगतीं-कुछ खोजती हुई निगाहों से।

एक दिन शिव'दा की नौकरी छूट गई। प्राइवेट स्कूल था-सरकारी सहायता से चलता था। मैंनेजिंग कमेटी के चेयरमैन लाला सुखन प्रसाद का आरोप था कि शिव दास विद्यार्थियों को भड़का रहे हैं। सरकार के ख़िलाफ जन-आंदोलन में भाग ले रहे हैं। अगर शिव दास इस स्कूल में बने रहे तो फिर सरकारी सहायता नहीं मिलेगी...। अगर सरकारी सहायता नहीं मिलेगी तो स्कूल नहीं चलेगा। अतः सरकार बंद करवाए, उससे पहले हमें ही स्कूल बंद कर देना चाहिए।

उन्हें डर था कि शिव दास को ज़बरदस्ती हटाने पर विद्यार्थी स्कूल की इमारत जला डालेंगे।

"पर स्कूल बंद कैसे हो सकता है? इस देश में तो अभी करोड़ों लोग निरक्षर हैं जिन्हें शिक्षा की ज़रूरत है-ज्ञान की।” शिवदा ने कहा और स्वयं ही हट गए रास्ते से।

जहां-जहां बाढ़ आती, जहां-जहां अकाल पड़ता, महामारी फैलतीशिवदा वहां पहुंच जाते।

इस वर्ष चेचक से कितने ही लोग मर गए, पर अख़बारों में यों ही लीपा-पोती होती रही। हजारों लोग मरे, पर सरकारी आंकड़े दस-बीस से ऊपर न पहुंच पाए। चारों ओर हाहाकर मचा था। चींटियों की मौत मर रहे थे लोग। लावारिस लाशों के अंबार थे, पर कोई पूछने वाला तक न था...।

शिव'दा प्राणों की परवाह न कर अपने कुछ साथियों के साथ निकल पड़े। लोग कहते-‘शिवदास वहां से बचकर नहीं लौटेंगे, पर शिवदास कुछ महीने बाद फिर सामने खड़े थे-जीते-जागते !

और इस अकाल में तो उन्होंने हद कर दी। जब कहीं कुछ न बना तो सरकारी दफ्तरों के आगे धरना दिया। अफसरों की कारों के आगे लेट गए।

बड़े-बड़े मंत्रियों को, नेताओं को लिखा, तब भी पूरी सहायता न मिली तो शिवदा अपने साथियों के साथ घर-घर, द्वार-द्वार घूमकर अन्न के दाने और फटे चिथड़े इकट्ठा करते।

सरकारी अफसर कहते कि लोग भूख से नहीं, पौष्टिक तत्त्वों की कमी के कारण मर रहे हैं, तो शिवदा भूख से मरे लोगों के अस्थि पिंजर अपने दुर्बल कंधों पर लाद-लादकर थाने के सामने पटकते, “यह देखो, अब भी कह सकते हो कि ये भूख से नहीं मरे !" शिवदा के दांत भिंच जाते। आंखों में लाल डोरे उभर पड़ते।

लोग पागल समझते उन्हें और हंस देते।

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    अनुक्रम

  1. कथा से कथा-यात्रा तक
  2. आयतें
  3. इस यात्रा में
  4. एक बार फिर
  5. सजा
  6. अगला यथार्थ
  7. अक्षांश
  8. आश्रय
  9. जो घटित हुआ
  10. पाषाण-गाथा
  11. इस बार बर्फ गिरा तो
  12. जलते हुए डैने
  13. एक सार्थक सच
  14. कुत्ता
  15. हत्यारे
  16. तपस्या
  17. स्मृतियाँ
  18. कांछा
  19. सागर तट के शहर

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