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अगला यथार्थ

हिमांशु जोशी

प्रकाशक : पेंग्इन बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :258
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 7147
आईएसबीएन :0-14-306194-1

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हिमांशु जोशी की हृदयस्पर्शी कहानियों का संग्रह...


नार्वेजियनों की इन बस्तियों में कभी कहीं कोई तुर्क, ईरानी या पाकितानी भी शूल से मिल जाता है, तो कितनी प्रसन्नता होती है, उन्हें देखना कितना आत्मीय लगता है !

हमारे ठीक बगल वाले पड़ोस के फ्लैट में पाकिस्तानी अप्रवासी सगीर मियां रहते हैं। सुना है, मुल्क के बंटवारे से पहले उनके वालिद दिल्ली वासी थे। चूंकि अब हम दिल्ली में रहते हैं, इसलिए वे एक प्रकार की आत्मीयता-सी अनुभव करते हैं। उन्हें इस बात का गर्व है कि उनके वालिद कभी दिल्ली के रईसों में रह चुके हैं। यों देश के विभाजन के बाद पाकिस्तान आने पर परिस्थितियां बदल गईं। सब कुछ छोड़कर ख़ाली हाथ जाना पड़ा, वह और बात है।

अदित ने जब उनसे कहा कि पिताजी आने वाले हैं हिंदुरतान से, तभी से सगीर मियां राह चलते-चलते टकरा जाने पर प्रायः रोज़ ही उससे पूछना नहीं भूलते कि वालिद साहब कब तशरीफ ला रहे हैं?

सत्य के अनेक आयामों को छूती यह कहानी यथार्थ के इतने निकट लगती है कि डायरी या यात्रा-वृत्तांत का-सा एहसास जगा रही है। इसे सचमुच की कहानी का स्वरूप देने के लिए कुछ असत्य-सी लगने वाली सत्य घटनाओं को और जोड़ना पड़ेगा, ताकि पश्चिमी संस्कृति या विकृति एवं पूर्वी संस्कारों को एक नया आयाम मिल सके। कहानी वर्तमान वस्तुस्थितियों का एक प्रामाणिक दस्तावेज़ बन सके।

दो साल पहले जब मैं नार्वे आया था बच्चों से मिलने, तो अदित ने एक दिन विद्यालय में अपनी सह-अध्यापिका से मेरा परिचय कराते हुए कहा था, "बाबूजी, यह नोरा ऑस्कर है। इसकी मां ने गत वर्ष एक फिनिश चित्रकार से तीसरी शादी की है। तब से अब यह अकेली रहती है। अध्यात्म के प्रति बड़ा लगाव है। इसे। ओस्लो के 'हरे रामा, हरे कृष्णा मिशन में शामिल होना चाहती है। इसी सिलसिले में आपसे कुछ पूछना चाहती है।”

नोरा अपनी नार्वेजियन अंग्रेजी में देर तक बतियाती रहती है। जीवन क्या है? मृत्यु किसे कहते हैं? पागलपन की इस अंधी दौड़ का अंत कहां होगा? अंत में कुछ क्षण रुककर मेरी ओर देखती हुई पूछती है, “क्या यह सच है कि आपकी संस्कृति में छोटी-छोटी बच्चियों को, यानी कि कन्याओं को बड़ा पवित्र माना जाता है। देवताओं की तरह हिंदू उनके पांव पूजते हैं...?”

मैं विस्तार से इस धार्मिक अनुष्ठान के विषय में बतलाता हूं, "मैं धर्म पर विश्वास नहीं करता, किंतु इन संस्कारों के अपने महत्त्व को कौन नकार सकता है? श्रद्धा और स्नेह संस्कृति के मूल आधार हैं..."

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    अनुक्रम

  1. कथा से कथा-यात्रा तक
  2. आयतें
  3. इस यात्रा में
  4. एक बार फिर
  5. सजा
  6. अगला यथार्थ
  7. अक्षांश
  8. आश्रय
  9. जो घटित हुआ
  10. पाषाण-गाथा
  11. इस बार बर्फ गिरा तो
  12. जलते हुए डैने
  13. एक सार्थक सच
  14. कुत्ता
  15. हत्यारे
  16. तपस्या
  17. स्मृतियाँ
  18. कांछा
  19. सागर तट के शहर

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