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ओशो साहित्य >> भक्ति सूत्र

भक्ति सूत्र

ओशो

प्रकाशक : डायमंड पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2009
पृष्ठ :483
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 7283
आईएसबीएन :978-81-288-2066

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भक्ति यानी दो व्यक्तियों के बीच का प्रेम नहीं, व्यक्ति और समाष्टि के बीच का प्रेम...

Bhakti Sutra - A Hindi Book - by Osho

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

इस सदी की सबसे बड़ी तकलीफ यही है कि उसके सौंदर्य का बोध खो गया है और हम लाख उपाय करते हैं कि सिद्ध करने के कि वह नहीं है। और हमें पता नहीं कि जितना हम सिद्ध कर लेते हैं कि वह नहीं है, उतना ही हम अपनी ही ऊंचाइयों और गहराइयों से वंचित हुए जा रहे हैं।
परमात्मा को भुलाने का अर्थ अपने को भुलाना है। परमात्मा को भूल जाने का अर्थ अपने को भटका लेना है। फिर दिशा खो जाती है। फिर तुम कहीं पहुँचते मालूम नहीं पड़ते। फिर तुम कोल्हू के बैल हो जाते हो, चक्कर लगाते रहते हो।
आंखें खोलो ! थोड़ा हृदय को अपने से ऊपर जाने की सुविधा दो। काम को प्रेम बनाओ। प्रेम की भक्ति बनने दो। परमात्मा से पहले तृप्त होना ही मत। पीड़ा होगी बहुत। विरह होगा बहुत। बहुत आंसू पड़ेंगे मार्ग में। पर घबराना मत। क्योंकि जो मिलने वाला है उसका कोई भी मूल्य नहीं है। हम कुछ भी करें, जिस दिन मिलेगा उस दिन हम जानेंगे, जो हमने किया था वह ना-कुछ था। तुम्हारे एक-एक आंसू पर हजार-हजार फूल खिलेंगे। और तुम्हारी एक-एक पीड़ा हजार-हजार मंदिरों का द्वार बन जाएगी। घबराना मत।
जहां भक्तों के पैर पड़ें, वहां काबा बन जाता है।

भक्ति-सूत्र : एक झरोखा



भक्ति यानी प्रेम–ऊर्ध्वमुखी प्रेम।
भक्ति यानी दो व्यक्तियों के बीच का प्रेम नहीं, व्यक्ति और समाष्टि के बीच का प्रेम।
भक्ति यानी सर्व के साथ प्रेम में गिर जाना। भक्ति यानी सर्व को आलिंगन करने की चेष्टा। और, भक्ति यानी सर्व को आमंत्रण कि मुझे आलिंगन कर ले !
भक्ति कोई शास्त्र नहीं है–यात्रा है।
भक्ति कोई सिद्धांत नहीं है–जीवन-रस है। भक्ति को समझ कर कोई समझ पाया नहीं। भक्ति में डूब कर ही कोई भक्ति के राज को समझ पाता है।

नाद कहीं ज्यादा करीब है विचार से। गीत कहीं ज्यादा करीब है गद्य से। हृदय करीब है मस्तिष्क से।
भक्ति-शास्त्र शास्त्रों में नहीं लिखा है–भक्तों के हृदय में लिखा है।
भक्ति-शास्त्र शब्द नहीं सिद्धांत नहीं, एक जीवंत सत्य है।
जहां तुम भक्त को पा लो, वहीं उसे पढ़ लेना; और कहीं पढ़ने का उपाय नहीं है।
भक्ति बड़ी सुगम है लेकिन जिनकी आँखों में आंसू हों, बस उनके लिए !

ओशो

देवर्षि नारद


...नारद का व्यक्तित्व अगर ठीक से समझा जा सके तो दुनिया में एक नये धर्म का आविर्भाव हो सकता है
–एक ऐसे धर्म का जो संसार और परमात्मा को शत्रु न समझे, मित्र समझे
–एक ऐसे धर्म का, जो जीवन-विरोधी न हो, जीवन-निषेधक न हो, जो जीवन को अहोभाव, आनंद से स्वीकार कर सके
–एक ऐसे धर्म का, जिसका मंदिर जीवन के विपरीत न हो, जीवन की गहनता में हो !
कहा जाता है कि नारद ढाई घड़ी से अधिक एक जगह नहीं टिकते।
क्या टिकता है ?
ढाई घड़ी बहुत ज्यादा समय है।
कुछ भी टिकता नहीं है।
डबरे टिकते हैं, नदियां तो बही चली जाती हैं।
नारद धारा की तरह हैं।
बहाव है उनमें।
प्रवाह है, प्रक्रिया है, गति है, गत्यात्मकता है।

ओशो

अनुक्रम


१. परम प्रेमरूपा है भक्ति
२. स्वयं को मिटाने की कला है भक्ति
३. बड़ी संवेदनशील है भक्ति
४. सहजस्फूर्त अनुशासन है भक्ति
५. कलाओं की कला है भक्ति
६. प्रसादस्वरूपा है भक्ति
७. योग और भोग का संगीत है भक्ति
८. अनंत के आंगन में नृत्य है भक्ति
९. हृदय का आंदोलन है भक्ति
१॰. परम मुक्ति है भक्ति
११. शून्य की झील में प्रेम का कमल है भक्ति
१२. अभी और यहीं है भक्ति
१३. शून्य का संगीत है प्रेमा-भक्ति
१४. असहाय हृदय की आह है प्रार्थना-भक्ति
१५. हृदय-सरोवर का कमल है भक्ति
१६. उदासी नहीं–उत्सव है भक्ति
१७. कान्ता जैसी प्रतिबद्धता है भक्ति
१८. एकांत के मंदिर में है भक्ति
१९. प्रज्ञा की थिरता है मुक्ति
२॰. अहोभाव, आनंद, उत्सव है भक्ति


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