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विजयी भव

के. जी. वार्षणेय

प्रकाशक : डायमंड पब्लिकेशन्स प्रकाशित वर्ष : 2009
पृष्ठ :167
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 7287
आईएसबीएन :978-81-288-2184

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सपने देखना असामान्य बात नहीं परन्तु सपने साकार कर पाते हैं केवल विजेता...

Vijayi Bhav - A Hindi Book - by K G Varshney

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

अपने जीवन के कुछ प्रेरणादायी संदर्भों को मैंने अंग्रेजी वर्णमाला के 26 अक्षरों से बनी द्विअक्षरीय वर्णावृत्तियों द्वारा विजयमंत्रों के रूप में लिखने का प्रयास किया है। आज के प्रतिस्पर्धात्मक संसार में सकारात्मक सोच एवं तनावमुक्त जीवन हेतु प्रत्येक वर्णावृत्ति ‘विजयमंत्र’ का विस्तृत प्रस्तुतीकरण कुछ पैराग्राफ के माध्यम से एक अलग अध्याय का सृजन कर विशिष्ट महानुभवों द्वारा वर्णित वाक्यों के उद्धरण के साथ किया गया है।

गुस्से पर काबू पाने के लिए ‘डॉक्टर-मरीज का रिश्ता’ भी एक ऐसा अनूठा मंत्र है। इस पुस्तक की विषय वस्तु कॉरपोरेट जगत में मानव संसाधन विकास हेतु तथा जनसाधारण के व्यक्तित्व में निखार हेतु अभिप्रेरणात्मक औजार की तरह उपयोगी हो सकेगी।

हालांकि उद्धृत वाक्यों के प्रस्तुतीकरण तथा उनके लेखकों के फोटो प्रस्तुत करने में पूर्ण सावधानी बरती गयी है फिर भी मानवीय भूल की सम्भावना तो है ही। यदि आप ऐसी कोई भूल पायें तो मैं आपके देवत्व से क्षमा के लिए प्रार्थना करता हूँ।
मूलतः अंग्रेजी में लिखित विषयवस्तु का हिन्दी अनुवाद करने का भरसक प्रयास किया गया है फिर भी सुधार की गुंजाइश हमेशा बनी रहती है–ऐसा मेरा विश्वास है। हिन्दी अनुवाद प्रस्तुत करने का उद्देश्य भावार्थ को पाठकों तक पहुंचाना है न कि शब्दार्थ। सभी बुद्धिजीवियों तथा पाठकगणों से मेरा अनुरोध है कि अनुवाद में यदि कोई त्रुटि रह गई तो उस पर ध्यान न दें। ऐसी त्रुटियों को मेरे ध्यान में लाने के लिए मैं आपका आभारी रहूँगा।

मैं उन सभी का अत्यन्त आभारी हूँ जिन्होंने इस सृजन में किसी भी तरह मेरी सहायता की है। अंग्रेजी मज़मून के संपादन के लिए श्री माइकल पटोले के प्रति तथा हिन्दी अनुवाद हेतु श्री कमलेश महेश्वरी के प्रति मैं कृतज्ञबोध का बयान करता हूँ। इस पुस्तक के विजुलाईजेशन व लेआउट हेतु पी.शिवेन्द्र आर्ट ओ ग्राफिक्स, भोपाल को तथा मेरी कृति के प्रथम प्रकाशन हेतु डायमंड पॉकेट बुक्स को मैं हार्दिक धन्यवाद देता हूँ।
आशा है मेरी यह कृति निश्चित ही पाठकों को विजेता बनायेगी।

-के.जी. वार्ष्णेय


एक या दूसरे लक्ष्य को पाने की ललक हर इंसान में अंतर्निहित होती है। जैसे ही वह एक लक्ष्य को पा लेता है, अगला लक्ष्य उसके लिए तैयार हो जाता है। किसी न किसी लक्ष्य के लिए संघर्ष करते रहना इंसानी अस्तित्व की एक बुनियादी प्रवृत्ति है।

‘‘यदि विचारों को कर्मण्य शक्ति का समर्थन प्राप्त हो तो अच्छे विचारों का बाहुल्य है।’’

विंस्टन चर्चिल

लक्ष्य कुछ भी हो, उसे पाने वाला कोई भी हो, पाने की प्रक्रिया में जो चीज़ बेहद ज़रूरी है वह है ‘कर्मण्यता’। अक्सर देखा जाता है कि हम क्रियान्वयन में ही देरी कर देते हैं। फैसला न ले पाना, आलस्य, हार का डर या कई और भी कारण हो सकते हैं लेकिन यह बिल्कुल सच है कि पहला कदम उठाये बिना अगला कदम संभव नहीं है। बिना कदम उठाये कोई भी अपनी मंजिल तक नहीं पहुँच सकता। ज़ाहिर सी बात है कि मंजिल वह जगह नहीं है जहां कोई पहले से ही खड़ा है।

‘‘सकल पदारथ हैं जग माहीं, करमहीन नर पावत नाहीं।’’

