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उपन्यास >> चतुर-चतुर नाना

चतुर-चतुर नाना

मनहर चौहान

प्रकाशक : पेंग्इन बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2009
पृष्ठ :117
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 7155
आईएसबीएन :9780143063285

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महाराष्ट्र के विख्यात कूटनीतिज्ञ नाना फड़नवीस के घटनापूर्ण जीवन पर आधारित रोमांचक, ऐतिहासिक उपन्यास...

Chatur-Chatur Nana - A Hindi Book - by Manhar Chauhan

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

मनहर चौहान का साहित्य नवीनता और रोचकता की कसौटी पर हमेशा खरा उतरता है। महाराष्ट्र के विख्यात कूटनीतिज्ञ नाना फड़नवीस के घटनापूर्ण जीवन पर आधारित रोमांचक, ऐतिहासिक उपन्यास चतुर-चतुर नाना आपकी लेखन कला का नायाब नमूना है। अंग्रेज़ों के साथ हुए संघर्ष के दिलचस्प वाक़यों में से एक है नाना फड़नवीस की कहानी, जिसमें रोमांच, साहस, षड्यंत्र और चातुर्य का भरपूर मेल है। चतुर-चतुर नाना हमें जहां एक और सकारात्मक सोच और धैर्य रखने की प्रेरणा देता है, वहीं मुसीबत की बड़ी से बड़ी घड़ी का भी साहस से सामना करने की सीख देता है। इसे पढ़कर बच्चे ही नहीं, हर उम्र का व्यक्ति कुछ न कुछ सीख सकता है।

चतुर-चतुर नाना

तुषार का एक जिगरी दोस्त था, हेनरी। इसी तरह निशा की एक पक्की सहेली थी, सलमा। इन दोनों को पता चला कि दादी मां तो बहुत ही दमदार कहानियां सुनाती हैं, अंग्रेज़ों के ज़माने की सच्ची कहानियां। इस बार जब दादी मां ने बच्चों की सभा ली, तब हेनरी और सलमा भी आ बैठे। दादी मां ने उन्हें नज़दीक बुलाया और प्यार किया।
तुषार बोला, ‘‘ये दोनों यहां पहली बार आए हैं, दादी मां ! आज तो कोई ऐसी कहानी सुनाइए कि इनकी रगें फड़क जाएं।’’
शीबू, हेमंत और सुनंदा भी कहने लगे, ‘‘अंग्रेजों के दांत खट्टे हो जाने की कहानी ! हमारी अपनी जीत की कहानी !’’

‘‘हां, दादी मां !’’ सलमा और हेनरी भी यही चाहते थे।
‘‘अच्छा, ठीक है...’’ दादी मां भी जोश में आ गईं, ‘‘सुनो एक ऐसी कहानी, जिसमें भारतवासियों ने अंग्रेज़ों के बत्तीस के बत्तीस दांत अच्छी तरह तोड़े थे।’’
‘‘अच्छा ? बत्तीस के बत्तीस ?’’ कहती निशा तपाक से उठी और दादी मां की गोद में आ बैठी।
‘‘हां, बच्चों ! अंग्रेजों के छक्के छुड़ा देने वाले उस शख़्स का नाम था, नाना फड़नवीस।’’
‘‘हां ! हां ! नाना फड़नवीस !’’ हेमंत उछल पड़ा, ‘‘मैंने उनका नाम बहुत सुना है।’’

‘‘मैंने भी सुना है।’’ सुनंदा बोली, ‘‘वो बहुत बड़े सेनापति थे न ?’’
‘‘नहीं, सुनंदा !’’ दादी मां मुस्करा पड़ीं, ‘‘सेनापति तो दूर, वो मामूली लड़ाके भी नहीं थे !’’
सुनकर सभा का एक-एक बच्चा हैरान हो गया और पूछने लगा, ‘‘फिर ? नाना ने कैसे तोड़ी अंग्रेंज़ों की बत्तीसी ?’’
‘‘सिर्फ़ अपनी चतुराई से।’’
‘‘अरे, वाह ! फिर तो ज़रूर सुनाइए, चतुर-चतुर नाना की कहानी।’’ कहते हुए सारे बच्चे दादी मां की दिशा में सरकने लगे। वे आपस में और ज़्यादा भिंचकर बैठ गए।

हमले की तैयारी


चलो, चलें अफ़ग़ानिस्तान...
तुम ज़रूर पूछोगे, ‘कहानी भारत की है। अफ़ग़ानिस्तान क्यूं चलें ?’’ क्योंकि वहां भारत पर ज़बरदस्त हमला करने की तैयारी चल रही है। कौन कर रहा है यह तैयारी ! अहमदशाह अब्दाली। कौन है यह अब्दाली ? वो अफ़ग़ानिस्तान का बादशाह है। हिम्मत और ग़ुस्सा, दोनों उसमें कूट-कूटकर भरे हैं।
अब्दाली ने भारत का एक बहुत बड़ा सूबा अपने क़ब्ज़े में कर लिया था। वो सूबा था पंजाब, जो कभी दिल्ली के बादशाह के पास हुआ करता था।
पंजाब का सारा राजकाज अब्दाली ने अपने एक सेनापति को सौंप दिया। अब्दाली चला गया अफ़ग़ानिस्तान वापस। तब दिल्ली के बादशाह ने वीर मराठों से मदद मांगी।

