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मुद्राराक्षस संकलित कहानियां

मुद्राराक्षस

प्रकाशक : नेशनल बुक ट्रस्ट, इंडिया प्रकाशित वर्ष : 2008
पृष्ठ :203
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 7243
आईएसबीएन :978-81-237-5335

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कथाकार द्वारा चुनी गई सोलह कहानियों का संकलन...

उपसंहार


नंदलाल के सैलून के सामने साग बेचनेवाले यूसुफ मियां इसीलिए नहीं आए थे उस दिन। वे नहीं आए थे क्योंकि प्रधानमंत्री के पीनेवाले पानी को देखते हुए वे प्यास से मर गए थे। ये यूसफ मियाँ वल्द अख्तर ही थे, सरकारी फाइलवाले यूसुफ वल्द हनीफ नहीं। तीन पहिएवाली साइकिल बन जाने से खुश, बच्चों को साथ लेकर प्रधानमंत्री का पानी देखने गए थे।

मगर मैं इस कहानी को यूसुफ वल्द हनीफ की तरफ मोड़ना चाहता हूं ओर यकीन दिलाना चाहता हूं कि भीड़ में सिर पर दुहत्थड़ मारकर चीत्कार कर उठनेवाली औरत उनकी बीवी नहीं कोई और थी और वह सचमुच पायल खोने पर रोई थी, खाविंद खोने पर नहीं। मैं यह भी विश्वास दिलाना चाहता हूं कि यूसुफ मियां आज इसलिए नहीं आए कि वे उसी तीन पहिएवाली साइकिल को ठीक कराकर बीवी-बच्चों के साथ सैर पर निकल गए थे। वैसे भी शहर के दक्षिण की तरफ जो सड़क दूर तक चली गई है उसकी धुंध के जाले को फाड़कर कुछ क्षणों के लिए जो साइकिल-सवार प्रकट होता है उसे पहचाना भी कहां जा सकता है!

विस्थापित

उसने नीचे झुककर अपनी पोशाक पर नजर डाली और थूका। संतुष्ट होने पर वह थूकता था। पोशाक कोई खास नहीं थी। दरअसल उसने थोड़ी देर पहले अपनी बदरंग पतलून के घुटने पर एक थिगली लगाई थी। उठने के बाद वह इस बात का इत्मीनान कर लेना चाहता था कि वह थिगली जहां की तहां जमी हुई है। थिगली वहीं थी। ऊंचू तांगे वाले ने उसे बताया था कि ट्रेन आ गई है। उसने अविश्वास जहिर किया। ट्रेन का वक्त उसे मालूम था। सभी ट्रेनों का वक्त उसे मालूम था। तांगा आगे बढ़ाते हुए ऊंचू ने ललकारकर दुबारा कहा, “सच कौए, एक ट्रेन आई है।"

कौआ हर ट्रेन के आने और छूटने की खबर रखता था। सिर्फ पांच ट्रेनें आती थीं। उनमें से एक आधी रात की ट्रेन की चिंता वह नहीं करता था। बहुत सुबह से लेकर शाम तक की ट्रेनों से उसका गहरा रिश्ता हो गया था। ट्रेन कहां से आती है और कहां जाती है, इसके बार में जानने की जरूरत उसने महसूस नहीं की। वैसे उसे नफरत सिर्फ सुबह वाली ट्रेन से होती थी, जो रुकती ज्यादा थी और स्टेशन से रवाना होती थी तो बेतरह बदबूदार गंदगी छोड़ जाती थी।

ट्रेन सचमुच ही आ गई थी। स्टेशन पर काफी भाग-दौड़ थी। लेकिन यह ट्रेन जाने क्यों उसे पहली नजर में ही सुबह वाली ट्रेन से भी ज्यादा घटिया लगी। वह लपककर प्लेटफॉर्म पर आ गया। वह अजीब बेहूदा ट्रेन थी। अंदर बेहद भीड़ थी। पहली नजर में ऐसा लग रहा था, जैसे किसी जानवर की लाश में कीड़े पड़ गए हों। ट्रेन के बाहर खाकी वर्दी वाले लोग बड़ी तादाद में बेहद चुस्ती के साथ दौड़-धूप कर रहे थे। इन लोगों को वह आसानी से पहचान गया और उसने मन ही मन निश्चय किया कि उनसे वह एक सुरक्षित दूरी बनाए रखेगा।

हालांकि उस स्टेशन पर ज्यादा लोग वैसे भी नहीं उतरते थे, मगर कौए को यह देखकर काफी ताज्जुब हुआ कि इस ट्रेन में जितने थे, सब आगे जाने वाले ही थे। उसका हाथ प्लेटफॉर्म पर आते हुए बिल्कुल तैयार हो चुका था, लेकिन उसने थोड़ी देर के लिए उसे दुबारा जेब में घुसा लिया। आम तौर पर वह चोरी या जेबकतरी नहीं करता था, मांग लेता था। खाने-पीने की चीजें उचक लेता था। इससे ज्यादा में उसकी रुचि नहीं थी।