गोस्वामी तुलसीदास

आलस्य एक तरह की हिंसा है। यह एक ऐसी हिंसा है जो किसी विचार को क्रियान्वयन से पहले ही मार देती है। इंसान का दिमाग खूबसूरत विचारों का उद्गम है। हमारे दिमाग में विचार निरंतर आते रहते हैं लेकिन कर्मण्यता के अभाव में वे कार्यान्वित नहीं हो पाते। सुनहरे परिणाम की आशा में सन्निबंध विचार अक्सर अमल में आने से पहले ही आलस्य के कारण नष्ट हो जाते हैं। याद रखिए कि घड़ी हर किसी के लिए एक जैसा समय दर्शाती है। एक दिन के चौबीस घंटों में से न कोई एक क्षण बचा सकता है और न ही एक क्षण ज़्यादा खर्च कर सकता है। अतएव, आलसी मत बनिये और अपने विचारों के कार्यान्वयन हेतु तत्पर रहिये।

‘‘यह मत कहो कि आपके पास पर्याप्त समय नहीं है। आपको भी प्रतिदिन उतने ही घंटे मिलते हैं जितने कि हेलेन केलर, लुई पाश्चर, माइकल एंजेलो, मदर टेरेसा, लियोनार्डो दा विंसी, टामस जेफरसन और आइंस्टाइन को मिले थे।’’

एच. जैक्सन ब्राउन जूनियर

निर्णय न ले पाने की स्थिति विजेताओं के रास्ते की सबसे बड़ी दुश्मन है। ज़्यादातर सरकारी या निजी परियोजनाओं की लागत का आकलन से अधिक बढ़ना’ ‘अनिर्णयात्मकता’ रूपी दुश्मन का एक प्रमाण है। किसी कार्य को पूरा करने में आने वाली बाधाओं से उबरने हेतु निर्णय लेने की क्षमता होना अनिवार्य है। तुरंत निर्णय लेने का गुण विजेताओं के लिए जीत की राह तैयार करता है। निर्णय लेने में हुई देरी अकर्मण्यता को जन्म देती है तथा इससे प्रगति अवरुद्ध होती है।

‘‘ऐसा कोई तरीका कभी ईजाद नहीं किया जा सकता जो कर्म की आवश्यकता को नकार सके।’’

हेनरी फोर्ड

जब तक आप अपना लक्ष्य प्राप्त न कर लें, तब तक हर संभव विकल्प से उसे पाने की कोशिश करते रहिये। आप निश्चित रूप से सफलता का रास्ता ढूंढ़ लेंगे। हमेशा अपनी ऊर्जा को उच्च स्तर पर बनाए रखिये और असंभव को संभव बनाने की हर कोशिश में लगे रहिये।

‘‘मैंने ‘असंभव’ शब्द का उपयोग अत्यंत सावधानी के साथ करना सीखा है।’’

वर्नर वॉन ब्रॉन

असफलता का डर ही निष्क्रियता की सबसे बड़ी वजह है। हर कोई सफल बनना चाहता है। कोई भी कभी असफल नहीं होना चाहता। ऐसे लोग जो असफल होने के डर से कुछ नहीं करते वे काम से मुक्ति पाने के लिए यह निरर्थक मत प्रस्तुत करते हैं कि ‘जब कोई मशीन नहीं चल रही होती है तब उसकी दक्षता सौ फीसदी होती है।’

‘‘आप जो कर सकते हैं या करने की कल्पना करते हैं, उसे करना शुरू कर दीजिए। कार्य करने की निर्भीकता में ही बुद्धिमानी, शक्ति और चमत्कार हैं।’’

गेटे

नतीजों से मत डरिए। याद रखिए कि ‘हारने का डर’ ही आपकी हार का कारण बनता है। अतएव उमंग के साथ आगे बढ़िये और पूरे आत्मविश्वास के साथ जुट जाइये।

पाने का जतन कीजिये और विजेता बन जाइये।

किसी भी इंसान का व्यक्तित्व कुल मिलाकर उसकी अपनी ही विचारधारा से प्रभावित होता है। कुछ लोग अत्यंत कठोर बनने में भरोसा करते हैं जबकि कुछ उदार व सहृदय होने में। कुल मिलाकर हर एक इंसान के अंतर्मन में बसे विश्वास की छवि उसके व्यवहार में झलकती है। कृपालु स्वभाव के लोगों पर बेशक प्रभु का अशीष रहता है।

‘‘ईश्वर को वे लोग सर्वाधिक प्रिय होते हैं–जो चाहे सम्पन्नता हो या विपन्नता, मुक्तहस्त से दान करते हैं; जो गुस्से को काबू में रखते हैं और जो सभी को क्षमा कर देते हैं।’’

कुरान शरीफ

संभव है कि कटुता भरा नज़रिया दुश्मनों से निपटने में मददगार हो लेकिन जब आप इसे अपने ही लोगों पर आज़माते हैं तो फायदे की बजाय नुकसान ज्यादा होगा। चरमपंथी और कट्टर स्वभाव के लोग कभी लड़ाई भले ही जीत लें पर सच्चाई यही है कि वे दिलों को नहीं जीत सकते। आपका रौब या दबाव आज्ञा पालन के लिए तो किसी को झुका सकता है लेकिन आपको वास्तविक आदर नहीं दिला सकता। इसके विपरीत, विनम्र स्वभाव से आप भले हो कोई लड़ाई न जीत पायें पर दिलों को ज़रूर जीत लेंगे। जब दिल जीत लिये जाते हैं तो विजयश्री महिमामण्डित हो उठती है।

‘‘हमें न मंदिरों की आवश्यकता है, न ही जटिल दर्शनशास्त्र की। हमारा मन-मस्तिष्क ही मंदिर है और दयालुता दर्शनशास्त्र।’’

दलाई लामा


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