मराठों ने कर दिया पंजाब पर हमला। अब्दाली के सेनापति को उन्होंने बुरी तरह हरा दिया। वो सेनापति अपनी सेना समेत पंजाब से भाग निकला। पूरा पंजाब आ गया मराठों के क़ब्ज़े में। मराठों ने पंजाब सौंप दिया, वापस दिल्ली के बादशाह को।
यह ख़बर पहुंची अब्दाली के कानों तक। उसका तो ख़ून ही खौल गया। उसी वक़्त उसने ऐलान कर दिया, ‘‘मराठों की ऐसी हिम्मत ? मैं उन्हें धूल चटाकर रहूंगा।’’
अब्दाली की फ़ौज बहुत बढ़ी-चढ़ी थी। उसी फ़ौज को वो और बढ़ाने लगा। तमाम फ़ौजियों को नए सिरे से तैयार किया जाने लगा। दिल्ली के बादशाह को इसका पता चल गया। बादशाह ने मराठों को सावधान कर दिया।

मराठे भी अब्दाली से दोबारा भिड़ने की तैयारी करने लगे।
अब तुम समझ गए होगे, क्यों मैं तुम्हें अफ़ग़ानिस्तान ले आई। यहां मैं तुम सबको आमने-सामने दिखाना चाहती हूं, कैसी ज़बरदस्त है, अब्दाली की फ़ौज...
वो देखो ! वो रही फ़ौज ! अफ़ग़ानिस्तान के खतरनाक पहाड़ों के बीच कैसी मग़रूरी से फैली हुई है ! कहीं छोर ही नज़र नहीं आता। एक-एक फ़ौजी कितना मज़बूत, ऊंचा, पूरा ख़ूंखार ! घोड़े कितने ज़्यादा नज़र आ रहे हैं। वे बार-बार हिनहिनाते हैं। उस ज़माने की सबसे तेज़ सवारी, याने घोड़ा। अफ़ग़ानिस्तान से भारत जल्द से जल्द पहुंचना है, इस फ़ौज को। सब अपने घोड़ों पर सवार होकर ही झपटेंगे। बस दो-चार दिनों में...

जानते हो अभी कौन सा सन् चल रहा है ?
1760...जो आधे से ज्यादा बीत चुका है...
भरपूर देख लो इस ख़तरनाक फ़ौज को। फिर हमें कोलकाता लौट चलना है। कोलकाता ! अंग्रेज़ों की हुकूमत का सबसे बड़ा अड्डा वहीं तो है...
लो, हम आ पहुंचे कोलकाता। यहां अंग्रेज़ों का गवर्नर अपने फ़ौजी अफ़सरों के साथ मशविरा कर रहा है...
अंग्रेजों को ख़बर मिल चुकी है, अब्दाली कितनी बड़ी फ़ौज लेकर भारत की ओर कूच करने वाला है। अंग्रेज़ बहुत ख़ुश हैं। उनके गवर्नर ने कहा, ‘‘मराठों की ताक़त आसमान छू रही है। मराठों के रहते हम पश्चिम भारत पर क़ब्ज़ा कर ही नहीं सकते। अब आ रहा है अब्दाली ! वो इन मराठों को ऐसा कुचलेगा कि ये कहीं के नहीं रहेंगे। याने जो काम हम करना चाहते हैं, वो अब्दाली कर देगा ! हमें तो उसे धन्यवाद देने की भी ज़रूरत नहीं पड़ेगी ! भई, वाह !’’

‘‘यस, माय लॉर्ड !’’ सभी गोरे अफ़सरों के चेहरे दमक उठे, ‘‘मराठे ज्यों ही कमज़ोर हुए, हम घेर लेंगे उन्हें ! ऐसा चकनाचूर करेंगे कि वे तौबा कर जाएंगे।’’
कोलकाता में जब ये बातें चल रही थीं तब पूना में कैसा माहौल था ? पूना ! याने मराठों की राजधानी ! मराठों की ताक़त का सबसे बड़ा गढ़ ! हमारे चतुर-चतुर नाना उर्फ़ नाना फड़नवीस यहीं रहते हैं। पेशवा की गद्दी भी यहीं है।
पूना की तो गली-गली में ज़बरदस्त जोश था। वीर मराठा फ़ौजी बात-बात में हुंकारने और हंसने लगते। सबकी ज़ुबान पर एक ही बात थी, ‘‘इन अफ़ग़ानों को हमने किस बुरी तरह खदेड़ा था, पंजाब से बाहर ! उतनी करारी हार से भी कमबख्तों ने सबक़ नहीं लिया। अक़्ल देखो इनकी ! दोबारा आ रहे हैं ! हमसे भिड़ने ! हा, हा !’’
मराठों के पेशवा को भी पूरा यक़ीन था, ‘जीत हमारी ही होगी।’

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