जीवनी/आत्मकथा >> सम्राट पृथ्वीराज चौहान सम्राट पृथ्वीराज चौहानरघुवीर सिंह राजपूत
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सम्राट पृथ्वीराज का जीवन-वृत्तान्त...
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
प्रस्तावना
आज एक जटिल विषय पर लिखने का प्रयास करने जा
रहा हूं। असल में विषय है तो ऐतिहासिक ही, भगवान भास्कर की तरह तपती एक व्यक्तित्व रेखा सम्राट पृथ्वी राज चौहान ! जिनकी कीर्तिगाथा इतिहास के पृष्ठों पर
सुवर्णाक्षरों में लिखी जानी चाहिए थी। पर ऐसा नहीं हुआ। वह वीर जैसे
उपेक्षित ही रहा। ठाणेश्वर के निकट तराइन नामक युद्ध क्षेत्र में
शहाबुद्दीन मुहम्मद गौरी ने पृथ्वीराज चौहान को परास्त किया, इतनी ही खबर
इतिहास ने ली। इससे अधिक महत्त्व इतिहास ने इस महावीर को नहीं दिया।
इस चरित्र ग्रंथ में संक्षेप में उन्हीं का जीवन-वृत्तान्त पाठकों की सेवा में पेश करने का इरादा है–
कन्नौज के सम्राट महाराज हर्षवर्धन का 647 में स्वर्गवास हुआ। उनके साथ ही उत्तर हिंदुस्तान के एक बलशाली विराट साम्राज्य का अस्त हो गया। तत्पश्चात प्रतिहार, परमार, चंदेल, सोलंकी, राठौड़, चौहान, आदि छोटे-बड़े राज्यों का निर्माण हुआ। उनके राजा आपस में बैर रखते थे। इसी कारण कभी-कभी उनका टकराव हो जाता। बाहर के दुश्मन इस मौके का बराबर लाभ उठाते। भारतमाता ‘स्वर्गभूमि’ के नाम से मशहूर थी। कहा जाता था कि यहां के चूल्हे से निकलने वाला धुआँ भी स्वर्णयुक्त होता है, इसीलिए चंगेजखान, तैमूरलंग, महमूद गजनी आदि ने भारत पर बार-बार आक्रमण किया, अनगिनत लूट-पाट की और अपने देश में ले गए। उन दिनों उनके आक्रमण का उद्देश्य केवल लूटपात करने की हद तक ही सीमित रहता था। उसमें सफलता पाते ही वे अपने देश को लौट आते थे।
नवनिर्मित राज्यों में कन्नौज, गुजरात, बुंदेलखण्ड-महोबा ये तुलनात्मक दृष्टि से दिल्ली की अपेक्षा सभी बातों में बड़े थे। कन्नौज नरेश जयचंद राठौड़ अपने विशाल राज्य से संतुष्ट नहीं था। उसकी नंजरें दिल्ली पर लगी हुई थीं। गुजरात पर चालुक्य वंशीय सोलंकियों की अधिसत्ता थी। दिल्ली उसको भी चाहिए थी। दिल्ली के महाराज थे, अनंगपाल तोमर’
एक गीतकार ने कहा ही है,
इस चरित्र ग्रंथ में संक्षेप में उन्हीं का जीवन-वृत्तान्त पाठकों की सेवा में पेश करने का इरादा है–
