समाजवादी >> माँ माँमैक्सिम गोर्की
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माँ
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
संसार के कथा साहित्य के सृजनकर्ताओं में कुछ लेखक ऐसे हुए हैं, जिनका नाम सदा अजर-अमर रहेगा। भारत की धरती पर उपन्यास सम्राट प्रेमचन्द हुए तो रूस की धरती पर मैक्सिम गोर्की। गोर्की का जन्म 16 मार्च, 1868 को हुआ था। गोर्की का अर्थ रूसी भाषा में "कड़ुवा" होता है। वे साधारण परिवार मे जन्मे थे। उनका मूल नाम अलेक्सी मेक्सोविच पेशकोव था। वे रूसी कहानीकार, उपन्यासकार और आत्मकथा लेखक के रूप में ख्याति के शिखर पर पहुँचे। वे क्रांतिकारी विचारधारा के लेखक कहलाए। उनका निधन 14 जून, 1936 को हुआ। वे निझनी नोवगार्ड नामक स्थान पर जन्में जिसका बाद में उनके सम्मान में "गोर्की" नाम रख दिया गया। मास्को की एक अन्य मुख्य सड़क का नाम उनके सम्मान में "गोर्की स्ट्रीट" रखा गया।
भारत और रूस में सामाजिक व्यवस्था करीब-करीब एक सी थी। भारत में भी सामन्त (बड़े किसानों) और साहूकारों का बोलबाला था। सामन्ती किसानों के कर्ज के बोझ से दबा, पिछड़ा, कुचला व्यक्ति साहूकारों की शरण में जाता था। ब्याज-पर-ब्याज लगने वाले धन के मकड़जाल में ऐसा फँसता था कि पुश्त-दर-पुश्त मेहनत करके लोग उसके कर्ज से मुक्त होना चाहते थे। मगर साहूकार का ब्याज ही अदा न हो पाता जाता था। ब्याज और मूल बढ़ता चला जाता था।
रूस में भारत से पहले क्रांति आई, भारत में अंग्रेजों की दासता से छुटकारा बाद में मिला। रूस में औद्योगिक क्रांति आने से सामंती किसानों और सूदखोरों से लोगों को छुटकारा मिला। लोग कल-करखानों में मजदूरी करने के लिए भागे और एक समय पर काम पर जाने, एक सा वेतन और सुविधा पाने के कारण उन्हें संगठित होने में आसानी हुई। जारशाही और सामंती व्यवस्था को उखाड़ फेंका गया।
भारत में आजादी के बाद कानून बनाकर सामंतो और सूदखोरों से गरीबों, मजदूरों, फटेहाल, तंगहाल लोगों को छुटकारा दिलाया गया। वे आजाद इंसान के रूप में साँस ले सके। मुंशी प्रेमचन्द ने अपने उपन्यासों में गरीबों, मजदूरों के शोषण की दास्तान उभारी है तथा अत्याचार, अनाचार के विरुद्ध गरीबों को लामबंद करने का कार्य किया तो मैंक्सिम गोर्की ने माँ के चरित्र और व्यक्तित्व द्वारा मिल मजदूरों में क्रांति चेतना जगाने का काम किया है।
माँ एक आदर्श है रूसी नारी चरित्र का, जिसके द्वारा इस बात का संदेश दिया गया है कि नारी क्रांति की जनक बन सकती है। उसकी भूमिका समाज में सर्वप्रमुख होती है।
एक बूढ़ी स्त्री "माँ" क्रांति का बिगुल फूँकती है, किस-किस तरह पुलिस और जासूसों को धोखा देती हुई क्रांतिकारियों तक, एक स्थान से दूसरे स्थान तक, संदेशवाहक का काम करती है। यही इस उपन्यास का मूल विषय है।
भारत और रूस में सामाजिक व्यवस्था करीब-करीब एक सी थी। भारत में भी सामन्त (बड़े किसानों) और साहूकारों का बोलबाला था। सामन्ती किसानों के कर्ज के बोझ से दबा, पिछड़ा, कुचला व्यक्ति साहूकारों की शरण में जाता था। ब्याज-पर-ब्याज लगने वाले धन के मकड़जाल में ऐसा फँसता था कि पुश्त-दर-पुश्त मेहनत करके लोग उसके कर्ज से मुक्त होना चाहते थे। मगर साहूकार का ब्याज ही अदा न हो पाता जाता था। ब्याज और मूल बढ़ता चला जाता था।
रूस में भारत से पहले क्रांति आई, भारत में अंग्रेजों की दासता से छुटकारा बाद में मिला। रूस में औद्योगिक क्रांति आने से सामंती किसानों और सूदखोरों से लोगों को छुटकारा मिला। लोग कल-करखानों में मजदूरी करने के लिए भागे और एक समय पर काम पर जाने, एक सा वेतन और सुविधा पाने के कारण उन्हें संगठित होने में आसानी हुई। जारशाही और सामंती व्यवस्था को उखाड़ फेंका गया।
भारत में आजादी के बाद कानून बनाकर सामंतो और सूदखोरों से गरीबों, मजदूरों, फटेहाल, तंगहाल लोगों को छुटकारा दिलाया गया। वे आजाद इंसान के रूप में साँस ले सके। मुंशी प्रेमचन्द ने अपने उपन्यासों में गरीबों, मजदूरों के शोषण की दास्तान उभारी है तथा अत्याचार, अनाचार के विरुद्ध गरीबों को लामबंद करने का कार्य किया तो मैंक्सिम गोर्की ने माँ के चरित्र और व्यक्तित्व द्वारा मिल मजदूरों में क्रांति चेतना जगाने का काम किया है।
माँ एक आदर्श है रूसी नारी चरित्र का, जिसके द्वारा इस बात का संदेश दिया गया है कि नारी क्रांति की जनक बन सकती है। उसकी भूमिका समाज में सर्वप्रमुख होती है।
एक बूढ़ी स्त्री "माँ" क्रांति का बिगुल फूँकती है, किस-किस तरह पुलिस और जासूसों को धोखा देती हुई क्रांतिकारियों तक, एक स्थान से दूसरे स्थान तक, संदेशवाहक का काम करती है। यही इस उपन्यास का मूल विषय है।
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