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जीवनी/आत्मकथा >> तात्या टोपे

तात्या टोपे

सुन्दरलाल श्रीवास्तव

प्रकाशक : नेशनल बुक ट्रस्ट, इंडिया प्रकाशित वर्ष : 2009
पृष्ठ :86
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 7248
आईएसबीएन :978-81-237-2529

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1857 के विद्रोह की तूफानी घटनाओं के दौरान महान् सैनिक नेताओं में से एक, जो आज किंवदंती बन गए हैं...

Tatya Tope - A Hindi Book - by Sundarlal Srivastava

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

तात्या टोपे, जो ‘तांतिया टोपी’ के नाम से विख्यात हैं, 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के उन महान् सैनिक नेताओं में से एक थे, जो प्रकाश में आए। 1857 तक लोग इनके नाम से अपरिचित थे, लेकिन 1857 की नाटकीय घटनाओं ने उन्हें अचानक अंधकार से प्रकाश में ला खड़ा किया। इस महान् विद्रोह के प्रारंभ होने से पूर्व वह राज्यच्युत पेशवा बाजीराव द्वितीय के सबसे बड़े पुत्र, बिठूर के राजा नाना साहब के एक प्रकार के साथी-मुसाहिब मात्र थे, किंतु स्वतंत्रता संग्राम में कानपुर के सम्मिलित होने के पश्चात् तात्या पेशवा की सेना के सेनाध्यक्ष की स्थिति तक पहुंच गए। उसके पश्चात्वर्ती युद्धों की सभी घटनाओं ने उनका नाम सबसे आगे एक पुच्छल तारे की भांति बढ़ाया, जो अपने पीछे प्रकाश की एक लंबी रेखा छोड़ता गया। उनका नाम केवल देश में ही नहीं वरन् देश के बाहर भी प्रसिद्ध हो गया। मित्र ही नहीं, शत्रु भी उनके सैनिक अभियानों को जिज्ञासा और उत्सुकता से देखने और समझने का प्रयास करते थे, समाचार-पत्रों में उनके नाम के लिए विस्तृत स्थान उपलब्ध था, उनके विरोधी भी उनकी काफी प्रशंसा करते थे। उदाहरणार्थ, कर्नल माल्सन ने उनके संबंध में कहा है, ‘‘भारत में संकट के उस क्षण में जितने भी सैनिक नेता उत्पन्न हुए, वह उनमें सर्वश्रेष्ठ थे।’’ सर जॉर्स फॉरेस्ट ने उन्हें ‘सर्वोत्कृष्ट राष्ट्रीय नेता’ कहा है जबकि आधुनिक अंग्रेजी इतिहासकार पर्सीक्रॉस स्टेडिंग ने सैनिक क्रांति के दौरान देशी पक्ष की ओर से उत्पन्न ‘विशाल मस्तिष्क’ कहकर उनका सम्मान किया। उसने उनके विषय में यह भी कहा है कि ‘‘वह विश्व के प्रसिद्ध छापामार नेताओं में से एक थे।’’
1857 के दो विख्यात वीरों-झांसी की रानी और तात्या टोपे में से झांसी की रानी को अत्यधिक ख्याति मिली। उनके नाम के चारों ओर यश का चक्र बन गया, किंतु तात्या टोपे के साहसपूर्ण कार्य विजय अभियान रानी लक्ष्मीबाई के साहसिक कार्यों और विजय अभियानों से कम रोमांचक नहीं थे। रानी लक्ष्मीबाई के युद्ध-अभियान जहां केवल झांसी, कालपी और ग्वालियर के क्षेत्रों तक सीमित रहे थे, वहां तात्या एक विशाल राज्य के समान कानपुर के राजपूताना और मध्य भारत तक फैल गए थे। कर्नल ह्यूरोज–जो मध्य भारत युद्ध-अभियान के सर्वेसर्वा थे-ने यदि रानी लक्ष्मीबाई की प्रशंसा ‘उन सभी में सर्वश्रेष्ठ वीर’ के रूप में की थी तो मेजर मीड को लिखे एक पत्र में उन्होंने तात्या टोपे के विषय में यह कहा था कि वह ‘‘महान् युद्ध नेता और बहुत ही विप्लवकारी प्रकृति के थे और उनकी संगठन क्षमता भी प्रशंसनीय थी।’’ तात्या ने अन्य सभी नेताओं की अपेक्षा शक्तिशाली ब्रिटिश शासन की नींव को हिलाकर रख दिया था। उन्होंने शत्रु के साथ लंबे समय तक संघर्ष जारी रखा। जब स्वतंत्रता-संघर्ष के सभी नेता एक-एक करके अंग्रेजों की श्रेष्ठ सैनिक-शक्ति से पराभूत हो गए तो वे अकेले ही विद्रोह की पताका फहराते रहे। उन्होंने लगातार नौ मास तक उन आधे दर्जन ब्रिटिश कमांडरों को छकाया जो उन्हें पकड़ने की कोशिस कर रहे थे। वे अपराजेय ही बने रहे। यह तो विश्वासघात था जिसके कारण अंग्रेज उन्हें अंत में पकड़ पाए।
इस महान् देशभक्त की उपलब्धियां इतिहास के पन्नों पर स्वर्णाक्षरों से लिखी गई हैं। उनके शौर्य की गाथा महानता और संघर्ष से भरी हुई है और उतनी ही रोमांचक और उत्प्रेरक है जितनी कि इस स्वाधीनता संघर्ष की।

कृश्नचंदर

अनुक्रम


१. शौर्यगाथा
२. गुमनामी से प्रसिद्धि की ओर
३. भावी तूफान
४. ज्वालामुखी के मुंह पर
५. कानपुर में विद्रोह
६. तात्या  - सैनिक सलाहकार के रूप में
७. तात्या -  सेनाध्यक्ष के रूप में
८. मेराथन दौड़
९. तात्या की गिरफ्तारी और प्राणदंड
१॰. अंत और प्रारंभ


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