लोगों की राय

ओशो साहित्य >> संभोग से समाधि की ओर

संभोग से समाधि की ओर

ओशो

प्रकाशक : डायमंड पब्लिकेशन्स प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :440
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 7286
आईएसबीएन :9788171822126

Like this Hindi book 4 पाठकों को प्रिय

248 पाठक हैं

संभोग से समाधि की ओर...


और सवाल यह नहीं है कि जहां हम ठहरे थे उसे हमने सुंदर किया था, जहां हम रुके थे वहां हमने प्रीतिकर हवा पैदा की थी, जहां हम दो क्षण को ठहरे थे वहां हमने आनंद का गीत गाया था। सवाल यह नहीं है कि वहां आनंद का गीत हमने गाया था। सवाल यह है कि जिसने आनंद का गीत गाया था, उसने भीतर आनंद के और बड़ी संभावनाओं के द्वार खोल लिए। जिसने उस मकान को सुंदर बनाया था, उसने और बड़े सौंदर्य को पाने की क्षमता उपलब्ध कर ली है। जिसने दो क्षण उस वेटिंग रूम में भी प्रेम के बिताए थे, उसने और बड़े प्रेम को पाने की पात्रता अर्जित कर ली है।

हम जो करते हैं उसीसे हम निर्मित होते हैं। हमारा कृत्य अंततः हमें निर्मित करता है, हमें बनाता है। हम जो करते हैं वही धीरे-धीरे हमारे प्राण और हमारी आत्मा का निर्माता हो जाता है। जीवन के साथ हम क्या कर रहे हैं इस पर निर्भर करेगा कि हम कैसे निर्मित हो रहे हैं। जीवन के साथ हमारा क्या व्यवहार है, इस पर निर्भर होगा कि हमारी आत्मा किन दिशाओं में यात्रा करेगी, किन मार्गों पर जाएगी, किन नए जगतों की खोज करेगी।

जीवन के साथ हमारा व्यवहार हमें निर्मित करता है-यह अगर स्मरण हो, तो शायद जीवन को असार, व्यर्थ मानने की दृष्टि हमें प्रांत मालूम पड़े; तो शायद हमे जीवन को दुःख-पूर्ण मानने को बात गलत मालूम पड़े, तो शायद हमे जीवन से विरोधी रुख अधार्मिक मालूम पड़े।
लेकिन अब तक धर्म के नाम पर जीवन का विरोध ही सिखाया गया है! सच तो यह है कि अब तक का सारा धर्म मृत्युवादी है, जविनवादी नही। उसकी दृष्टि मैं मृत्यु के बाद जो है, वही महत्वपूर्ण हे, मृत्यु के पहले जो है वह महत्वपूर्ण नहीं है! अब तक के धर्म की दृष्टि मे मृत्यु की पूजा है, जीवन का सम्मान नहीं! जीवन के फूलों का आदर नही, मृत्यु के कुम्हला गए, जा चुके, मिट गए, फूलो की कब्रों की, प्रशंसा और श्रद्धा है!

अब तक का सारा धर्म-चिंतन कहता है कि मृत्यु के बाद क्या है-स्वर्ग. मोक्ष! मृत्यु के पहले क्या है! उससे आज तक के धर्म का जैसे कोई सब हा नहीं रहा है।

और मैं आपसे कहना चाहता हूं कि मृत्यु के पहले जो है, अगर हम उसे ही संभालने में असमर्थ हैं तो मृत्यु के बाद जो है उसे हम संभालने में कभी भी समर्थ नहीं हो सकते। मृत्यु के पहले जो है अगर वही व्यर्थ छूट जाता है, तो मृत्यु के बाद कभी भी सार्थकता की कोई गुंजाइश, कोई पात्रता, हम अपने में पैदा नहीं कर सकेंगे। मृत्यु की तैयारी भी इस जीवन में जो आसपास है, मौजूद है, उसके द्वारा करनी है। मृत्यु के बाद भी अगर कोई लोक है, तो उस लोक मे हमें उसी का दर्शन होगा, जो हमने जीवन में अनुभव किया है और निर्मित किया है। लेकिन जीवन को भुला देने की, जीवन को विस्मरण कर देने की बात ही अब तक कही गई है (मैं आपसे कहना चाहता हूं कि जीवन के अतिरिक्त न कोई परमात्मा है, न हो सकता है।

मैं आपसे यह भी कहना चाहता हूं कि जीवन को साध लेना ही धर्म की साधना है और जीवन में ही परम साच को अनुभव कर लेना मोक्ष को उपलब्ध कर लेने की पहली सीढ़ी है।

जो जीवन को ही चूक जाता है, वेह और सब भी चूक जाएगा, यह निश्चित है।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

Bakesh  Namdev

mujhe sambhog se samadhi ki or pustak kharidna hai kya karna hoga