वैसे तो कोई बात नहीं थी, अक्सर ऐसा हो जाता था कि ट्रेन के आने पर उसे कुछ हासिल न हो, लेकिन इस ट्रेन को एक बार देखकर ही उसे चिढ़ महसूस होने लगी। एक तो खाकी वर्दी वाले ये लोग कुछ दूसरी किस्म के थे, यानी चौराहे के आसपास गश्त लगाने वाले सिपाही से अलग। उस गश्त वाले सिपाही से तो कभी बातचीत भी की जा सकती थी, पर इन्हें देखकर ऐसा लग रहा था, जैसे ये आदमी न होकर ऐसे खाकी थैले हों, जिनके अंदर मशीनें फिट कर दी गई हों। इसके अलावा यात्री बिल्कुल घटिया लग रहे थे। उनके चेहरों से लग रहा था कि न उन्हें कहीं से आने का एहसास है, न कहीं पहुंचने की ख्वाहिश।

एक तो ट्रेन का बेवक्त आना और दूसरे यह माहौल। कौए का मन खट्टा हो गया। उसने झुककर पतलून की थिगली को देखा और थूका। अभी उसने अपने आप को सीधा किया ही था कि एक अजीब भय उसके कंधों को हिला गया। किसी ने पीछे से कॉलर के पास से उसकी कमीज खींची और ऊंची आवाज में कहा, “एई!"

कौए ने घूमकर देखा। उन्हीं खाकी वर्दी वालों में से कोई एक था। वह डर गया। तभी एक और खाकी वर्दी वाला आदमी उधर दौड़ता हुआ आया, “सर, ये आदमी..."

"ये ट्रेन से बाहर कैसे आ गया? अंदर करो!" कमीज से पकड़ने वाले ने उसे दूसरे की ओर जोर से धकेल दिया।

"लेकिन मैं...जनाब...!" कौए ने कुछ कहना चाहा।

"हएष!" दूसरा दहाड़ा और उसे लगभग घसीटता हुआ ट्रेन की ओर ले चला। ट्रेन के पास वैसे ही दो और आदमी थे। उन्होंने उसे किसी सूअर की तरह दोनों बांहों से लटकाया और ट्रेन के डब्बे के अंदर झोंक दिया। डब्बे के अंदर पहुंचकर वह बड़ी फुर्ती के साथ उठ खड़ा हुआ। दो क्षण अपने को संभालने के बाद उसने निश्चय किया कि वह प्रतिवाद जरूर करेगा, लेकिन ठीक उसी क्षण उसकी पिंडली के पास किसी ने इतने जोर से चिकोटी काटी कि वह लगभग उछल पड़ा। उसकी टांगों के ठीक नीचे लगभग दस बरस का एक मैला-सा लड़का बैठा हुआ अपने पैर का पंजा सहला रहा था। कौए का मोटा-सा जूता शायद उसके पंजे पर पड़ गया था। लड़के का चेहरा एकदम काला था और उस पर मैल की परत चढ़ी हुई थी। पंजा सहलाते हुए वह अपनी सफेद पुतलियां फाड़-फाड़कर कौए को घूरे जा रहा था।

"तूने मुझे चिकोटी काटी!" कौए ने खीझकर कहा। लड़के ने जवाब नहीं दिया, बल्कि इस बार अपने छिपकली जैसे पंजे बढ़ाकर उसने कौवे की पतलून पकड़ी और पहले से भी ज्यादा जोर से दांतों से काट खाया। कौआ तिलमिलाकर गालियां बकने लगा। लड़का फिर अपना पंजा सहलाने में व्यस्त हो गया। गालियां दे चुकने के बाद उसने ट्रेन के उस डब्बे में निगाह डाली। उसे अजीब लगा कि उस समूचे डब्बे में लोग इस तरह असंपृक्त बैठे हुए थे, जैसे कौए का वहां वजूद ही न हो।

“ये किसका छोकरा है?" कौए ने चिड़चिड़ाहट के साथ पूछा। जवाब तो दूर, लोगों ने शायद उसकी आवाज भी नहीं सुनी।

डब्बे के उस मनहूस वातावरण से वह बड़ी जल्दी परिचित हो गया। उत्सुकतावश उसने बारीकी से लोगों के चेहरे देखने शुरू किए। उसे लगा, जैसे उन चेहरों पर से खाल उतार ली गई है। वह कुछ समझ नहीं पाया। डब्बे से बाहर जाया जा सकता है या नहीं, इसका अंदाजा करने में उसे जो समय लगा, उस बीच एक और घटना हो गई। डब्बे के अंदर तेजी के साथ एक के बाद एक कई आदमी चढ़े, जिनके हाथो में भारी-भारी टोकरियां थीं। इन टोकरियों में खाने-पीने की कई चीजें थीं। आखिरी आदमी की टोकरी भारी थी। कौए को उसने डपटा, "वहां क्या खड़े हो, पकड़ो इसे!"

