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मुद्राराक्षस संकलित कहानियां

मुद्राराक्षस

प्रकाशक : नेशनल बुक ट्रस्ट, इंडिया प्रकाशित वर्ष : 2008
पृष्ठ :203
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 7243
आईएसबीएन :978-81-237-5335

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कथाकार द्वारा चुनी गई सोलह कहानियों का संकलन...

टिप्पणी


उस आदमी का इसके बाद वाला संवाद ही वह कथाबीज है जिसे लेकर यह कहानी लिखने की तैयारी हुई। वह संवाद कितना महत्त्वपूर्ण है यह आप खुद सोच सकते हैं।

कथाबीज बननेवाला संवाद


तीन पहिएवाली इस खिलौना साइकिल को हसरत से देखते हुए उसने कहा, “क्या बताऊं यार, बहुत दिन से इसकी तलाश में था। बच्चे साइकिल की जिद किए हुए थे। मैंने कहा था, साइकिल आ गई है, रईस के यहां ठीक हो रही है। पर बच्चे अब कहने लगे थे कि अब्बा बड़े झूठे हैं। और क्या कहूं यार, बीबी ने तो उससे ही इनकार कर रखा था।" कहकर उसने राज़ के साथ आंख मारी।

पार्क का माली हरिराम बोला, "इफ्तखार से जुड़वाना। बढ़िया वेल्डिंग करता है।"

“नहीं जी, रईस अपना यार है। उसी से वेल्डिंग कराऊंगा। रंग कर देगा फिर देखना।"

इसी बीच की एक और घटना

इस नई बसी साफ-सुथरी कालोनी के उत्तरी सिरे पर सलीके से बने मकानों की पंक्ति में थोड़ा बिखराव आ गया है। दो मकान तो खासे आड़े-तिरछे हो गए हैं क्योंकि इनके बीच इस्माइलगंज नाम के एक गांव के अवशेष हैं।

दोनों आड़े-तिरछे मकानों के बीच एक पुराना मंदिर है। यहां से शुरू होकर समूचे बी ब्लाक की मुख्य सड़क पर हर बुधवार को एक बाजार लगता है। जब यहां यह कालोनी नहीं बसी थी उन दिनों इस बाजार में मवेशी भी बिकते थे और कोई चर्खवाला झूला भी लगा लेता था।

बाजार आज भी लगता है और शायद पहले से ज्यादा बड़े पैमाने पर। अब यहां पहले की तरह पुराने फिल्मी गानों के बजाय दुकानदारों और खरीदारों का शोर होता है। चमकीले सस्ते कपड़ों की दुकानें ज्यादा होती हैं। यहां आनेवाले खरीदार को लगता है कि वह दुकानदार को ठग रहा है और दुकानदार को विश्वास होता है कि वह खरीदार की जेब काट रहा है। पर सच यह है कि एक-दूसरे को ठगने की कोशिश करते वे दोनों ही किसी तीसरे के द्वारा ठगे जा रहे होते हैं।

पिछले तीन बुधवारों से हमारे लिए एक असुविधाजनक बात हो गई थी। हमारे मकान के फाटक के बाहर जो खुली जगह मोटर निकालने के लिए पक्की कर दी गई थी वहां एक लंबा दुबला आदमी रुमाल, तौलिए और तकिए के गिलाफ की दुकान लगाने लग गया था।

गोकि उससे हमें खास असुविधा नहीं थी पर हमें अपने फाटक के सामने की इस जगह के ऐसे अनधिकृत प्रयोग पर गुस्सा आने लगा था।

पिछले बुधवार उसे हमने टोका तो उसने अपना सामान थोड़ा-सा किनारे खिसका लिया लेकिन थोड़ी ही देर में दुकान फिर अपनी जगह आ गई।

हमने घर के अंदर इस स्थिति पर गंभीरता से विचार किया। उस आदमी से सीधे भिड़ना हमें ठीक नहीं लगा। मेरी बीवी ने उसकी लंबी मूंछे और दाढी के बढे हए बाल गौर से देखे थे और उसका खयाल था कि यह आदमी जरूर दिन में तौलिए बेचता है पर रात में डकैती डालता होगा।

इसलिए हमने चुपचाप बाजार में तैनात किसी सिपाही की मदद लेने का फैसला किया। पलिस के सिपाही की तलाश में उस भीड़भरे बाजार से गजरते हुए ही मैंने एक खास घटना देखी।

