नेहरू बाल पुस्तकालय >> संदूक में दुल्हन तथा अन्य कहानियां संदूक में दुल्हन तथा अन्य कहानियांमनोज दास
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रोचक बाल-कथा संग्रह...
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
संग्रह की कथाएं
१. | बोलती गुफा |
२. | संदूक में दुल्हन |
३. | बाघ को जीवित करने वाले |
४. | प्रोफेसर लोमड़ |
५. | सब कुछ अच्छे के लिए होता है |
६. | मुंह की कार्रवाई |
७. | नीला राक्षस |
८. | सोना–और सोना |
९. | एक स्वप्न का रहस्य |
१॰. | व्याकुल राक्षस |
संदूक में दुल्हन
एक शहर के बाहर एक पुराना मंदिर था। वहां हर
रोज सैकड़ों श्रद्धालु आते थे और मूर्ति के सामने फलों, मिठाइयों और सिक्कों की भेंट
चढ़ाते थे।
स्वयं को बहुत होशियार समझने वाले एक नौजवान ने दाढ़ी बढ़ा ली, गेरुआ लिबास पहनना शुरू कर दिया और मंदिर के पास एक कुटिया में रहने लगा। वह अपनी आंखें मूंदकर इस तरह से बैठता था जैसे कि गहरे चिंतन में लगा हो। लेकिन उसने बैठने के लिए ऐसा स्थान चुना ताकि मंदिर आने वाले सभी लोग उसे देख सकें। वह बहुत कम बोलता था।
श्रद्धालु यही कहते, ‘‘अवश्य कोई धर्मात्मा होगा !’’ समय के साथ वहां आने वाले श्रद्धालुओं की यह आदत ही बन गई थी कि वे मंदिर में देवता की पूजा करने के बाद उसके पास आते थे। वे उसे प्रणाम करते और खाने की चीजें और पैसे अर्पण करते थे।
स्वयं को बहुत होशियार समझने वाले एक नौजवान ने दाढ़ी बढ़ा ली, गेरुआ लिबास पहनना शुरू कर दिया और मंदिर के पास एक कुटिया में रहने लगा। वह अपनी आंखें मूंदकर इस तरह से बैठता था जैसे कि गहरे चिंतन में लगा हो। लेकिन उसने बैठने के लिए ऐसा स्थान चुना ताकि मंदिर आने वाले सभी लोग उसे देख सकें। वह बहुत कम बोलता था।
श्रद्धालु यही कहते, ‘‘अवश्य कोई धर्मात्मा होगा !’’ समय के साथ वहां आने वाले श्रद्धालुओं की यह आदत ही बन गई थी कि वे मंदिर में देवता की पूजा करने के बाद उसके पास आते थे। वे उसे प्रणाम करते और खाने की चीजें और पैसे अर्पण करते थे।
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