कविता संग्रह >> कबीर कबीरप्राणनाथ पंकज
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निर्गुण भक्तिकाव्य की परम्परा के विख्यात कवि सन्त कबीर की रचनाएँ
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
सुनो भाई साधो! कहत कबीर
निर्गुण भक्तिकाव्य की परम्परा के विख्यात कवि सन्त कबीर की रचनाएँ - दोहे और पदावली - हमारे मन और मस्तिष्क, दोनों को गहरे छूती हैं, झकझोरती हैं। 'मसि-कागद' को बिना छुए ही कबीर 'अभिव्यक्ति के शहंशाह' थे। उन्होंने धर्म के नाम पर चलते पाखंड और निरर्थक रूढ़ियों पर जमकर प्रहार किया। सामाजिक कुरीतियों और धार्मिक विद्वेष के विरुद्ध एक सशक्त आन्दोलन का संचालन किया। साथ ही, स्वयं को 'राम की बहुरिया' कह कर परमात्मा से मिलने की अदम्य आकुलता, विरह की करुण अनुभूति को भी वाणी दी।
प्रस्तुत है, कालजयी कवितामाला का दूसरा पुष्प : संत महाकवि कबीर की विशिष्ट रचनाओं के संग्रह और सम्पादन तथा कवि-परिचय, प्राणनाथ पंकज द्वारा।
प्राणनाथ पंकज का जन्म तथा प्रारम्भिक शिक्षा : अमृतसर में। 1961 में सेंट स्टीफेंस कालेज, दिल्ली विश्वविद्यालय से एम. ए.। कुछ समय तक डी. ए. वी. कालेज अमृतसर में संस्कृत के प्राध्यापक। दिसम्बर 1963 में भारतीय स्टेट बैंक में प्रोबेशनरी ऑफिसर नियुक्त। विभिन्न पदों पर लगभग 35 वर्ष की सेवा के पश्चात् स्टेट बैंक स्टाफ़ कालेज, हैदराबाद से महाप्रबंधक पद से अवकाश ग्रहण।
विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आध्यात्मिक, दार्शनिक, ऐतिहासिक, मानव संसाधन विकास, व्यवहार विज्ञान आदि से संबंधित विषयों पर हिन्दी व अंग्रेजी में लेखन। भारतीय संस्कृति तथा मानवीय मूल्यों के अध्धयन में विशेष रुचि। तत्संबंधी विषयों पर विशिष्ट वक्ता, अतिथि प्राध्यापक के रूप में विभिन्न संस्थाओं द्वारा आमंत्रित। आजकल चंडीगढ़ में निवास और मुख्यतः लेखन कार्य।
निर्गुण भक्तिकाव्य की परम्परा के विख्यात कवि सन्त कबीर की रचनाएँ - दोहे और पदावली - हमारे मन और मस्तिष्क, दोनों को गहरे छूती हैं, झकझोरती हैं। 'मसि-कागद' को बिना छुए ही कबीर 'अभिव्यक्ति के शहंशाह' थे। उन्होंने धर्म के नाम पर चलते पाखंड और निरर्थक रूढ़ियों पर जमकर प्रहार किया। सामाजिक कुरीतियों और धार्मिक विद्वेष के विरुद्ध एक सशक्त आन्दोलन का संचालन किया। साथ ही, स्वयं को 'राम की बहुरिया' कह कर परमात्मा से मिलने की अदम्य आकुलता, विरह की करुण अनुभूति को भी वाणी दी।
प्रस्तुत है, कालजयी कवितामाला का दूसरा पुष्प : संत महाकवि कबीर की विशिष्ट रचनाओं के संग्रह और सम्पादन तथा कवि-परिचय, प्राणनाथ पंकज द्वारा।
प्राणनाथ पंकज का जन्म तथा प्रारम्भिक शिक्षा : अमृतसर में। 1961 में सेंट स्टीफेंस कालेज, दिल्ली विश्वविद्यालय से एम. ए.। कुछ समय तक डी. ए. वी. कालेज अमृतसर में संस्कृत के प्राध्यापक। दिसम्बर 1963 में भारतीय स्टेट बैंक में प्रोबेशनरी ऑफिसर नियुक्त। विभिन्न पदों पर लगभग 35 वर्ष की सेवा के पश्चात् स्टेट बैंक स्टाफ़ कालेज, हैदराबाद से महाप्रबंधक पद से अवकाश ग्रहण।
विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आध्यात्मिक, दार्शनिक, ऐतिहासिक, मानव संसाधन विकास, व्यवहार विज्ञान आदि से संबंधित विषयों पर हिन्दी व अंग्रेजी में लेखन। भारतीय संस्कृति तथा मानवीय मूल्यों के अध्धयन में विशेष रुचि। तत्संबंधी विषयों पर विशिष्ट वक्ता, अतिथि प्राध्यापक के रूप में विभिन्न संस्थाओं द्वारा आमंत्रित। आजकल चंडीगढ़ में निवास और मुख्यतः लेखन कार्य।
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