सारे बाजार को उलझन में डालती हुई एक बहुत ऊंची आवाज किसी औरत के चीख-चीखकर रोने की गूंजी।

बिना सलीके के बहुत पुरानी लेकिन सावधानी से धोई बारीक नायलोन की पीली साड़ी पहने नंगे पैर एक कमउम्र, काली, दुबली औरत सिर पर हाथ मारती हई चीख-चीखकर रोती मेरी तरफ आई फिर फुटपाथ की तरफ मुड़ गई। उसके पीछे-पीछे दो सहमे हुए छोटे बच्चे भी दौड़ रहे थे।

मैं समझा, उसका कोई बच्चा खो गया। पर उसके पीछे आई दो औरतों ने किसी की जिज्ञासा के जवाब में बताया कि उसकी एक पायल कहीं गिर गई थी।

अब मैंने ध्यान दिया कि उसके एक टखने में बहुत हल्की चांदी की पतली जंजीर थी, दूसरे में गायब थी। मुश्किल से चालीस या पचास रुपए की कीमतवाली। इसी चालीस-पचास रुपये की एक पायल के खो जाने पर वह इस तरह रो रही थी जैसे किसी प्रियजन की मृत्यु हो गई हो।

कथाएं संभावनाएं

यह औरत इनमें से किसी भी चरित्र की बीवी हो सकती है। तीन पहिएवाली टूटी साइकिल लानेवाले आदमी की बीवी या हरिराम की, नंदलाल की अथवा माली की। यूसुफ मियां की भी।

सच तो यह है कि इनमें से सभी की वीवियां लगभग ऐसी ही हैं। वे सभी एक सस्ती पायल खोने पर इसी तरह चीत्कार करेंगी। क्योंकि इस खबर के बाद हरिराम भी ज्यादा शराब पिएगा और यूसुफ भी, नंदलाल भी और रियाज भी। ज्यादा शराव पिएगा तो बीवी को ज्यादा पीटेगा। वैसे बीवी पिटने के डर से नहीं रोती। इसलिए रोती है कि जिंदगी में जिसे अपनी सबसे प्रिय चीज समझती है वह खो गई है।

कहानी जारी रखने की जरूरत

इस सबके बाद जब इस कहानी को आगे बढ़ाना चाहें तो आपका भी ध्यान जाएगा कि यूसुफ मियां आज नहीं आए। कहां रह गए? क्यों नहीं आए?

किसी कहानी में जो भी पात्र आते हैं उनके वहां होने का तर्क जरूरी होता है। उनमें से कोई न हो तो भी पता होना जरूरी होता है कि ऐसा क्यों हुआ। यूसुफ मियां क्यों नहीं आए होंगे?

कहानी में यूसुफ मियां कौन हैं

एक यूसुफ मियां बचपन में उर्दू पढ़ाने आया करते थे। उनका काफी ऊंचा लेकिन बहुत मैला हुक्का और टूटकर झूला बन गई मूंज की नंगी चारपाई मुझे आज भी याद है।

देश का बंटवारा होने के बाद उन्होंने मुझसे हिन्दी पढ़नी शुरू की थी। थोड़े दिनों दिनों बाद उनकी हत्या हो गई थी। हत्या उन्हीं के बेटों ने की थी क्योंकि उनका खयाल था कि यूसुफ मियां ने बहुत-सा धन खेत बेचकर इकट्ठा किया था और उसे कहीं छुपा लिया था। जबकि सच यह है कि उनके खेत पटवारी ने किसी और के नाम चढ़ा दिए थे। पिता की हत्या के बाद तीनों बेटे कहीं गायब हो गए और दुबारा कभी वापस नहीं आए। यूसुफ मियां का घर बहुत दिनों तक धीरे-धीरे गिरता रहा। हर बारिश में।

एक दूसरे यूसुफ मियाँ वे हैं जो ऊपर बताए बाजार में नंदलाल के सैलून के सामने बैठते हैं, कई तरह के साग लेकर। उनके साग बहुत ताजे और साफ-सुथरे होते हैं।

आज वे नहीं आए। क्यों नहीं आए?

एक तीसरे यूसुफ मियां भी हैं।

टिप्पणी

किसी कहानी में आया चरित्र कभी-कभी कई दूसरे चरित्रों को मिलाजुलाकर भी बनता है।

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