कौए को इससे ज्यादा और किसी चीज की जरूरत भी नहीं थी। उसने टोकरी को लपककर थाम लिया। उसमें काफी नर्म डबल रोटियां थीं। एक डबल रोटी उसने उड़ा दी। लेकिन उसे यह देखकर ताज्जुब हुआ कि वह सामान डब्बे में बैठे लोगों में बांटा जाने लगा।

डब्बे के अंदर नाहक धकेले जाने का गुस्सा वह भूल गया। वैसे उसने यह कोशिश की कि चाय वह दुबारा ले ले, लेकिन चाय देने वाले ने उसे पहचान लिया। कौआ निराश नहीं हुआ। डबलरोटियां बांटने में उसने खुद मदद शुरू कर दी। इस काम में उसे तीन हिस्से और फालतू मिल गए। वह चाहता था कि बच्चों के लिए बंटने वाले बिस्कुट भी उड़ा ले, लेकिन उनमें उसका बस नहीं चला। जिस छोकरे ने उसे दांत से काटा था, वह बिस्कुटों का छोटा-सा पैकेट ऊपर लगी झिल्ली के साथ ही खाने लगा। कौआ उसे गौर से घूर रहा था। छोकरा खुद भी सफेद पुतलियां फैलाकर उसे देख रहा था। कौए ने हाथ बढ़ाकर छोकरे को बताना चाहा कि वह बिस्कुट झिल्ली सहित न खाए। लड़के ने अचानक एक चीख मारी और सीट के नीचे की ओर किसी चिड़चिड़े जानवर की तरह सरक गया।

कौए ने उधर से ध्यान हटा लिया। वह चुराई हुई डबलरोटी वहां नहीं खाना चाहता था। दरवाजे तक आकर उसने बाहर नजर डाली। खाकी वर्दी वाले लोग वहां से थोड़ी दूर पर थे। वह उनके सामने प्लेटफॉर्म पर नहीं उतरना चाहता था। अजीब बेसुरी-सी सीटी बजाता वह नीचे उतरा। वर्दीधारी आदमी उसे नीचे देखते ही चिल्लाया। इस बार कौए ने उसे धक्का देने का मौका नहीं दिया, खुद ही लपककर डब्बे में आ गया। उसके पीछे-पीछे उन्हीं खाकी वर्दी वालों में से एक अंदर आया, चुपचाप डब्बे में नजर डाली और दरवाजे को घेरकर खड़ा हो गया। बाहर जाने का रास्ता इस तरह घिरा देखकर वह कुढ़ गया। थोड़ा सोचकर उसने साहस समेटा और निश्चय किया कि कुछ भी हो, वह इस मामले पर बात करेगा। खाकी वर्दी वाले की ओर वह सरका ही था कि उसकी निगाह देखकर ठिठक गया। फिर थोड़ा-सा मुस्कुराया। उसे कुछ ऐसा लगा, मुस्कुराहट काफी नहीं थी। इसलिए वह थोड़ा-सा हंसा भी। हंसने के बाद उसने कहा, "जनाब, नमस्कार!"

"क्या है जी?" वर्दी वाले ने चिढ़कर पूछा।

इसके उत्तर में वह क्या बोले, यह सोच नहीं पाया। थोड़ा गंभीर होते हुए उसने कहा, "बात यह है कि...मेरा मतलब है, इस डब्बे में काफी भीड़ है और मेरा मतलब है, ट्रेन तो अब चल भी देगी..."

"तो फिर?" वर्दी वाला दुबारा गुर्राया।

"ओह! नहीं, वो मेरा मतलब है..."

"तुम सीधे से बैठते क्यों नहीं हो जी?" वर्दी वाले ने इस बार बेहद खीझ के साथ कहा। कौवा खामोश होकर दो कदम पीछे खिसका। फिर उसे ध्यान आया कि ठीक उसके पीछे वही पाजी छोकरा बैठा है। कौवे के उधर देखते ही छोकरे ने छिपकली जैसे दोनों पंजे आगे बढ़ाकर जबड़ा फैलाया। कौए ने सहमकर टांग पीछे खींच ली।

उसके सामने वाली सीट के आखिरी सिरे पर थोड़ी-सी हलचल हुई। एक बहुत दुबली-सी लड़की जैसे चौंकी। चौंककर उसने अपनी सिमटी हुई बांहों और घुटनों की गठरी थोड़ी-सी ढीली की। गठरी के अंदर एक नन्हा-सा बच्चा था। लड़की के पास बैठा हुआ बूढ़ा उसकी ओर झुककर देखने लगा। लड़की थोड़ी देर बच्चे को देखती रही, फिर उस पर लिपटा हुआ मैला कपड़ा खोलने लगी।

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