कन्नौज के सम्राट महाराज हर्षवर्धन का 647 में स्वर्गवास हुआ। उनके साथ ही उत्तर हिंदुस्तान के एक बलशाली विराट साम्राज्य का अस्त हो गया। तत्पश्चात प्रतिहार, परमार, चंदेल, सोलंकी, राठौड़, चौहान, आदि छोटे-बड़े राज्यों का निर्माण हुआ। उनके राजा आपस में बैर रखते थे। इसी कारण कभी-कभी उनका टकराव हो जाता। बाहर के दुश्मन इस मौके का बराबर लाभ उठाते। भारतमाता ‘स्वर्गभूमि’ के नाम से मशहूर थी। कहा जाता था कि यहां के चूल्हे से निकलने वाला धुआँ भी स्वर्णयुक्त होता है, इसीलिए चंगेजखान, तैमूरलंग, महमूद गजनी आदि ने भारत पर बार-बार आक्रमण किया, अनगिनत लूट-पाट की और अपने देश में ले गए। उन दिनों उनके आक्रमण का उद्देश्य केवल लूटपात करने की हद तक ही सीमित रहता था। उसमें सफलता पाते ही वे अपने देश को लौट आते थे।
नवनिर्मित राज्यों में कन्नौज, गुजरात, बुंदेलखण्ड-महोबा ये तुलनात्मक दृष्टि से दिल्ली की अपेक्षा सभी बातों में बड़े थे। कन्नौज नरेश जयचंद राठौड़ अपने विशाल राज्य से संतुष्ट नहीं था। उसकी नंजरें दिल्ली पर लगी हुई थीं। गुजरात पर चालुक्य वंशीय सोलंकियों की अधिसत्ता थी। दिल्ली उसको भी चाहिए थी। दिल्ली के महाराज थे, अनंगपाल तोमर’
एक गीतकार ने कहा ही है,
‘दिल्ली है दिल हिंदुस्तान का
ये तो तीरथ है सारे जहान का !’
ये तो तीरथ है सारे जहान का !’
वाक्य दिशा में शहाबुद्दीन मुहम्मद गौरी जाल बिछा रहा था। मई 1166 में पृथ्वीराज चौहान का जन्म हुआ और 1192 में अंत, केवल 26 वर्ष
में। बालिग होने से पहले ही युद्ध क्षेत्र में उतरना पड़ा। अंत तक
मैदाने-जंग में उलझे रहने का यह सिलसिला जारी रहा।
पृथ्वीराज बहादुर थे; वीर थे; साहसी थे; स्वाभिमानी थे और अतुलनीय योद्धा थे, पर बचपन में ही युवराज बना दिए गए। दिल्ली और अजमेर को राज्याभिषेक कराया गया। राजपाट का तजुर्बा पर्याप्त मात्रा में मिला नहीं। दाव-पेंच समझे नहीं, मर-मिटने को प्रस्तुत रहने वाले दोस्त थे। सरदार, सेनापति, सैनिक थे किन्तु समय पर मार्गदर्शन करने वाला कोई नहीं मिला। इसी कारण इस गुणवान राजा का अंत हुआ। तराइन के द्वितीय युद्घ में पृथ्वीराज पराजित हुए। परिणामस्वरूप भारत का इतिहास सैंकड़ों वर्षों के लिए बदल गया। बाहरी शक्तियाँ प्रबल हुईं। अपना महान देश गुलामी की श्रृंखलाओं में जकड़ा रहा।...
पृथ्वीराज बहादुर थे; वीर थे; साहसी थे; स्वाभिमानी थे और अतुलनीय योद्धा थे, पर बचपन में ही युवराज बना दिए गए। दिल्ली और अजमेर को राज्याभिषेक कराया गया। राजपाट का तजुर्बा पर्याप्त मात्रा में मिला नहीं। दाव-पेंच समझे नहीं, मर-मिटने को प्रस्तुत रहने वाले दोस्त थे। सरदार, सेनापति, सैनिक थे किन्तु समय पर मार्गदर्शन करने वाला कोई नहीं मिला। इसी कारण इस गुणवान राजा का अंत हुआ। तराइन के द्वितीय युद्घ में पृथ्वीराज पराजित हुए। परिणामस्वरूप भारत का इतिहास सैंकड़ों वर्षों के लिए बदल गया। बाहरी शक्तियाँ प्रबल हुईं। अपना महान देश गुलामी की श्रृंखलाओं में जकड़ा रहा।...
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